अपडेटेड 15 August 2021 at 00:16 IST

आजादी की 75वीं वर्षगांठ: भारत के ये गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी, जिनके चेहरे से हम अबतक है अनजान

स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ पर आइए हम आपको पांच ऐसे गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताते हैं, जिनका भी भारत को आजाद कराने में अहम योगदान था।

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"ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी"..आज उन वीर सपूतों का दिन है, जिनकी देश के प्रति दीवानगी ने हमें राष्ट्र भावना से भाव-विभोर कर दिया। ऐसे लाखों सर जो वतन पर न्योछावर हो गए। ऐसी अनगिनत कहानियां जिसे सुनकर हर भारतीय का दिल दहल उठता है। आज 15 अगस्त को पूरा भारत देश अपना 75वां स्वतत्रंता दिवस मनाने जा रहा है। लेकिन इस आजादी के जश्न के पीछे अनेकों कुर्बानियां हैं, जिनकी वजह से हम आज आजादी का एहसास कर पा रहे है।

आज उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने का दिन है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों को धूल चटा दिया था, और उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। वतन के वास्ते अपने प्राणों की आहुति देने वाले उन महान सेनानियों की गाथा सुनकर हर भारतीय रो पड़ता है। जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश को ब्रिटिश चंगुल से छुड़ाने में लगा दिया। गांधी, नेहरू, भगत सिंह ये सभी नाम से हम वाकिफ है, लेकिन कुछ ऐसे नाम है, जो इतिहास के पन्नों में कहीं गुम से गए है। लेकिन आजादी की लड़ाई में उन्होंने भी जी जान लगा दिया था। स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ पर आइए हम आपको पांच ऐसे गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताते हैं, जिनका भी भारत को आजाद कराने में अहम योगदान था।

राम प्रसाद बिस्मिल 

राम प्रसाद बिस्मिल एक बहादुर क्रांतिकारी थे। जिन्होंने चर्चित काकोरी लूट की साजिश की अगुवाई की थी। राम प्रसाद बिस्मिल क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में से भी एक थे। स्वतंत्रता सेनानी होने के अलावा बिस्मिल उर्दू और अंग्रेजी के एक महान कवि और लेखक भी थे। "सरफरोशी की तमन्ना" कविता भी उनके द्वारा लिखी गई है। काकोरी कांड में बिस्मिल को 19 दिसंबर, 1927 को 30 साल की उम्र में अशफाकउल्लाह खान और दो अन्य लोगों के साथ फांसी की सजा दी गई थी।

बिरसा मुंडा 

बिरसा मुंडा दृढ़ संकल्प वाले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। आजादी की लड़ाई में उनके योगदान के लिए आदिवासी समुदाय उन्हें बिरसा भगवान कहते हैं। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातु में हुआ था। साल 1899-1900 में बिरसा मुंडा की अगुवाई में मुंडा विद्रोह में सर्वाधिक चर्चित विद्रोह था। इसे 'मुंडा उलगुलान' (विद्रोह) भी कहा जाता है। इस विद्रोह की शुरुआत मुंडा जनजाति की पारंपरिक व्यवस्था खूंटकटी की ज़मींदारी व्यवस्था में परिवर्तन के कारण हुई। 3 मार्च 1900 को अंग्रेजों ने बिरसा को  गिरफ्तार कर लिया और 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा जेल में ही मृत्यु हो गई। 

मैडम कामा

भीकाजी रूस्तम कामा (मैडम कामा) भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं जिन्होने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का दौरा कर भारत की स्वतंत्रता को लेकर प्रचार किया था। 46 साल की पारसी महिला भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी 'इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस' में ये झंडा फहराया था। इस दौरान भीकाजी ने ज़बरदस्त भाषण दिया और कहा, ऐ संसार के कॉमरेड्स, देखो ये भारत का झंडा है, यही भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, इसे सलाम करो। 

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पंडित उमा दत्त शर्मा 

16 जनवरी 1914 को मेरठ के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे पंडित उमादत्त शर्मा  सिर्फ 16 साल के थे, जब उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ अपना पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरू किया और एक साल के लिए जेल भी गए। दूसरी बार पंडित उमा दत्त शर्मा को अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू करने के लिए मेरठ और आसपास के क्षेत्रों के लोगों को प्रभावित करने के लिए जेल भेजा गया था और उन्हें उस समय की सबसे कड़ी सजा मिली, जिसे तनहाई कहा जाता था, जहां उन्हें 7 दिनों तक बिना भोजन के एक कमरे में बंद कर दिया गया था। वह तीन बार ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह करने के लिए जेल गए और आखिर में महात्मा गांधी के साथ अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गए। 70 के दशक में पंडित उमा दत्त शर्मा उत्तरप्रदेश सरकार में पशु और पशुपालन मंत्री बने और अपने समय के सबसे प्रसिद्ध नेताओं में से एक थे। 

कमला नेहरू 

आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को तो सब जानते है। लेकिन उनकी पत्नी कमला नेहरू ने भी देश को आजाद करवाने में अपना अहम योगदान दिया था। कमला की बहुत कम उम्र में शादी हो गई थी। स्वाभाव से शांत दिखने वाली महिला बाद में लौह स्त्री साबित हुई, जो धरने-जुलूस में अंग्रेजों का सामना करती, भूख हड़ताल करतीं और जेल की पथरीली धरती पर सोती थी। इन्होंने असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। कमला नेहरू दिल्ली के प्रमुख व्यापारी पंड़ित 'जवाहरलालमल' और राजपति कौल की बेटी थीं। कमला का जन्म 1 अगस्त 1899 को दिल्ली में हुआ था।

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Published By : Nisha Bharti

पब्लिश्ड 15 August 2021 at 00:15 IST