अपडेटेड 17 October 2025 at 21:22 IST
बिहार चुनाव में ओसामा की एंट्री से मचा घमासान... तो जान लीजिए उनके पिता शहाबुद्दीन की क्राइम कुंडली, जिसके तेजाब कांड से हिल गया था देश
बिहार चुनाव में यूं तो कई हॉट सीटें हैं लेकिन सीवान जिले की रघुनाथपुर विधानसभा सीट की इन दिनों काफी चर्चा हो रही है। इसके पीछे का कारण राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार ओसामा हैं।
- चुनाव न्यूज़
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बिहार चुनाव में यूं तो कई हॉट सीटें हैं लेकिन सीवान जिले की रघुनाथपुर विधानसभा सीट की इन दिनों काफी चर्चा हो रही है। इसके पीछे का कारण राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार ओसामा हैं। जी हां ओसामा खूंखार डॉन और बाहुबली शहाबुद्दीन के बेटे हैं। ओसामा को टिकट दिए जाने पर बीजेपी भड़क गई है। बीजेपी ने कहा है कि बिहार शहाबुद्दीन के आतंक को नहीं भूलेगा। ओसामा को टिकट देकर राजद क्या संदेश देना चाहती है।
वैसे तो बिहार चुनाव से शहाबुद्दीन का नाम गायब हो चुका था लेकिन ओसामा को टिकट दिए जाने के बाद उसका नाम फिर से चर्चा में आ गया है। तो आइए आज आपको शहाबुद्दीन के आतंकी की पूरी कहानी विस्तार से बताते हैं। आपको वो वारदात भी बताएंगे जब शहाबुद्दीन ने दो भाईयों को तेजाब से नहलाकर मार डाला था।
सीवान से संसद तक: ‘सुल्तान’ शहाबुद्दीन के आतंक की गाथा
बिहार की राजनीति और अपराध के इतिहास में एक नाम हमेशा विवादों के केंद्र में रहा — मोहम्मद शहाबुद्दीन। कभी ‘सीवान का सुल्तान’ कहा जाने वाला यह शख्स सत्ता, अपराध और जनाधार के विचित्र संगम का प्रतीक था। एक दौर में पूरा जिला मानो उसके इशारों पर चलता था। 10 मई 1967 को सीवान के प्रतापपुर में जन्मे शहाबुद्दीन ने राजनीतिक विज्ञान में एमए और पीएचडी कर रखी थी।
कहा जाता है कि कॉलेज के दिनों में ही उसने स्थानीय राजनीति में सक्रियता दिखाई और यही सक्रियता धीरे-धीरे आपराधिक रास्तों से गुजरते हुए सत्ता के गलियारों में पहुंच गई। सीवान पुलिस ने जल्द ही उसे “ए-कैटेगरी हिस्ट्रीशीटर” घोषित कर दिया, लेकिन भीड़ में उसका समर्थन बढ़ता गया।
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कम उम्र में जेल से लड़ा चुनाव और बना विधायक
वर्ष 1990 शहाबुद्दीन के जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुआ। उसी वर्ष जब देश में राम रथ यात्रा से राजनीति में हलचल मची हुई थी, वह जेल में बंद होकर भी जीरादेई विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार बना और जीत गया। यह वही क्षेत्र था जहां कभी भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि स्थानीय कांग्रेस विधायक त्रिभुवन नारायण सिंह ने किसी आपराधिक मुकदमे में उसकी पैरवी करने से इंकार किया था, और यही राजनीतिक प्रतिशोध उसकी प्रेरणा बन गया।
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शक्ति का उदय और राजनीतिक गठजोड़
इस अप्रत्याशित जीत के बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिरौती, अपहरण और हत्या के अनेक मामलों में नाम आने लगा, पर उसका रुतबा लगातार बढ़ता गया। लालू प्रसाद यादव ने उसकी लोकप्रियता को भांपते हुए उसे जनता दल की युवा इकाई में जगह दी। 1995 में वह विधायक चुना गया और 1996 में पहली बार लोकसभा पहुंचा। 1997 में राजद (राष्ट्रीय जनता दल) के गठन के साथ उसकी ताकत और भी बढ़ी। सीवान में उसके नाम पर पोस्टर, कटआउट और निजी दरबार आम हो गए थे। भूमि विवाद से लेकर डॉक्टर की फीस तक के फैसले वह खुद करने लगा।
सत्ता और आतंक का गठबंधन
साल 2001 की नागरिक अधिकार संस्था पीयूसीएल की रिपोर्ट ने खुलासा किया कि राज्य सरकार की शह पर शहाबुद्दीन बेलगाम चल रहा था। पुलिसकर्मी तक उसकी पहुंच से डरते थे, और उसके खिलाफ गवाही देने वाला कोई नहीं मिलता था। इसी दौरान उसने पुलिस अधिकारियों से भिड़ंत कर दी, जिसमें एक मुठभेड़ में दस लोगों की मौत तक हो गई।
दो भाइयों को तेजाब से नहलाकर मार डाला
अगस्त 2004 में शहाबुद्दीन और उसके लोगों ने रंगदारी न देने पर सीवान के प्रतापपुर गांव में एक व्यवसायी चंदा बाबू के दो बेटों सतीश और गिरीश रोशन को तेजाब डालकर जिंदा जला दिया था। इसी मामले में शहाबुद्दीन समेत चार लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। इस मामले ने देश को हिला दिया था और पुलिस की भूमिका की भारी आलोचना हुई थी। क्योंकि पुलिस ने पीड़ित परिवार को ही सीवान छोड़ने की नसीहत दी थी। मामला एक विशेष अदालत में चला गया और शहाबुद्दीन को आजीवन कारावास की सजा हुई।
ऐसा था शहाबुद्दीन का खौफ
शहाबुद्दीन की अपराधों की लिस्ट बहुत लम्बी है। बहुत तो ऐसे हैं, जिनका कोई हिसाब नहीं है। जैसे सालों तक सीवान में डॉक्टर फीस के नाम पर 50 रुपये लेते थे। क्योंकि साहब का ऑर्डर था। रात को 8 बजने से पहले लोग घर में घुस जाते थे। क्योंकि शहाबुद्दीन का डर था। कोई नई कार नहीं खरीदता था। अपनी तनख्वाह किसी को नहीं बताता था क्योंकि रंगदारी देनी पड़ेगी।
शादी-विवाह में कितना खर्च हुआ, कोई कहीं नहीं बताता था। बहुत बार तो लोग ये भी नहीं बताते थे कि बच्चे कहां नौकरी कर रहे हैं। कई घरों में ऐसा हुआ कि कुछ बच्चे नौकरी कर रहे हैं, तो कुछ घर पर ही रह गए। क्योंकि सारे बाहर चले जाते तो मां-बाप को रंगदारी देनी पड़ती। धनी लोग पुरानी मोटरसाइकिल से चलते और कम पैसे वाले पैदल।
गिरफ्तारी और पतन की शुरुआत
2004 में वामपंथी कार्यकर्ता की हत्या के मामले में उसकी गिरफ्तारी हुई, पर अस्पताल को उसने चुनावी वार रूम बना दिया। पटना हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उसे जेल भेजा गया, फिर भी उसी वर्ष वह फिर से लोकसभा चुनाव जीत गया। हालांकि 2005 आते-आते उसका साम्राज्य डगमगाने लगा। पुलिस ने उसके घर से न सिर्फ आधुनिक हथियार बल्कि पाकिस्तानी फैक्टरियों में बने बंदूकें और सेना के उपकरण बरामद किए। इसके बाद उसके खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ गई और अंततः उसे उम्रकैद की सजा मिली।
सीवान के सुल्तान को सीवान की जी जमीन नहीं हुई नसीब
2009 में अदालत ने उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई तो उसने अपनी पत्नी हिना शहाब को मैदान में उतार दिया। वह चुनाव हार गईं। अंततः मई 2021 में तिहाड़ जेल में कोविड संक्रमण के दौरान शहाबुद्दीन की मृत्यु हो गई। उसका पार्थिव शरीर सीवान नहीं पहुंच सका। जिसे उसने दशकों तक अपनी निजी रियासत की तरह चलाया था। सख्त प्रोटोकॉल के बीच “सीवान के सुल्तान” को सीवान में ही दो गज जमीन नसीब नहीं हुई। उसे दिल्ली में ही दफन कर दिया गया।
Published By : Ankur Shrivastava
पब्लिश्ड 17 October 2025 at 21:22 IST