अपडेटेड 25 June 2025 at 15:22 IST
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चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन लगता है, जबकि सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन लगता है। इन दोनों ही ग्रहणों के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
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बता दें, चंद्र और सूर्य ग्रहण दोनों राहु और केतु से संबंधित हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुंद्र मंथन चल रहा था तब उस दौरान देवों और देवताओं के बीच में अमृत पान को लेकर विवाद चल रहा था।
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ऐसे में मोहिनी एकादशी के दिन विष्णु भगवान ने मोहिनी का रूप धारण किया। इसके बाद भगवान विष्णु ने देवता और दानवों को अलग-अलग बैठा दिया।
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लेकिन देवताओं के बीच में कुछ दानव छल से आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया। ऐसा करते हुए चंद्रमा और सूर्य ने देख लिया।
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इसके बाद चंद्र और सूर्य इस बात की जानकारी भगवान विष्णु को दे दी। इसके बाद भगवान विष्णु ने राहु का सिर अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया।
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ऐसे में सिर अलग हो गया और धड़ अलग हो गया। ऐसे में राहु ने अमृत पान कर करा हुआ था इसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई।
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ऐसे में सिर का भाग राहु कहलाया और धड़ वाला भाग केतु कहलाया। इसी कारण सूर्य और चंद्रमा से राहु केतु नफरत करने लगे और उन्हें अपना शत्रु मानने लगे।
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जब पूर्णिमा के दिन राहु चंद्रमा को ग्रस लेता है तब चंद्र ग्रहण कहलाता है और जब अमावस्या के दिन सूर्य को राहु ग्रस लेता है तो सूर्य ग्रहण कहलाता है।
/ Image: freepikDisclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
पब्लिश्ड 25 June 2025 at 15:14 IST