अपडेटेड 17 October 2024 at 11:45 IST
25 मार्च 1971 के बाद असम आए बांग्लादेश भारतीय नागरिक नहीं; धारा 6A पर SC का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6A को वैध करार दिया है। इसके तहत 25 मार्च 1971 तक बांग्लादेश से आने वाले अप्रवासी भारतीय नागरिकता के लायक हैं।
- भारत
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Citizenship Act Section-6A: 25 मार्च 1971 के बाद असम में आकर बसने वाले बांग्लादेश के अप्रवासी भारत के नागरिक नहीं होंगे। हालांकि 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक भारत आने वाले बांग्लादेश के अप्रवासियों की नागरिकता बरकरार रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नागरिकता कानून की धारा 6A पर बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले के तहत 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक बांग्लादेश से आने वाले अप्रवासी भारतीय नागरिकता के लायक हैं। जिनको इसके तहत नागरिकता मिली है, उनकी नागरिकता बरकरार रहेगी। असम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने नागरिकता कानून की धारा 6A को वैध करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान बेंच ने 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस ने 6A में भारतीय नागरिकता में आवेदन के लिए दी गई 25 मार्च 1971 की कट ऑफ डेट को भी सही ठहराया और कहा कि उस वक्त पूर्वी पाकिस्तान से असम आने वाले लोगों की तादाद आजादी के बाद भारत आने वाले लोगों से कहीं ज्यादा है।
क्या है पूरा विवाद?
सरकार की तरफ से असम समझौते में धारा 6ए को 1985 में शामिल किया गया, ताकि बांग्लादेश से अवैध रूप से आए उन प्रवासियों को नागरिकता का लाभ दिया जा सके, जो 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच असम आए। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया कि 1966 के बाद से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से अवैध शरणार्थियों के आने के चलते राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है। राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है। सरकार ने नागरिकता कानून में 6A जोड़कर अवैध घुसपैठ को कानूनी मंजूरी दी।
सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ ने असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने बहुमत से फैसला सुनाया, जबकि न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने इससे असहमति जताई।
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हम किसी को पड़ोसी चुनने की इजाजत नहीं दे सकते- जस्टिस सूर्यकांत
सीजेआई के बाद जस्टिस सूर्यकांत ने अपना, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एमएम सुंदरेश का जजमेंट पढ़ते हुए कहा कि हमने भी सेक्शन 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। हम किसी को अपने पड़ोसी चुनने की इजाजत नहीं दे सकते और ये उनके भाईचारे के सिद्धांत के खिलाफ है। सिद्धांत है- जियो और जीने दो।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अनुच्छेद 29 के आधार पर हमने माना है कि याचिकाकर्ता ये दिखाने में विफल रहे हैं कि इससे असमिया संस्कृति, भाषा पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। वास्तव में ये 1971 की कट ऑफ तिथि के बाद भारत के क्षेत्र में घुसपैठ करने वाले अवैध प्रवासियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने का आदेश देता है। किसी अन्य समूह की उपस्थिति के कारण उनकी संस्कृति पर संवैधानिक रूप से वैध प्रभाव नहीं दिखा पाए हैं। हम ये स्वीकार नहीं कर सकते कि असमिया लोगों के मतदान के अधिकार पर कोई प्रभाव पड़ा है। याचिकाकर्ताओं ने अपने वैधानिक अधिकारों के किसी भी उल्लंघन का दावा नहीं किया है।
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जेबी पारदीवाला ने 6A को असंवैधानिक ठहराया
जस्टिस सूर्यकांत ने अपने फैसले में कहा है कि हम चाहते हैं कि सेक्शन 6A के प्रावधान को लागू करने को लेकर मॉनिटरिंग मुख्य न्यायाधीश करें। हालांकि बेंच के सदस्य जस्टिस जेबी पारदीवाला ने अपने फैसले में नागरिकता कानून की धारा 6A को असंवैधानिक ठहराया है।
Published By : Dalchand Kumar
पब्लिश्ड 17 October 2024 at 11:14 IST