अपडेटेड 12 February 2025 at 13:28 IST

बीजेपी का आखिरी मौका भी खत्म? नहीं चुना CM, अब मणिपुर में लग सकता है राष्ट्रपति शासन...समझिए इससे राज्य में क्या-क्या बदलेगा

मणिपुर के राज्यपाल अजय भल्ला ने विधानसभा बुलाने की कोई अधिसूचना जारी नहीं की है। इससे संभावनाएं बन रही हैं कि मणिपुर में विधानसभा को भंग किया जा सकता है।

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JP Nadda and N Biren Singh
जेपी नड्डा और एन बीरेन सिंह | Image: Facebook

Manipur: मणिपुर राष्ट्रपति शासन की तरफ बढ़ रहा है। 9 फरवरी को एन बीरेन सिंह ने मणिपुर के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इससे पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राज्य इकाई में कई दिनों तक कलह और विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी चल रही थी। हालांकि बीरेन सिंह के इस्तीफे के 3 दिन बाद भी बीजेपी अगला मुख्यमंत्री तय नहीं कर पाई है और इससे राष्ट्रपति शासन लगने की संभावनाएं पूरी हैं। ऐसा इसलिए भी कि 12 फरवरी तक विधानसभा का सत्र बुलाया जाना जरूरी थी, जिसकी समय सीमा अब खत्म हो जाएगी।

मणिपुर विधानसभा का आखिरी सत्र 12 अगस्त 2024 को था, जिसका मतलब है कि विधानसभा की बैठक के लिए 6 महीने की अवधि बुधवार (12 फरवरी, 2025) को खत्म हो रही है। मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने मंगलवार को विधानसभा बुलाने की कोई अधिसूचना जारी नहीं की। इससे संभावनाएं बन रही हैं कि मणिपुर में विधानसभा को भंग किया जा सकता है।

बीजेपी नया CM चुनने की तरफ बढ़ती नहीं दिखी!

इस्तीफा दे चुके एन बीरेन सिंह राज्य के कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में काम करना जारी रख सकते हैं। हालांकि मणिपुर में बीजेपी नया मुख्यमंत्री बनाने की दिशा में ना जाकर, राष्ट्रपति शासन की दिशा में बढ़ रही है। वैसे बुधवार को बीजेपी के नेता संबित पात्रा ने फिर राज्यपाल अजय भल्ला से मुलाकात थी। हालांकि सूत्र बताते हैं कि राज्यपाल भल्ला ने बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित ना किए जाने पर अपनी रिपोर्ट पहले ही केंद्र को भेज चुके हैं। ऐसे में निलंबित एनीमेशन पर जल्द ही आदेश आने की उम्मीद है।

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा तो क्या बदलेगा?

राष्ट्रपति शासन का जनता पर कोई सीधा असर नहीं होता है, लेकिन राज्य की शक्तियां राष्ट्रपति और केंद्र सरकार के पास आ जाती हैं। इसमें एक बार जब किसी राज्य पर राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है तो कोई भी बड़ा सरकारी निर्णय नहीं लिया जा सकता। राष्ट्रपति शासन हटने और अगली सरकार बनने तक कोई भी बड़ा नीतिगत निर्णय लागू नहीं किया जा सकता और न ही कोई परियोजना स्वीकृत की जा सकती है।

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संविधान का अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन

अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू होने से राज्य सरकार के सभी कार्य केंद्र को और राज्य विधानमंडल के कार्य संसद को सौंप दिए जाते हैं। ये प्रक्रिया तब शुरू होती है, जब राज्यपाल से रिपोर्ट मिलने पर राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट होते हैं कि ऐसी स्थिति बन चुकी है, जिसमें राज्य की सरकार इस संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल सकती है। उसके बाद राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 के तहत एक उद्घोषणा जारी करते हैं।

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राष्ट्रपति की उद्घोषणा दो महीने तक लागू रह सकती है, लेकिन इसे बढ़ाने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में प्रस्ताव लाया जाता है। जहां मंजूरी मिलने पर राष्ट्रपति शासन की घोषणा को छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में संसद तीन साल तक के लिए 6 महीने के विस्तार को भी मंजूरी दे सकती है।

राष्ट्रपति शासन लागू करने से पहले की शर्तों-

  • अगर राष्ट्रपति को लगता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल सकती।
  • राज्य सरकार उस राज्य के राज्यपाल की ओर से निर्धारित समय के भीतर किसी नेता को मुख्यमंत्री के रूप में चुनने में असमर्थ है।
  • गठबंधन टूटने के कारण मुख्यमंत्री को सदन में अल्पमत का समर्थन मिले और मुख्यमंत्री दिए गए समय में बहुमत साबित करने में विफल रहे।
  • सदन में अविश्वास प्रस्ताव के कारण विधानसभा में बहुमत साबित करने में असफलता।
  • प्राकृतिक आपदा, युद्ध या महामारी जैसी स्थितियों के कारण चुनाव स्थगित होना की स्थिति में

अलग-अलग राज्यों में अब तक 134 बार राष्ट्रपति शासन लगा

राज्यों में अलग-अलग समय पर राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के अलग-अलग कारण रहे हैं। हालांकि 1950 के बाद से जब संविधान पहली बार लागू हुआ, तब से 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 134 बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। पंजाब ऐसा राज्य था, जहां संविधान लागू होने के दो साल के भीतर राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत पड़ी थी। राष्ट्रपति शासन सबसे अधिक 10 बार मणिपुर और उत्तर प्रदेश में लगा है। जम्मू कश्मीर में सबसे लंबा राष्ट्रपति शासन रहा है।

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Published By : Dalchand Kumar

पब्लिश्ड 12 February 2025 at 13:28 IST