अपडेटेड 4 April 2024 at 10:52 IST
Lok Sabha Election: पप्पू यादव पूर्णिया को लेकर इतने टची क्यों? भावनाएं या समीकरण है वजह
पूर्णिया से कांग्रेस के पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। 4 अप्रैल को नामांकन दाखिल करने से पहले जो बोला उसमें कांफिडेंस झलका तो राजद के लिए तल्ख अंदाज भी!
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Pappu Yadav On Purnia: पप्पू यादव पूर्णिया को लेकर अड़े थे और अपनी कही कर भी दिखाई। अपने दल जन अधिकार पार्टी यानि जाप का विलय भी कर दिया, लेकिन गठबंधन के तहत ये सीट राजद के खाते में चली गई। मन मसोस कर रह गए थे। बीमा भारती जदयू से आईं और इस सीट पर दावेदारी ठोक दी। टिकट मिल भी गया। पप्पू गठबंधन धर्म को मान पीछे हटने को राजी थे। आखिर इतना अड़ियल रवैया क्यों?
पप्पू यादव अग्रेसिव हैं। पूर्णिया जीतने के लिए आतुर भी। इस सीट पर 2 बार भिन्न भिन्न पार्टियों से जीतते भी आए लेकिन मोदी लहर में हारे भी। मतांतर भी ज्यादा था लेकिन फिर ऐसा क्या है कि जीत को लेकर कॉन्फिडेंट हैं।
पूर्णिया से लगाव इतना क्यों?
पिछले कुछ सालों का रिकॉर्ड देखें तो गाड़ी कभी सरपट दौड़ी है तो कभी बेपटरी भी हुई है। अगर लंबे समय तक पूर्णिया से जीते हैं तो 2009 में मां को लड़ाने की स्ट्रैटजी फेल भी हुई फिर 2019 में भी मुंह की खाई। इस दौरान पप्पू यादव निर्दलीय तो कभी राजद तो कभी सपा से चुनावी समर में दम खम दिखाते दिखे। 2014 में मधेपुरा से उतरे तो जदयू के कद्दावर शरद यादव को भी हरा दिया। लेकिन 2019 में मधेपुरा सीट नहीं बचा सके। इसके बाद पूर्णिया का रुख किया। अपने पुराने रिकॉर्ड को खंगाला, खुद को मांझा और नए सिरे से मैदान में उतर गए। सोशल मीडिया के जरिए ग्राउंड जीरो पर पब्लिक संग कनेक्शन बनाते भी दिखे। कई इंटरव्यू में कहते हैं कि पूर्णिया उनकी मां की तरह है इसके लिए जान तक दे देंगे। यानि भावनात्मक तौर पर खुद को जुड़ा बताते हैं। इस क्षेत्र में किए गए प्रयासों का हवाला भी देते हैं, लेकिन क्या मात्र यही वजह है!
अब समझिए नंबर गेम
इसके पीछे 2019 में दो प्रत्याशियों के बीच का मतांतर बड़ी वजह है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार संतोष कुमार कुशवाहा को इस सीट पर 6,32,924 वोट मिले। कांग्रेस उम्मीदवार उदय सिंह को 3,69,463 वोट तो 18 हजार से ज्यादा लोगों ने NOTA का बटन दबाकर उम्मीदवारों के खिलाफ नाराजगी जाहिर की। संतोष कुमार कुशवाहा ने कांग्रेस उम्मीदवार उदय सिंह को 2,63,461 वोटों से हराया था।
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पूर्णिया लोकसभा सीट में करीब 60 फीसदी मतदाता हिन्दू, जबकि 40 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। हिन्दू मतदाताओं में पांच लाख एससी-एसटी, बीसी व ओबीसी मतदाता हैं। यादव डेढ़ लाख, ब्राह्मण सवा लाख और राजपूत मतदाताओं की संख्या सवा लाख से ज्यादा हैं। इसके अलावा एक लाख अन्य जातियों के मतदाता भी हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 7 लाख हैं।
इस बीच कहा जा रहा है कि पप्पू यादव ने पूर्णिया में जनसंपर्क के लिए 'प्रणाम पूर्णिया' अभियान शुरू किया था। समर्थकों का दावा है कि इस अभियान के तहत करीब छह लाख परिवारों से संपर्क साधा जा चुका है। यानि जीत के करीब पहुंचाता 6 लाख का आंकड़ा छू गए हैं। यादव और मुसलमानों पर भरोसा है।
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मधेपुरा ऑफर हुई पर ठुकरा दिया, क्यों?
विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर पप्पू पूर्णिया से नाता और मधेपुरा के भेद भाव की ओर इशारा कर चुके हैं। 2019 में करारी हार का सामना कर चुके हैं। कहते हैं- 20 साल बाद (2004 के बाद) भी पूर्णिया ने मुझे बेटे की तरह गले लगाया... क्षेत्र ने कभी जातिवाद नहीं किया, जबकि मधेपुरा के यादवों को लालू यादव अधिक और पप्पू यादव कम चाहिए... मेरे जैसे आदमी को चुनाव हरवा दिया जिसने हर घर की सेवा की...मधेपुरा मेरी विचारधारा और तौर-तरीकों से बहुत दूर है।
2019 में एनडीए की ओर से जेडीयू ने दिनेशचंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया था। जाप से पप्पू यादव और आरजेडी से शरद यादव मैदान में थे। जेडीयू उम्मीदवार को 6 लाख 24 हजार 334 वोट मिले जबकि शरद यादव को 3 लाख 22 हजार 807, पप्पू यादव को 97 हजार 631 वोट मिले। अगर पप्पू और राजद को मिले वोट जोड़ लें तो भी यह 4 लाख 20 हजार के करीब पहुंचता है जो जेडीयू उम्मीदवार को मिले वोट के मुकाबले करीब दो लाख कम हैं, ऐसे में मधेपुरा रिस्की सीट हो सकती थी, इसलिए पप्पू ने कन्नी काट ली।
Published By : Kiran Rai
पब्लिश्ड 4 April 2024 at 10:43 IST