अपडेटेड 25 February 2024 at 18:13 IST

देश में कैसे हुआ था पहला लोकसभा चुनाव? 4 महीने तक चली थी पहले चुनाव की प्रक्रिया

Lok Sabha Election : देश के पहले लोकसभा चुनाव में 17 करोड़ 30 लाख मतदाताओं ने 1,874 उम्मीदवारों में से अपने प्रतिनिधियों का चयन किया था।

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देश में कैसे हुआ था पहला लोकसभा चुनाव? | Image: PTI

नवोदित भारतीय गणतंत्र ने 1951-52 के चुनाव की अलग-अलग चुनौतियों को पार करते हुए और कई आलोचकों को गलत साबित करते हुए अभूतपूर्व लोकतांत्रिक प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की थी, जब देश के बंटवारे के जख्म भरे नहीं थे और उस समय बड़ी संख्या में मतदाता निरक्षर थे। आजादी के बाद भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने लोकसभा की 489 सीट के लिए जब देश का पहला संसदीय चुनाव कराया था, उस समय आयोग बने बमुश्किल एक ही साल हुआ था।

पहले लोकसभा चुनाव में 17 करोड़ 30 लाख मतदाताओं ने 1,874 उम्मीदवारों में से अपने प्रतिनिधियों का चयन किया था। इस साल लोकसभा के 18वें आम चुनावों की तैयारी में लगे निर्वाचन आयोग पर 1950 के दशक में जनसांख्यिकीय, भौगोलिक और साजो सामान संबंधी चुनौतियों का सामना करते हुए चुनाव कराने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी।

दुनिया में सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि 1951-52 का पहला आम चुनाव उस समय भी ‘‘दुनिया में हुई सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया’’ थी। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘सुकुमार सेन (भारत के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त) को सलाम है जिन्होंने पहला आम चुनाव कराया और बेहतरीन प्रदर्शन किया। इतनी व्यापक प्रक्रिया को किसी पूर्व अनुभव के बिना सम्पन्न किया गया जिसके लिए पहले से कोई बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं था।’’

4 महीने चली पहले चुनाव की प्रक्रिया

कुरैशी ने कहा कि भारत ने वास्तव में ‘‘एक बेहतरीन प्रयोग’’ किया था जैसा कि उस समय फिल्म प्रभाग द्वारा चुनाव पर निर्मित एक लघु वीडियो में दिखाया गया था। इस वीडियो में यह भी उल्लेख किया गया था कि चुनाव की वास्तविक प्रक्रिया से पहले ‘मॉक’ (अभ्यास) चुनाव कराए गए थे। आयोग द्वारा प्रकाशित ‘जनरल इलेक्शंस 2019: एन एटलस’ के अनुसार, पहले चुनाव की प्रक्रिया 25 अक्टूबर, 1951 को शुरू हुई और यह चार महीने तक चली। इस दौरान 17 दिन मतदान हुआ था।

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अजनबियों को नाम नहीं बताती थी महिलाएं

यह प्रक्रिया शुरू करने से पहले मतदाता सूची तैयार करते समय आयोग ने पाया कि कुछ राज्यों में बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं का पंजीकरण ‘‘उनके अपने नाम से नहीं’’ बल्कि उनके परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ उनके संबंधों के विवरण के आधार पर किया गया था, जैसे अमुक व्यक्ति की मां या पत्नी आदि। स्थानीय प्रचलन के अनुसार, इन इलाकों में महिलाएं अजनबियों को अपना नाम बताने से कतराती थीं।

20 से 80 लाख महिलाओं ने नहीं दी जानकारी

पहले आम चुनावों पर 1955 में प्रकाशित आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, उस समय निर्देश जारी किए गए थे कि मतदाता का नाम उसकी पहचान का एक अनिवार्य हिस्सा है इसलिए इसे मतदाता सूची में शामिल किया जाना चाहिए। उस समय लोगों में जागरूकता बढ़ाई गई और मतदाताओं का असल नाम जोड़ने के लिए चुनाव कराने की अवधि को विशेष रूप से बढ़ाया गया।

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रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘देश में कुल लगभग आठ करोड़ महिला मतदाताओं में से लगभग 20 से 80 लाख महिलाओं ने अपने असल नाम की जानकारी नहीं दी जिसके कारण उनसे संबंधित प्रविष्टियों को मतदाता सूची से हटाना पड़ा। ऐसे सभी मामले बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत, राजस्थान और विंध्य प्रदेश राज्यों में सामने आए थे।’’

1,96,084 मतदान केंद्र

दिल्ली के पूर्व मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) चंद्र भूषण कुमार ने कहा कि उस समय महिला मतदाताओं से मतदाता सूची में अपना नाम घोषित करने के लिए कहना आयोग का एक ‘‘बहुत ही उल्लेखनीय रुख’’ था। कुमार ने कहा कि उस दौरान तय की गई बहुत सी चीजें ‘‘हमारी पूरी चुनावी प्रक्रिया का अभिन्न अंग’’ बन गई हैं, चाहे यह चुनाव चिह्न हों या अमिट स्याही का इस्तेमाल हो। पूरे देश में 1,96,084 मतदान केंद्र स्थापित किए गए थे। मतदान की प्रक्रिया बर्फबारी के मौसम से पहले हिमाचल प्रदेश से शुरू की गई थी।

रिपोर्ट में कहा गया कि आयोग को इस राष्ट्रव्यापी प्रक्रिया के दौरान उन दुर्गम इलाकों तक पहुंचने की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा, जहां विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र थे, जहां सड़कें नहीं थीं और संचार सुविधाओं का अभाव था और जोधपुर एवं जैसलमेर जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में ऊंटों का इस्तेमाल किया गया था। जहां भी सार्वजनिक भवन अपर्याप्त थे, वहां मतदान के लिए डाक बंगलों और निजी भवनों का भी उपयोग किया गया था।

कुरैशी ने कहा कि मुख्य रूप से पश्चिमी देशों के आलोचकों समेत कई ऐसे कई लोग थे, जिन्हें लगा था कि पहला चुनाव कराना असफल प्रयोग साबित होगा। उन्होंने कहा, ‘‘उस समय भारत में लगभग 84 प्रतिशत लोग निरक्षर थे। आलोचकों का कहना था कि निरक्षर लोग लोकतंत्र की प्रक्रिया में कैसे भाग ले सकते हैं और उनका मानना था कि हम असफल रहेंगे। निरक्षरता के अलावा, गरीबी, सामाजिक विभाजन और बंटवारे के बाद सांप्रदायिक विभाजन की भी दिक्कत थी... लेकिन हमने पहले ही चुनाव में हमारे असफल रहने की आशंकाओं को गलत साबित कर दिया।’’

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(Note: इस भाषा कॉपी में हेडलाइन के अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है)

Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 25 February 2024 at 18:13 IST