अपडेटेड 4 November 2023 at 12:11 IST

Ahoi Ashtami Katha: रखने जा रही हैं अहोई अष्टमी का व्रत? तो जरूर पढ़ें ये कथा, पूरी होगी पूजा!

Ahoi Ashtami का व्रत रखने वाली महिलाओं को व्रत की कथा जरूर पढ़नी चाहिए। मान्यता है कि बिना कथा के पूजा का पूरा फल नहीं मिलता है। आइए जानते हैं इस दिन कौन सी कथा पढ़ी जाती है। 

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Ahoi Ashtami Vrat Katha

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Ahoi Ashtami Vrat Katha image- freepik | Image: self

Ahoi Ashtami Vrat Katha: हर साल कार्ति माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। यह उपवास संतान की लंबी उम्र और उनकी सफलता के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं। शाम को पूजा करने के बाद रात में तारों को देखकर व्रत खोलती हैं, लेकिन यह पूजा तब तक सफल नहीं होती है जब तक इसकी कथा पढ़ी या सुनी न जाए। ऐसे में आइए जानते हैं अहोई अष्टमी पर कौन सी कथा पढ़नी चाहिए।

स्टोरी में आगे ये पढ़ें...

  • अहोई अष्टमी पूजा विधि क्या है?
  • अहोई अष्टमी पारण का समय क्या है?
  • अहोई अष्टमी व्रत कथा?  

अहोई अष्टमी पूजा विधि क्या है?

  • अहोई अष्‍टमी के दिन व्रत महिलाओं को सुबह जल्‍दी उठकर नहा-धो लेना चाहिए।
  • उसके बाद पूजाघर को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें।
  • फिर शुभ दिशा देखकर दीवार पर अहोई माता का चित्र बना लें या फिर बाजार से चित्र लाकर भी दीवार पर लगा सकते हैं।
  • उसके बाद शाम के समय में अहोई माता की पूजा करें और उन्‍हें हलवा, पूरी का भोग लगाएं।
  • फिर व्रत कथा पढ़ें और फिर तारों के निकलने का इंतजार करें।
  • रात में तारों को अर्घ्‍य देने के बाद इस व्रत का पारण करें।
  • Ahoi Ashtami के दिन भगवान शिव और माता पार्वती को दूध भात का भोग लगाना चाहिए और शाम को पीपल के पेड़ पर दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने पर भगवान की विशेष कृपा मिलती है। 

अहोई अष्टमी पारण का समय क्या है?

Ahoi Ashtami के दिन चांद नहीं बल्कि तारों को देखकर व्रत खोला जाता है। ऐसे में इस व्रत का पारण तारों को देखने के बाद कर सकते हैं। इस दिन तारोदय शाम 6 बजकर 36 मिनट पर होगा और चंद्रोदय रात 8 बजकर 34 मिनट पर होगा।

अहोई अष्टमी व्रत कथा?  

पौराणिक कथा के मुताबिक बहुत समय पहले की बात है। एक साहूकार पत्नि और सात बेटों के साथ एक गांव में रहता था। दीपावली से पहले साहूकार की पत्नी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को घर की लिपाई-पुताई करने के लिए मिट्टी लेने खेत में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। मिट्टी खोदते समय उसकी कुदाल अनजाने में एक पशु शावक (स्याहू के बच्चे) को लग गई जिससे उसकी मौत हो गई। इस घटना से दुखी होकर स्याहू की माता ने उस स्त्री को श्राप दे दिया। जिसके प्रभाव से कुछ ही दिनों के बाद इसके बेटे की मृत्यु हो जाती है। ऐसे ही साल भर में ही उसके सातों बेटे एक के बाद एक करके मर गए। जिसकी वजह से महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी।

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ऐसे मिली साहूकार के पत्ति को पाप से मुक्ति

फिर एक दिन साहूकार के गांव में एक सिद्ध महात्मा आए। साहूकार की पत्नी ने महात्मा को विलाप करते हुए पूरी घटना बताई। महात्मा ने कहा कि तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर स्याहू और  उसके बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करो और क्षमा-याचना करो। देवी मां की कृपा से तुम्हारा पाप नष्ट हो जाएगा। साहूकार की पत्नी ने साधु की बात मानकर कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन व्रत और पूजा की। व्रत के प्रभाव से उसके सातों पुत्र जीवित हो गए। तभी से महिलाएं संतान के सुख की कामना के लिए अहोई माता की पूजा करती हैं।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है। 

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Published By : Sadhna Mishra

पब्लिश्ड 4 November 2023 at 12:10 IST