अपडेटेड 20 June 2024 at 12:38 IST
बिहार में 65 फीसदी आरक्षण रद्द, नीतीश सरकार को पटना हाईकोर्ट से बड़ा झटका
Bihar Reservation: पटना हाईकोर्ट ने बिहार की नीतीश कुमार सरकार को झटका देते हुए 65 प्रतिशत आरक्षण कानून को रद्द कर दिया था। अब बिहार में 65% आरक्षण नहीं मिलेगा।
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Bihar Reservation: पटना हाईकोर्ट से बिहार की नीतीश कुमार सरकार को बड़ा झटका लगा है। बिहार में 65 प्रतिशत आरक्षण कानून को कोर्ट ने रद्द कर दिया था। बिहार सरकार ने जाति सर्वे के बाद आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया था। जिसे पटना हाई कोर्ट ने रद्द करते हुए आरक्षण बढ़ाने वाले राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार ने जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट के बाद OBC, EBC, दलित और आदिवासियों का आरक्षण बढ़ाया था।
पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आरक्षण में बढ़ोतरी को असंवैधानिक करार देते हुए भारत के संविधान की धारा 14, 15 और 16 का उल्लंघन बताया है। उन्होंने कहा कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है। पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में SC, ST, EBC और अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण देने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह कानून रद्द किया है। यूथ फॉर इक्वैलिटी नाम के संगठन ने पटना हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी थी।
11 मार्च को सुरक्षित रखा था फैसला
इससे पहले कोर्ट ने इस मामले में 11 मार्च, 2024 को गौरव कुमार और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। चीफ जस्टिस के.वी चंद्रन की खंडपीठ ने याचिकाओं पर लम्बी सुनवाई की थी। महाधिवक्ता पीके शाही ने बहस में राज्य सरकार का पक्ष रखा था। उन्होंने अपनी दलील में कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार ने यह फैसला इन वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण लिया है।
सामान्य श्रेणी के लिए मात्र 35% सीट
राज्य सरकार द्वारा 9 नवंबर, 2023 को पारित किए कानून में SC, ST, EBC और अन्य पिछड़े वर्गों को 65 फीसदी आरक्षण दिया गया था। जिसके बाद सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए सरकारी सेवा में मात्र 35 फीसदी ही पद रह गए थे। अधिवक्ता दीनू कुमार ने पिछली सुनवाईयों में कोर्ट को बताया था कि सामान्य वर्ग में EWS के लिए 10 फीसदी आरक्षण रद्द करना भारतीय संविधान की धारा 14 और धारा 15(6) (b) के खिलाफ है। उन्होंने दलील दी थी कि सरकार का यह फैसला सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर नहीं है बल्कि जातिगत सर्वेक्षण के बाद जातियों के अनुपातिक आधार पर लिया गया है।
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Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 20 June 2024 at 11:47 IST