अपडेटेड 9 February 2025 at 20:33 IST

1993 से लेकर अब तक दिल्ली में उतार-चढ़ाव भरा रहा BJP का सफर, मजबूत संगठन के बावजूद रही सत्ता से दूर

Delhi Chunav: BJP का दिल्ली विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन 1993 से लेकर अब तक उतार-चढ़ाव भरा रहा है। मजबूत संगठन के बावजूद BJP को सत्ता से बाहर रहना पड़ा।

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From 1993 till now, BJP's journey in Delhi
दिल्ली में उतार-चढ़ाव भरा रहा BJP का सफर | Image: Republic

Delhi Election Results: दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ( BJP ) ने आम आदमी पार्टी (AAP) को पटखनी देकर पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है। इस जीत के साथ ही BJP का दिल्ली की सत्ता में आने का करीब 27 साल का सूखा खत्म हो गया है। BJP की इस लहर में AAP मुखिया अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे कई दिग्गज चुनाव हार गए हैं।

साल 1991 में 69वें संविधान संशोधन के तहत दिल्ली को 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT)' का दर्जा मिला और 1993 में विधानसभा की बहाली के बाद पहली बार चुनाव हुए। 1993 के चुनाव में BJP ने जीत हासिल की और मदन लाल खुराना पहले मुख्यमंत्री बने। BJP दिल्ली की सत्ता में आखिरी बार 2 दिसंबर, 1993 से 3 दिसंबर, 1998 तक रही। इस दौरान 3 मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज रहे।

मजबूत संगठन के बावजूद सत्ता से दूर

BJP 1993 के चुनाव में जीती, लेकिन 1998 के बाद से विधानसभा में सत्ता नहीं मिली। BJP का दिल्ली विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन 1993 से लेकर अब तक उतार-चढ़ाव भरा रहा है। पार्टी ने शुरुआती दौर में मजबूत पकड़ बनाई, लेकिन 1998 के बाद कांग्रेस और फिर 2013 के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) के उभार से कमजोर होती गई। मजबूत संगठन के बावजूद BJP को सत्ता से बाहर रहना पड़ा। AAP के आने के बाद से BJP का प्रदर्शन कमजोर हुआ और कांग्रेस तो पूरी तरह से हाशिए पर चली गई। 2020 के चुनाव में BJP का वोट प्रतिशत तो बढ़ा, लेकिन सीटें नहीं बढ़ीं।

1993: BJP की पहली जीत

विधानसभा की बहाली के बाद हुए पहले चुनाव में BJP को 49 सीटें मिली थी। कांग्रेस को 14 और अन्य के खाते में 7 सीटें आई थी। जीत के बाद मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने, लेकिन बाद में साहिब सिंह वर्मा और फिर सुषमा स्वराज ने भी पद संभाला। यह BJP के लिए सुनहरा दौर था।

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मंहगी प्याज बनी हार का कारण, कांग्रेस की वापसी

1998 के बाद हुए विधानसभा चुनाव में BJP 49 सीट से सिकुड़कर 15 सीटों पर सिमट गई और कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की। कांग्रेस ने 52 सीटों पर जीत दर्ज की और शीला दीक्षित मुख्यमंभी बनीं। इस चुनाव में BJP की हार का कारण प्याज की बढ़ती कीमतें और महंगाई रहा।

2003 और 2008 की हार

1998 के बाद BJP को 2003 के चुनाव में फिर से हार मिली। 2003 में BJP का प्रदर्शन तो सुधरा, लेकिन जीत नहीं पाई। BJP को 20 और कांग्रेस को 47 सीट शीला दीक्षित फिर से CM बनीं। BJP ने मुख्यमंत्री चेहरा नहीं बदला, जिससे कांग्रेस को फायदा मिला।

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2003 के बाद 2008 के चुनाव में BJP की फिर से हार हुई। BJP ने विजय गोयल और हर्षवर्धन को आगे किया, लेकिन जनता ने शीला दीक्षित को चुना। BJP ने 23 सीटें और कांग्रेस ने 43 जीती शीला दीक्षित लगातार तीसरी बार CM बनीं। कांग्रेस का मजबूत संगठन और मुफ्त योजनाएं BJP पर भारी पड़ीं।

2013-15: AAP की सुनामी, BJP को करारी हार

2013 के चुनाव में BJP सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार नहीं बना पाई। BJP को 31, AAP को 28 और कांग्रेस 8 सीट मिली। अरविंद केजरीवाल की AAP ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन 49 दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा। 2015 के चुनाव में AAP की सुनामी आई और BJP उसमें बह गई। BJP 31 सीटों से सिमटकर 3 पर आई, AAP को 67 सीट मिली और कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। मोदी लहर के बावजूद भी मुख्यमंत्री उम्मीदवार किरण बेदी तक अपनी सीट नहीं बचा पाईं।

2020: BJP का प्रदर्शन सुधरा, लेकिन AAP भारी

2020 में हुए विधानसभा चुनाव में BJP को 8 सीट, AAP को 62 सीट और कांग्रेस का फिर से खाता तक नहीं खुल पाया। BJP का वोट शेयर 38.5% तक बढ़ा, लेकिन सीटें सिर्फ 8 मिलीं। पार्टी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं होने से नुकसान हुआ। शाहीन बाग और देशभक्ति जैसे मुद्दे उठाए, लेकिन अरविंद केजरीवाल की मुफ्त योजनाओं ने असर दिखाया।

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Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 8 February 2025 at 18:05 IST