अपडेटेड 26 January 2024 at 19:44 IST
Sakat Chauth Katha: देवरानी-जेठानी की कथा के बिना अधूरा होता है सकट चौथ का व्रत, जरूर सुनें
Sakat Chauth Vrat के दिन माताएं अपनी संतान के लिए कठिन व्रत रखती हैं। इस दिन पूजा-पाठ के साथ कथा का विशेष महत्व माना जाता है।
- धर्म और अध्यात्म
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Sakat Chauth 2024 Vrat Katha: हर साल माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ का व्रत रखा जाता है। गणेश जी को समर्पित यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए रखती हैं। इस दिन माताएं पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं और रात में गणपति भगवान की पूजा और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खाती हैं, लेकिन इस व्रत को तब तक पूरा नहीं माना जाता है जब तक इससे जुड़ी देवरानी-जेठानी की कथा न सुनी जाए।
दरअसल, माह की चुतर्थी तिथि के दिन रखा जाने वाला सकट चौथ का व्रत बहुत ही खास होता है। इस दिन गणेश भगवान की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के साथ ही कथा सुनना अनिवार्य होता है। तो चलिए जानते हैं यह कौन सी कथा है।
सकट चौथ व्रत कथा
एक समय की बात है एक शहर में देवरानी जेठानी रहती थी। देवरानी गणेश जी की बड़ी भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर उसे बेचता था और अक्सर बीमार रहता था। देवरानी गरीब थी और जेठानी अमीर थी। देवरानी अपनी जेठानी के घर का सारा काम करती और बदले में जेठानी उसे बचा हुआ खाना, पुराने कपड़े आदि दे देती थी। इसी से देवरानी का परिवार चल रहा था।
ऐसे ही करते-करते देवरानी के दिन किसी तरह से गुजर रहे थे। ऐसे ही करते-करते माघ का महीना आ गया और इसकी चतुर्थी तिथि पर देवरानी ने तिल चौथ यानी सकट चौथ का व्रत किया और पूजा करके तिल चौथ की कथा सुनी और तिलकुट्टा छींके में रख दिया और सोचा की चांद निकलने के बाद ही कुछ खायेगी। इस तरह से कथा सुनकर वह जेठानी के यहां काम करने चली गई।
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जेठानी से यहां पहुंचकर खाना बनाकर जेठानी के बच्चों को खाना खाने को कहा तो बच्चे बोले– मां ने व्रत किया हैं और मां भूखी हैं। जब मां खाना खायेगी तभी हम भी खाएंगे। जेठजी को खाना खाने को कहा तो जेठजी बोले मैं अकेला नहीं खाऊंगा, जब चांद निकलेगा, तभी मैं खाऊंगा। इस पर देवरानी ने कहा – मुझे घर जाना है इसलिए मुझे खाना दे दो। तब जेठानी ने उसे कहा– आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूं ? तुम सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना।
जेठानी की ये बात सुनकर देवरानी उदास होकर घर चली आई। देवरानी के घर पर पति, बच्चे सब आस लगाए बैठे थे की आज तो त्यौहार हैं इसलिए कुछ अच्छा खाना खाने को मिलेगा, लेकिन जब बच्चों को पता चला कि आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे। ये देखकर देवरानी के पति को गुस्सा आ गया और कहने लगा कि दिन भर काम करने के बाद भी दो रोटियां नहीं ला सकती। तो काम क्यों करती हो? पति ने गुस्से में आकर पत्नी को कपड़े धोने के धोवने से पीटा। धोवना हाथ से छूट गया तो पाटे से मारा। वो बेचारी गणेश जी को याद करती हुई रोते हुए पानी पीकर सो गई।
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उस दिन गणेश जी देवरानी के सपने में आए और कहने लगे धोवने मारी, पाटे मारी, सो रही है या जाग रही है। वह बोली कुछ सो रहे हैं, कुछ जाग रहे हैं। तब गणेश जी बोले भूख लगी हैं, खाने के लिए कुछ दे। देवरानी बोली क्या दूं, मेरे घर में तो अन्न का एक दाना भी नहीं हैं, जेठानी बचा हुआ खाना देती थी आज वो भी नहीं मिला। देवरानी ने आगे कहा कि पूजा का बचा हुआ तिलकुटा छींके में पड़ा हैं, वही खा लो। गणेश जी ने तिलकुट खाया और उसके बाद कहने लगे– "धोवने मारी ,पाटे मारी , निमटाई लगी है! कहां निमटे"
तब देवरानी ने कहा यह खाली झोंपड़ी है आप कहीं भी जा सकते हैं, जहां इच्छा हो वहां निमट लो फिर गणेश जी बोले 'अब कहां पोंछू" अब देवरानी को बहुत गुस्सा आया कहने लगी कब से परेशान किए जा रहा है, सो बोली "मेरे सिर पर पोंछो और कहां" देवरानी जब सुबह उठी तो यह देखकर हैरान रह गई कि पूरा घर हीरों और मोतियों से जगमगा उठा है। सिर पर जहां बिंदायकजी पोछनी कर गए थे वहां हीरे के टीके और बिंदी जगमगा रहे थे।
इस दिन देवरानी जेठानी के यहां काम करने नहीं गई। जेठानी ने कुछ देर तो राह देखी फिर बच्चों को देवरानी को बुलाने भेज दिया। जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया था इसीलिए शायद देवरानी बुरा मान गई होगी। बच्चे बुलाने गए और बोले– चाची चलो! मां ने बुलाया है। दुनिया में चाहे कोई मौका चूक जाए पर देवरानी जेठानी आपस में कहने का मौके नहीं छोड़ती।
देवरानी ने कहा 'बेटा बहुत दिन तेरी मां के यहां काम कर लिया, अब तुम अपनी मां को ही मेरे यहां काम करने भेज दो' बच्चो ने घर जाकर मां से कहा कि चाची का पूरा घर हीरों और मोतियों से जगमगा उठा है। जेठानी दौड़कर देवरानी के घर गई और पूछा कि यह सब कैसे हो गया?
तब देवरानी ने जेठानी को रात में हुई सारी घटना बताई जो भी उसके साथ हुआ था। घर लौटकर जेठानी ने कुछ सोचा और अपने पति से कहने लगी– आप मुझे धोवने और पाटे से मारो। उसका पति बोला कि भली मानस मैंने तो कभी तुम पर हाथ भी नहीं उठाया। मैं तुम्हे धोवने और पाटे से कैसे मार सकता हूं। वो नहीं मानी और जिद करने लगी। मजबूरन पति को उसे मारना पड़ा। मार खाने के बाद उसने ढ़ेर सारा घी डालकर चूरमा बनाया और छीकें में रख सो गयी। रात विनायक जी जेठानी के सपने में भी आए और कहने लगे कि उन्हें भूख लगी है, "मैं क्या खाऊं"।
जेठानी ने कहा, "हे भगवान गणेश, आपने मेरी देवरानी के घर पर एक चुटकी सूखा तिलकुट खाया था। मैने तो झरते घी का चूरमा बनाया है और आपके लिए छींके में रखा हैं, फल और मेवे भी रखे है जो चाहें खा लो" गणेश जी बोले "अब निपटे कहां" जेठानी बोली ,"उसके यहां एक टूटी हुई झोंपड़ी थी मेरे यहां एक उत्तम दर्जे का महल है। जहां चाहो निपटो" फिर गणेश जी ने पूछा "अब पोंछू कहां" वो बोली मेरे ललाट पर बड़ी सी बिंदी लगाकर पोंछ लो।
धन की भूखी जेठानी रातभर खुशी से फूली नहीं समा रही थी की सुबह जब वह उठेगी तो पूरा घर उसे हीरे-सोने-चांदी से भरा मिलेगा। यही सोचते हुए वह सुबह जल्दी-जल्दी उठ गई, लेकिन जब उसने देखा तो उसका पूरा घर गंदगी और बदबू से भर गया था। वहीं उसके सिर पर भी बहुत सी गंदगी लगी हुई थी।
ये सब देखकर जेठानी ने अपना माथा पीट लिया है उसने कहा हे गणेश जी महाराज ये आपने क्या किया, मुझसे रूठे और देवरानी पर टूटे। जेठानी ने घर की सफाई करने की बहुत कोशिश की परन्तु गंदगी और ज्यादा फैलती गई। जेठानी के पति को मालूम चला तो वो भी बहुत गुस्सा हुआ और बोला तेरे पास इतना सब कुछ था फिर भी तेरा मन नहीं भरा।
परेशान होकर जेठानी चौथ के विनायक जी (गणेशजी) से मदद की विनती करने लगी। बोली – मुझसे बड़ी भूल हुई। मुझे क्षमा करो । विनायक जी ने कहा देवरानी से जलन के कारण जो तुने किया है उसी का फल तुझे मिला है। अब तू अपने धन में से आधा उसे देगी तभी यह सब साफ होगा।
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गणेश जी के कहने पर उसने आधा धन तो बांट दिया, लेकिन मोहरों की एक हांडी चूल्हे के नीचे गाढ़ रखी थी। उसने सोचा किसी को पता नहीं चलेगा और उसने उस धन को नहीं बांटा। जेठानी ने गणेश जी से कहा हे चौथ विनायक जी अब तो अपना ये बिखराव समेटो। वे बोले पहले चूल्हे के नीचे गाढ़ी हुई मोहरो की हांडी और ताक में रखी सुई की भी पांति कर। इस प्रकार विनायक जी ने सुई जैसी छोटी चीज का भी बंटवारा करवाकर अपनी माया समेटी।
हे गणेश जी महाराज जैसे आपने देवरानी पर कृपा करी वैसी सब पर करना। कहानी कहने वाले सुनने वाले और हुंकारा भरने वाले सब पर कृपा करना। किन्तु जेठानी को जैसी सजा दी वैसी किसी को मत देना। बोलो गणेश जी महाराज की – जय !!!
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 26 January 2024 at 19:44 IST