अपडेटेड 29 February 2024 at 13:54 IST
मतपेटी से लेकर ईवीएम तक, निर्वाचन आयोग की अविश्वसनीय यात्रा इतिहास में अमिट रूप से रहेगी दर्ज
भारत के गणतंत्र बनने से एक दिन पहले अस्तित्व में आए निर्वाचन आयोग ने पिछले 75 वर्षों में मतपेटियों से लेकर ईवीएम के युग तक का सफर तय किया है।
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Incredible journey of Election Commission: भारत के गणतंत्र बनने से एक दिन पहले अस्तित्व में आए निर्वाचन आयोग ने पिछले 75 वर्षों में मतपेटियों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के युग तक का सफर तय किया है और इस लंबी यात्रा के दौरान जहां उसने समय के साथ खुद को विकसित किया, वहीं अपने चुनावी तंत्र के जरिये लोकतंत्र की आत्मा को संजोकर भी रखा।
पच्चीस जनवरी, 1950 को अपनी स्थापना के बाद से आयोग ने 17 आम चुनाव, कई विधानसभा चुनाव और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनाव कराए हैं। भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) अब 2024 का लोकसभा चुनाव कराने के लिए कमर कस रहा है। इसका कार्यक्रम मार्च में घोषित होने की संभावना है।
चुनावों के मामले में ‘एक स्वर्ण मानक’
आयोग का मुख्यालय राष्ट्रीय राजधानी के निर्वाचन सदन में है। आजादी के बाद 1951-52 में हुए पहले आम चुनाव से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव तक बहुत कुछ बदल चुका है। देश, इसके मतदाता और प्रौद्योगिकी ने बहुत विकास किया है और ईसीआई भी इसमें पीछे नहीं रहा। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने कहा कि आयोग ने जिस प्रकार से वर्षों से भारत में चुनावों का संचालन किया और जैसे उसके परिणाम रहे हैं, इसे देखते हुए इस संस्था को चुनावों के मामले में ‘एक स्वर्ण मानक’ माना जाता है।
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सुकुमार सेन को भारत के पहला मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) नियुक्त किया गया था। वह एक आईसीएस अधिकारी थे और उन्होंने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के रूप में काम किया था। उन्होंने निर्वाचन आयोग की स्थापना के लगभग दो महीने बाद 21 मार्च, 1950 को पदभार ग्रहण किया था। पहले और दूसरे आम चुनाव के दौरान भी वही सीईसी थे।
चुनावी यात्रा का ‘गुमनाम नायक’
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देश के 17वें मुख्य चुनाव आयुक्त कुरैशी ने सेन को भारत की चुनावी यात्रा का ‘गुमनाम नायक’ बताया। कुरैशी ने कहा कि उनके जीवन, विरासत और भारतीय चुनावों के लिए माहौल तैयार करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आज हम (एक निर्वाचन आयोग के रूप में) लगभग 80 प्रतिशत वही काम कर रहे हैं, जो उन्होंने शुरू किया था। हम उसे आगे बढ़ा रहे हैं।’’ स्वतंत्र भारत में 1951-52 में पहला चुनाव लोकसभा की 489 सीटों के लिए स्टील के बैलेट बॉक्स के जरिये हुआ था तो सत्तर के दशक के अंत में कल्पना की गई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का पहली बार 1998 में विधानसभा चुनावों में उपयोग किया गया था और 1999 में संसदीय क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में इसे विस्तारित किया गया था।
आम चुनाव को ‘महान प्रयोग’
निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के अनुसार 2004 के आम चुनावों में देश के सभी 543 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में 10 लाख से अधिक ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था। इन 75 वर्षों में आयोग ने पहले चुनाव से शुरू करके निर्वाचन प्रक्रिया को आसान और मतदाताओं के लिए अधिक सुलभ बनाने के वास्ते नवीन सोच के साथ जनसांख्यिकीय, भौगोलिक और तार्किक कई चुनौतियों का सामना किया है। पहले आम चुनाव को ‘महान प्रयोग’ करार दिया गया था।
आयोग ने पहले चुनावों में ‘चिह्न प्रणाली’ की शुरुआत कर दी थी। इसके बाद देश भर में 27,527 बूथ महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए। बाद के दशकों में आयोग ने विकलांग व्यक्तियों के लिए रैंप और व्हीलचेयर, ब्रेल मतदाता पर्ची, ब्रेल संकेतक के साथ ईवीएम, चुनावी फोटो पहचान पत्रों की शुरुआत और ‘कोई मतदाता पीछे न छूटे’ के अपने सिद्धांत के अनुरूप डिजिटल फोटो का उपयोग करने जैसी सुविधाएं दीं।
‘एवरी वोट काउंट्स: द स्टोरी ऑफ इंडियाज इलेक्शंस'
आयोग ने चुनाव प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी बनाने के उद्देश्य से ‘सी विजिल’ जैसे विभिन्न मोबाइल ऐप्लिकेशन विकसित करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का लाभ भी उठाया है। भारत के 16वें सीईसी नवीन चावला ने अपनी पुस्तक ‘एवरी वोट काउंट्स: द स्टोरी ऑफ इंडियाज इलेक्शंस' में लिखा है कि दुनिया भर में पहले चुनावी प्रबंधन निकायों में से एक होने के नाते ईसीआई ने प्रौद्योगिकी को व्यापक रूप से अपनाया और आज भी वह इसका लाभ उठा रहा है।
उन्होंने ईवीएम के इस्तेमाल को एक ‘साहसिक विचार’ करार दिया, जिसने चुनाव कराने के तरीके को बदल दिया। पिछले कुछ वर्षों में चुनावों के दौरान कुछ तबकों ने कुछ मतदान केंद्रों की ईवीएम की कार्यप्रणाली से जुड़े मुद्दों को लेकर आलोचना की है। ‘एन अनडॉक्यूमेंटेड वंडर: द मेकिंग ऑफ द ग्रेट इंडियन इलेक्शन’ नामक पुस्तक लिखने वाले कुरैशी ने कहा कि निर्वाचन आयोग को अधिक उदार होना चाहिए और अगर कोई आलोचना होती है तो उसे अपना बचाव करना चाहिए तथा आलोचनाओं का जवाब देने के लिए एक संवाददाता सम्मेलन बुलाना चाहिए।
चुनावों के संचालन में आयोग द्वारा किए गए जटिल कार्यों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि ‘मामूली मुद्दे’ या कुछेक ईवीएम को लेकर सामने आई खबरों जैसे कुछ मुद्दे अक्सर केंद्र में आ जाते हैं, जो इस विशाल कवायद के निष्पादन की बड़ी तस्वीर को धूमिल करते हैं। आयोग के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि कभी-कभी ईसीआई को बहुत बड़ी संख्या में उम्मीदवारों के कारण कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में लॉजिस्टिक जैसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है, लेकिन हर बार उसने ऐसी चुनौतियों का जवाब दिया है और अभिनव समाधानों के जरिये उचित चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित की है।
अगस्त 2013 में चुनाव नियम, 1961 में संशोधन और अधिसूचित किए जाने के बाद चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और सत्यापन में सुधार के लिए वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) शुरू किया गया था। ‘इनमें से कोई नहीं’ (नोटा) का विकल्प 2014 के लोकसभा चुनाव में पेश किया गया था। पहले चुनाव में जहां 17.3 करोड़ मतदाता थे, वहीं 2019 के आम चुनावों में मतदाताओं का संख्या बढ़कर 91.19 करोड़ हो गई। इस चुनाव में रिकॉर्ड 67.4 प्रतिशत मतदान हुआ।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने 2017 में प्रकाशित ‘इलेक्शन एटलस ऑफ इंडिया’ की प्रस्तावना में लिखा है कि ‘निर्वाचन आयोग को 1952 से नियमित, आवधिक, विश्वसनीय और स्वीकार्य चुनाव कराने के लिए देश के लोगों का विश्वास प्राप्त है’।
(Note: इस भाषा कॉपी में हेडलाइन के अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है)
Published By : Ankur Shrivastava
पब्लिश्ड 29 February 2024 at 13:54 IST