अपडेटेड 26 August 2024 at 12:19 IST

Madhur Bhandarkar Birthday: मधुर भंडारकर ने कैसे सीखा फिल्में बनाना? जानें इनसे जुड़े कुछ किस्से...

स्कूल ड्रॉपआउट, तंगी और छोटी उम्र में जीविका चलाने के लिए अथक प्रयास यह है उस निर्माता निर्देशक का नाम जिन्हें हम और आप मधुर भंडारकर के तौर पर पहचानते हैं।

Madhur Bhandarkar
Madhur Bhandarkar | Image: Madhur Bhandarkar

स्कूल ड्रॉपआउट, तंगी और छोटी उम्र में जीविका चलाने के लिए अथक प्रयास यह है उस निर्माता निर्देशक का नाम जिन्हें हम और आप मधुर भंडारकर के तौर पर पहचानते हैं। निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पले बढ़े मधुर के जीवन में कड़वाहट कम नहीं रही। अनुभव स्क्रीन पर भी दिखे। यर्थाथवादी फिल्में गढ़ने वालों में से एक। 90 के दौर में इनका कोई सानी नहीं था। संवाद ऐसे होते थे जो दिल और दिमाग को भेद जाते थे।

चांदनी बार हो, फैशन हो, कॉरपोरेट हो या फिर इंदु सरकार सब समाज का आईना थीं। जब चांदनी बार की तब्बू बोलती है "जो सपने देखते हैं, वो ही तो जीते हैं" तो लगता है अरे ये तो मेरी भी सोच है। वहीं, फैशन का सोसाइटी में रहते हुए, हमें सोसाइटी के हिसाब से जीना पड़ता है" उस सपने को पाने के लिए संघर्ष की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है। फिल्में ऐसी रही जिसमें मॉर्डन वूमन की ख्वाहिशें, सपने, महत्वाकांक्षा के साथ ही जड़ों से जुड़ कर आगे बढ़ने का द्वंद दिखा।

उन्हें एक नहीं चार-चार नेशनल अवॉर्ड मिले…

मधुर की इस यर्थाथवादी सोच ने ही उन्हें एक नहीं चार-चार नेशनल अवॉर्ड दिलवाए। फिल्मों के प्रति उनके समर्पण और देन का सम्मान पद्म श्री के जरिए भी किया गया। वरना क्या कोई सोच सकता था कि गरीबी में जीवन बीताने वाला बच्चा, ट्रफिक सिग्नल पर च्युंग गम बेच कर परिवार के लिए दो पैसे कमाने वाला मधुर इंडस्ट्री का जुझारू और सुपरहिट डायरेक्टर बन जाएगा।

कहा जाता है कि वो दौर ऐसा था कि बॉक्स ऑफिस पर मधुर भंडारकर का नाम ही सफलता की गारंटी माना जाता था, चारों ओर इनकी चर्चा थी। शून्य से शिखर से पहुंचने का जश्न बॉलीवुड मनाता था तो एक्ट्रेस अपनी फीस तक में कटौती करती थीं। इनमें तब्बू, करीना, बिपाशा से लेकर प्रियंका चोपड़ा तक शामिल हैं। वो भी जानती थीं कि मधुर भंडारकर फिल्म इंडस्ट्री में सबसे मुखर निर्देशकों में से एक हैं। उनकी फिल्में जीवन की कठोर वास्तविकताओं के चित्रण के कारण किरदार को ऐसे पर्दे पर लाती हैं कि देखने वाला अवाक रह जाता है।

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एक हकीकत ये भी है कि उनकी फिल्मों ने हमें सबसे मजबूत महिला पात्र दिए हैं। वे समाज का आईना हैं और समाज में वास्तव में क्या होता है, दिखाने और बताने में किरदार हिचकिचाते नहीं हैं। ये सच्चाई शायद संघर्षों का नतीजा है। इन संघर्षों ने ही मधुर का सिनेमा के प्रति आकर्षण पैदा किया। वह किसी न किसी तरह से सिनेमा का हिस्सा बनना चाहते थे। बड़े पर्दे के प्रति रुझान तब और तीव्र हुआ जब 16 साल की उम्र में भंडारकर ने भारत के मुंबई के उपनगर खार (पश्चिम) में एक वीडियो कैसेट लाइब्रेरी में काम किया और साइकिल पर घर-घर जाकर कैसेट पहुँचाया। इस दौरान ही कैसेट संग्रह किए उन्हें देखा परखा और फिल्म की बारीकियों को समझ लिया। ये कैसेट में बंद चलचित्र ही उनके फिल्म निर्माण का अध्ययन का जरिया बनीं।

90 के दशक के अंत में कई फिल्म निर्माताओं के साथ काम करने के बाद, उन्होंने त्रिशक्ति (1999) फिल्म के साथ निर्देशन में पदार्पण किया, जिसे एक बेहतरीन पॉपकॉर्न एंटरटेनर कहा गया लेकिन टिकट खिड़की पर खास कमाल नहीं कर पाई। दो साल बाद चांदनी बार (2001) बनाई, जिसमें तब्बू ने अभिनय किया था। फिल्म को समीक्षकों ने खूब सराहा और बॉक्स-ऑफिस पर भी धमाल मचा दिया। इस एक मूवी ने ही भंडारकर को भारतीय फिल्म उद्योग में फिल्म निर्माताओं की शीर्ष श्रेणी में पहुंचा दिया। इस फिल्म के लिए उन्हें अपना पहला राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

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26 अगस्त को मधुर 56 साल के हो गए हैं लेकिन सिल्वर स्क्रीन पर कहानी परोसने की लालसा ज्यूं की त्यूं बनी हुई है। 2022 में आई बबली बाउंसर और इंडिया लॉकडाउन भले ही वो सफलता नहीं दिला पाईं लेकिन उनके फैशन वाले संवाद को जिंदा कर गई। जिसमें उनका किरदार कहता है- 'जीवन में कुछ भी आसान नहीं है, हर चीज़ के लिए लड़ना पड़ता है।' बिग स्क्रीन पर वास्तविकता का रंग भरने वाला ये पेंटर आज भी कुछ रियल देने की कोशिश में जुटा पड़ा है।

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Published By : Garima Garg

पब्लिश्ड 26 August 2024 at 12:19 IST