अपडेटेड 9 February 2024 at 17:28 IST

CM से PM तक का मिला ताज... भारत रत्न से सम्मानित चौधरी चरण सिंह क्यों कहलाए किसानों के मसीहा?

चौधरी चरण सिंह किसानों की आवाज बुलंद करने वाले प्रखर नेता माने जाते थे। वो 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।

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Chaudhary Charan Singh
चौधरी चरण सिंह | Image: File

Chaudhary Charan Singh Bharat Ratna: किसानों के मसीहा, देश के पूर्व प्रधानमंत्री या यूं कहें उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, चौधरी चरण सिंह वो शख्सियत हैं, जिन्हें अब हिंदुस्तान के सबसे बड़े सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जाएगा। भारत सरकार ने मरणोपरांत चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा की है।

चौधरी चरण सिंह किसानों की आवाज बुलंद करने वाले प्रखर नेता माने जाते थे। इतिहासकार और बहुत से लोग समान रूप से उन्हें अक्सर 'भारत के किसानों के चैंपियन' कहकर बुलाते हैं। वो 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। चौधरी चरण सिंह भारत के 5वें प्रधानमंत्री थे। इससे पहले वो देश के उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के अलावा दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे।

चौधरी चरण सिंह की जिंदगी

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ। चौधरी चरण सिंह की शुरुआती शिक्षा उनके पैतृक गांव जानी खुर्द के स्कूल में हुई और उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा गवर्नमेंट हाईस्कूल मेरठ से पास की।

उन्होंने 1923 में आगरा कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन की और फिर आगरा यूनिवर्सिटी से इतिहास में एमए किया। 1927 में एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की और गाजियाबाद में एक वकील के रूप में अपना नामांकन कराया।

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चौधरी चरण सिंह (Credit- rashtriyalokdal.com)

राजनीतिक करियर

1929 में चौधरी चरण सिंह मेरठ चले आए और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।

वो पहली बार 1937 में छपरौली से यूपी विधानसभा के लिए चुने गए। फिर 1946, 1952, 1962 और 1967 में भी विधायक बने।

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वो 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना आदि जैसे विभिन्न विभागों में काम किया।

जून 1951 में उन्हें राज्य में कैबिनेट मंत्री नियुक्त किया गया। न्याय और सूचना विभाग का प्रभार भी उन्हें दिया गया। बाद में उन्होंने 1952 में संपूर्णानंद के मंत्रिमंडल में राजस्व और कृषि मंत्री का पदभार संभाला। जब उन्होंने अप्रैल 1959 में इस्तीफा दिया, तो वो राजस्व और परिवहन विभाग का प्रभार संभाल रहे थे।

सीबी गुप्ता के समय चौधरी चरण सिंह गृह और कृषि मंत्री (1960) थे। चरण सिंह ने सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में कृषि और वन मंत्री (1962-63) के रूप में काम किया।

उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया और 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का कार्यभार संभाला।

1 अप्रैल 1967 को चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी और 3 अप्रैल 1967 को चौधरी चरण सिंह को संयुक्त विधायक दल के नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। कांग्रेस के विभाजन के बाद वह कांग्रेस पार्टी के समर्थन से फरवरी 1970 में दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने।

हालांकि 2 अक्टूबर 1970 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।

चौधरी चरण सिंह 1977 के आम चुनाव में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए और जनता पार्टी सरकार में गृह मंत्री रहे। जनवरी 1979 में उन्हें वित्त मंत्री नियुक्त किया गया और बाद में उप-प्रधानमंत्री के पद पर पदोन्नत किया गया। 28 जुलाई 1979 को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।

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ऐसे किसानों के मसीहा बने चौधरी चरण सिंह

मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल को यूपी राज्य के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय में देखा जाता है। सामाजिक समानता के लिए चौधरी चरण सिंह ने अहम काम किए। उनके दृष्टिकोण और मुद्दों पर राजनीतिक सहमति बनाने की उनकी क्षमता के परिणामस्वरूप राज्य विधानसभा में महत्वपूर्ण कानून बने।

उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है।

पीएम इंडिया वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, चौधरी चरण सिंह ने डिपार्टमेंट रिडेम्पशन बिल 1939 को तैयार करने और अंतिम रूप देने में अग्रणी भूमिका निभाई, जिससे ग्रामीण देनदारों को बड़ी राहत मिली। यह उनकी पहल पर ही था कि यूपी में मंत्रियों को मिलने वाले वेतन और अन्य विशेषाधिकारों में भारी कमी की गई।

चौधरी चरण सिंह (Credit- rashtriyalokdal.com)

पीएम इंडिया वेबसाइट की जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने भूमि जोत अधिनियम 1960 लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य पूरे राज्य में भूमि जोत की सीमा को कम करके इसे एक समान बनाना था।

एक समर्पित सार्वजनिक कार्यकर्ता और सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले चरण सिंह की ताकत मूल रूप से लाखों किसानों के बीच उनके विश्वास से उपजी थी।

1975 में चौधरी चरण सिंह को जाना पड़ा जेल

राष्ट्रीय लोक दल की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, 26 जून 1975 की रात को आपातकाल लागू होने के साथ ही चौधरी चरण सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने अपने भारतीय लोक दल का जनता पार्टी में विलय कर दिया, जिसके वे संस्थापक सदस्य थे।

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दयानंद सरस्वती से प्रभावित थे चरण सिंह

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों और शिक्षाओं का चौधरी चरण सिंह पर गहरा प्रभाव था। महात्मा गांधी और सरदार पटेल से प्रेरित होकर चौधरी चरण सिंह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए।

इसके अलावा 1930 में नमक कानून का उल्लंघन करने के लिए उन्हें 6 महीने जेल की सजा सुनाई गई थी। 1940 में उन्हें एक साल की कैद की सजा सुनाई गई। अक्टूबर 1941 में रिहा हुए चौधरी चरण सिंह को 1942 में भारत रक्षा नियम के तहत फिर से गिरफ्तार कर लिया गया।

1996 में देश के पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह चौधरी ने अपनी पार्टी बनाई थी और इसका नाम राष्ट्रीय लोकदल रखा। जाट नेता चरण सिंह चौधरी के नाम पर इस पार्टी ने उत्तर प्रदेश के जाटलैंड यानी पश्चिमी यूपी में अपनी पकड़ मजबूत की। करीब 28 साल के सफर में राष्ट्रीय लोक दल ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। 

Published By : Amit Bajpayee

पब्लिश्ड 9 February 2024 at 16:27 IST