अपडेटेड 9 April 2024 at 16:33 IST
Begusarai: क्या गिरिराज लगाएंगे BJP की जीत का हैट्रिक या अवधेश राय देंगे चुनौती? हार-जीत का समीकरण
बिहार की हॉटसीट्स में से एक है बेगूसराय। INDI अलायंस से पहले ही CPI ने अपने प्रत्याशी का ऐलान कर दिया। सीटिंग MP गिरिराज की जीत तय मानी जा रही है!
- चुनाव न्यूज़
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Begusarai: बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में 7 विधानसभा सीटें हैं। इनमें चेरिया बरियारपुर, बछवाड़ा, तेघड़ा, मटिहानी, साहेबपुर कमाल, बेगूसराय और बखरी विधानसभा सीट शामिल हैं। 2014 और 2019 में बीजेपी ने जीत का परचम लहराया तो इस बार भी समीकरणों के आधार पर दावा किया जा रहा है कि पार्टी सीट निकाल लेगी। गिरिराज यहां से दूसरी बार कांग्रेस की झोली में जीत का फल डाल देंगे।
भाकपा ने अवधेश राय को टिकट थमाया है जिनके हार को लेकर लोकसभा क्षेत्र आश्वस्त है। पिछली बार वामदल ने ही कन्हैया कुमार को उम्मीदवार बनाया था लेकिन वो 4 लाख से भी ज्यादा वोटों से हार गए। इस बार प्रिडिक्शन का आधार वो जातीय समीकरण है जो बिहार में किसी भी प्रत्याशी या दल को जीताने या हराने में अहम भूमिका अदा करता है।
गिरिराज क्यों जीतेंगे?
चुनावी समर में उतरने से पहले ही जीत का दावा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि ये जाति का मामला है। ये भूमिहार बहुल क्षेत्र है। एक अनुमान के मुताबिक भूमिहारों की संख्या यहां पर साढ़े 4 लाख से भी ज्यादा है। गिरिराज इसी जाति से आते हैं। गिरिराज सिंह की गिनती प्रदेश के दिग्गज भूमिहार नेताओं में होती है। तो वहीं मुसलमानों की संख्या ढाई लाख, कुर्मी-कुशवाहा की 2 लाख और यादवों की संख्या डेढ़ लाख के करीब है। अवधेश राय यादव समाज से ताल्लुक रखते हैं। इनके अलावा क्षेत्र में ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ समुदाय के वोटर्स भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
जाति बेस्ड समीकरण बताता है कि यहां की सियासत की धुरी भूमिहार समाज के चारों ओर घूमती है। 2014 में भोला सिंह जीते वो भी भूमिहार थे। यही वजह है कि 2019 में कभी वामपंथ का गढ़ रहे इस इलाके में कन्हैया पर दांव लगाया गया। सोच ये थी कि दलित और अल्पसंख्यकों का वोट मिलाकर जीत आसान होगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जदयू भाजपा ने मिलकर लड़ाई लड़ी और जदयू का कोर वोटर भी गिरिराज के पक्ष में चला गया। अल्पसंख्यकों का वोट शेयर बंटा और विपक्ष का बंटाधार हो गया।
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इस बार भी जदयू-भाजपा साथ- साथ हैं। कैंडिडेट भूमिहार है और उनके मुकाबले में खड़े हैं अवधेश राय जो समीकरण के लिहाज से पिछड़ सकते हैं।
भाजपा की हैट्रिक तय!
जीत का कारण वोट परसेंटेज भी है जो एनडीए के पक्ष में लगातार बढ़ा है। 2014 में जहां 24.08 फीसदी था वहीं 2019 में दो गुना से भी ज्यादा बढ़ गया और 56.44 फीसदी तक पहुंच गया। इससे पहले 2009 में जदयू उम्मीदवार यहां से लड़े और जीते। तब डॉक्टर मुनाजिर हसन को 13 फीसदी वोट मिला था और वो जीत गए थे। यानि जदयू के बाद भाजपा पर लोगों का वोट पड़ा है। 2019 में भाजपा के गिरिराज सिंह को 6 लाख 92 हजार 193 वोट मिले थे, जबकि भाकपा के कन्हैया कुमार 2 लाख 6 हजार 976 वोट पर सिमट गए थे। वहीं राजद के तनवीर हसन 1 लाख 98 हजार 233 वोट प्राप्त कर तीसरे नंबर पर सरक गए थे। इस सीट को लेकर असमंजस की स्थिति भी एक वजह है। सीपीआई ने पहले ही अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया और जता दिया कि गठबंधन एकजुट नहीं है।
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बेगूसराय के बारे में...
बेगूसराय का 2009 में परिसीमन हुआ। इसके बाद बलिया और बेगूसराय को मिलाकर एक कर दिया गया। परिसीमन से पहले की इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस का ही दबदबा रहा। साल 1952 और 1957 के चुनाव में मथुरा प्रसाद मिश्र (कांग्रेस) विजयी जीते तो वहीं 1967 के चुनाव को सीपीआई के योगेंद्र शर्मा ने अपना सिक्का जमाया। बेगसराय का क्षेत्रफल 1918 वर्ग किमी है। यहां पर 18 प्रखण्ड और 1229 गांव हैं। बेगूसराय में जयमंगला गढ़ है कांवर झील के पास स्थित है। किसी जमाने में इसे पूरब का लेनिनग्राद भी कहा जाता था। यहां भूमिहारों ने बड़े जमींदारों (भूमिहार ही थे) के खिलाफ मोर्चा खोला औक लाल मिर्च की खेती पर एकाधिकार खत्म किया। तेघड़ा विधानसभा सीट को 'छोटा मॉस्को' के नाम से भी जाना जाता था यहां पर 1962 से लेकर 2010 का वामपंथी पार्टियों का कब्जा रहा।
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Published By : Kiran Rai
पब्लिश्ड 8 April 2024 at 14:08 IST