अपडेटेड 16 April 2024 at 17:39 IST
Kanya Pujan में 9 कन्याओं के साथ क्यों कराते हैं एक लंगूर को भोजन, जानें इसके पीछे की क्या है कहानी
Kanya Pujan 2024 हर साल नवरात्रि में कन्या पूजा में एक लांगूर भी शामिल किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कन्याओं के साथ एक बालक को क्यों पूजा जाता है।
- धर्म और अध्यात्म
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Kanya Pujan Me Kyo Hota Hai Langoor: साल में दो बार नवरात्रि का पर्व आता है और इसे बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना से शुरू होने वाला यह पवित्र दिन नौं दिनों तक चलता है, जिसके बाद नवमी तिथि पर कन्या पूजन के साथ इसका समापन किया जाता है। इसमें छोटी कन्याओं को माता का स्वरुप मानकर उनकी पूजा की जाती है और दक्षिणा देकर आशीर्वाद लिया जाता है। वहीं साथ ही कन्या पूजन में 1 बालक का होना भी बेहद जरूरी होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों।
मान्यता है कि कन्या पूजन के बिना नवरात्रि का पर्व पूरा नहीं होता है। इसलिए कन्या पूजन के दिन 9 कन्याओं के साथ लंगूर की भी पूजा करके उन्हें भोज कराया जाता है, लेकिन शायद ही आप लोग इसके बारे में जानते होंगे। तो चलिए इस आर्टिकल में आपको आज बताते हैं कि आखिर कन्या पूजन में लंगूर का होना जरूरी क्यों होता है।
कन्या पूजन में क्यों शामिल किया जाता है लंगूर?
नवरात्रि में जिस तरह से कन्या पूजा के बिना मां की उपासना अधूर रह जाती है, ठीक उसकी तरह से अगर कन्या पूजन में बालक न हो तो कन्या पूजा पूरी नहीं होती है, क्योंकि नवरात्रि में कन्या पूजन में कन्याओं को नौ देवियों का स्वरूप माना जाता है और बालकों को भैरव बाबा और हनुमान जी का रूप मानते हैं। इन्हें 'लंगूर' या 'लांगुरिया' भी कहा जाता है।
कन्या पूजन में बालक की कितनी संख्या होनी चाहिए?
नवरात्रि कन्या पूजन में जिस तरह से कन्याओं की 9 संख्या होनी चाहिए ठीक उसी तरह से बालकों की 2 संख्या होनी चाहिए। एक बालक को भैरव बाबा और एक को हनुमान जी का रूप मानते हैं। वहीं भैरव को माता रानी का पहरेदार माना गया है।
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नौ कन्याओं की इन रूपों में की जाती है पूजा
कन्या पूजा में 2 साल से लेकर 10 साल तक की कन्याओं को शामिल किया जाता है। जिन्हें इनके उम्र के हिसाब से देवी का रूप माना जाता है। दो साल की कन्या को कन्या कुमारी, तीन साल की कन्या को त्रिमूर्ति, चार साल की कन्या को कल्याणी, पांच साल की कन्या को रोहिणी, छह साल की कन्या को कालिका, सात साल की कन्या को चंडिका, आठ साल की कन्या को शांभवी, नौ साल की कन्या को दुर्गा और 10 साल की कन्या को सुभद्रा के स्वरूप में पूजा जाता है। इनके साथ एक छोटे बालक को भी भोज कराने का प्रचलन है। बालक भैरव बाबा का स्वरूप होते हैं।
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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
Published By : Sadhna Mishra
पब्लिश्ड 16 April 2024 at 17:07 IST