अपडेटेड 12 January 2024 at 17:28 IST

Chandigarh Seat: 2004 से केंद्र में जिस दल की सरकार, उसने जीता चंडीगढ़... क्या इस बार बदलेगा गणित

केंद्र शासित राज्यों में शामिल चंडीगढ़ में लोकसभा की एक ही सीट है, जहां से फिलहाल भारतीय जनता पार्टी की किरण खेर सांसद हैं।

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Chandigarh Lok Sabha Seat profile
चंडीगढ़ लोकसभा सीट | Image: Facebook

Chandigarh Lok Sabha Election: हरियाणा और पंजाब की संयुक्त राजधानी और सिटी ब्यूटीफुल के नाम से प्रसिद्ध चंडीगढ़ भी लोकसभा चुनावों के लिए तैयार है। केंद्र शासित राज्यों में शामिल चंडीगढ़ में लोकसभा की एक ही सीट है, जहां से फिलहाल भारतीय जनता पार्टी की किरण खेर सांसद हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, 114 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले चंडीगढ़ की जनसंख्या 10.54 लाख से अधिक है।

चंडीगढ़ जिस तरह केंद्र शासित प्रदेश है, ठीक वैसे ही पिछले कई चुनावों में नतीजे रहे हैं। केंद्र में जिसकी सरकार रही है, कई चुनावों में उसी पार्टी को जीत मिली है। पिछले दो चुनावों (2014 और 2019) से यहां बीजेपी का कब्जा है। हालांकि उसके पहले 15 साल तक कांग्रेस पार्टी यहां राज करती रही।

2019 के चुनाव नतीजे

2019 के आंकड़ों के मुताबिक, चंडीगढ़ में 6.15 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमें से करीब 4.56 लाख मतदाताओं ने अपना मत का इस्तेमाल किया था। मतलब करीब 74.2 प्रतिशत वोट पड़े। इस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर किरण खेर को जीत मिली। उन्होंने 46970 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। किरण खेर को 231,188 वोट मिले। कांग्रेस ने पवन बंसल पर दांव लगाया था, जो 184,218 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर आए।

2014 के नतीजे

2014 में भी किरण खेर को जीत मिली थी। 2019 की तरह कांग्रेस के प्रत्याशी पवन बंसल दूसरे नंबर पर आए। उस समय किरण खेर 69642 वोटों के अंतर से जीतीं। उन्हें 191,362 वोट मिले थे, जबकि पवन बंसल के खाते में 121,720 वोट आए।

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अहम बात ये कि 2014 और 2019, दोनों ही चुनावों में आम आदमी पार्टी यहां तीसरी नंबर पर रही। फिलहाल आम आदमी पार्टी INDI गठबंधन का हिस्सा है तो विपक्षी के उम्मीदवार पर यहां हर किसी की नजर रहेगी।

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चंडीगढ़ का इतिहास

चंडीगढ़ मध्‍यकाल से लेकर आधुनिक काल तक पंजाब प्रांत का हिस्‍सा रहा। साल 1947 में देश के बंटवारे के समय पंजाब प्रांत दो हिस्सों में पूर्वी और पश्चिमी पंजाब में बंटा। जब पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान के हिस्से में चला गया तो वहां से निकाले गए हजारों शरणार्थियों को बसाने के लिए चंडीगढ़ शहर बनाया गया था।

मार्च 1948 में पंजाब सरकार ने भारत सरकार के परामर्श से शिवालिक की पहाड़ियों की तलहटी के क्षेत्र को नई राजधानी के रूप में चुना। 1952 से 1966 तक चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी थी। शहर के नागरिकों का राज्य की विधानसभा में प्रतिनिधित्व था और एक मुख्य आयुक्त स्थानीय प्रशासन का नेतृत्व करता था। जब पंजाब अविभाजित था तो चंडीगढ़ भारत के अन्य बड़े शहरों की तरह राज्य प्रशासन के बड़े ढांचे में फिट हुआ।

हालांकि 1966 में पंजाब का विभाजन हुआ तो हिंदी भाषी राज्य के तौर पर हरियाणा भारत का 17वां राज्य बना, लेकिन दोनों ही राज्यों की राजधानी चंडीगढ़ ही रही। मुद्दे का समाधान ना होने तक केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ को एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया और इसका प्रशासन सीधे केंद्र सरकार के अधीन कार्य करने लगा।

यूटी के प्रशासक को मुख्य आयुक्त के रूप में नियुक्त करने की प्रथा 31 मई 1984 तक जारी रही। इसके बाद 1 जून, 1984 को पंजाब के राज्यपाल ने प्रशासक के रूप में केंद्र शासित प्रदेश का प्रत्यक्ष प्रशासन संभाला। मुख्य आयुक्त को प्रशासक के सलाहकार के रूप में फिर से नामित किया गया। जून 1984 से पंजाब के राज्यपाल केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासक के रूप में कार्य कर रहे हैं।

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Published By : Amit Bajpayee

पब्लिश्ड 12 January 2024 at 17:16 IST