अपडेटेड 16 May 2025 at 14:21 IST
BSF जवान पूर्णम कुमार की वतन वापसी... तो जानिए क्या है 1971 के पाकिस्तान युद्ध में 54 लापता भारतीय सैनिकों की रहस्यमयी कहानी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में, 1971 के मिस हुए 54 सैनिकों के परिवारों को उम्मीद है कि भारत सरकार इस मुद्दे पर पाकिस्तान से उनकी रिहाई के लिए कदम उठाएगी।
- डिफेंस न्यूज
- 5 min read

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ 'ऑपरेशन सिंदूर' चलाकर जोरदार बदला लिया। इस ऑपरेशन में भारत में पाकिस्तान में सक्रिय 9 आतंकी कैंपों को तबाह कर दिया। इसी दौरान भारत के बीएसएफ का एक जवान पूर्णम कुमार भटक कर पाकिस्तानी सीमा में चला गया और पाकिस्तान ने उसे गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद भारत सरकार ने इस जवान की वापसी करवाई। भारतीय जवान की वापसी ने नए भारत की झलक और ताकत दोनों को दिखाया। वहीं जब भी भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध की चर्चा होती है तो 1971 के युद्ध में लापता 54 भारतीय सैनिकों की चर्चा जरूर की जाती है। यह माना जाता है कि ये सैनिक आज भी पाकिस्तान की जेलों में बंद हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में, इन सैनिकों के परिवारों को उम्मीद है कि भारत सरकार इस मुद्दे पर पाकिस्तान से उनकी रिहाई के लिए कदम उठाएगी। चार दशकों से अपने प्रियजनों का इंतजार कर रहे इन परिवारों को BSF जवान पूर्णम कुमार की जल्द वापसी ने एक बार फिर आशा की किरण दिखाई है। इन परिवार को भरोसा है कि प्रधानमंत्री मोदी उनकी भी चिंता करेंगे। पूर्णम कुमार की वापसी न केवल इन सैनिकों के परिजनों के लिए एक उम्मीद की शुरुआत है, बल्कि यह भारत की बढ़ती कूटनीतिक, सैन्य और सामाजिक ताकत का भी प्रतीक है।
पूर्णम कुमार की रिहाई के पीछे की वजह सामने आई कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान के एक रेंजर को पकड़ लिया था, जिसके बदले पाकिस्तान को भारतीय सैनिकों की रिहाई के लिए झुकना पड़ा। यह घटनाक्रम नए भारत की उस छवि और ताकत को रेखांकित करता है, जो अपनी सेना और नागरिकों की सुरक्षा के मामले में सख्त और सक्रिय रुख अपनाता है। जैसे सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पायलट अभिनंदन की वापसी और कतर में मौत की सजा पा चुके नेवी अफसरों की रिहाई ने मोदी सरकार के अंतरराष्ट्रीय मंच पर बढ़ते दबदबे को भी दर्शाया। हालांकि, 54 सैनिकों की रिहाई का मुद्दा भारत-पाकिस्तान के पुराने घावों को फिर से हरा कर देता है, यह दिखाता है कि भारत अपने नागरिकों और सैनिकों की सुरक्षा और सम्मान को लेकर संजीदा है।
1971 के भारत-पाक युद्ध में लापता सैनिकों का रहस्य
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लापता हुए 54 भारतीय सैनिकों का मामला आज भी अनसुलझा है। यह सैनिक युद्ध के दौरान युद्धबंदी बन गए थे या लापता हो गए थे। इनमें से अधिकांश भारतीय सेना, वायुसेना और अन्य सुरक्षा बलों के जवान थे। माना जाता है कि ये सैनिक पाकिस्तान की हिरासत में हो सकते हैं, लेकिन दशकों बाद भी उनकी स्थिति, संख्या या जीवित होने की पुष्टि नहीं हो पाई है। भारत सरकार का मानना है कि ये सैनिक पाकिस्तान की जेलों में बंद हो सकते हैं, लेकिन यह मामला अब तक स्पष्ट नहीं हो सका है। इन सैनिकों के परिवारों का इंतजार अभी भी जारी है। वे उम्मीद करते हैं कि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से उठाएगी और पाकिस्तान से इन सैनिकों की रिहाई के लिए उचित बातचीत करेगी। यह मामला केवल सैनिकों के परिजनों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक अनसुलझी दुविधा बन चुका है।
भारत के 54 सैनिक 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान लापता घोषित कर दिए गए थे, जिन्हें भारत सरकार "मिसिंग इन एक्शन (MIA)" मानती है। 2019 में भारतीय संसद में रक्षा मंत्रालय द्वारा इन 54 सैनिकों की सूची जारी की गई थी। इस कदम से उम्मीद जगी कि सरकार इस मामले को फिर से सक्रिय रूप से उठाएगी।
Advertisement
- 54 सैनिक 1971 के युद्ध में लापता हुए थे।
- भारत का मानना है कि ये सैनिक पाकिस्तान की जेलों में बंद हो सकते हैं।
- पाकिस्तान इन आरोपों को नकारता रहा है और कहता है कि उसके पास ऐसे किसी भी भारतीय सैनिक की कोई जानकारी नहीं है।
- रक्षा मंत्रालय ने इन 54 सैनिकों की सूची संसद में प्रस्तुत की थी।
- यह एक संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा है, खासकर इन सैनिकों के परिवारों के लिए जो दशकों से उनके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
परिजनों का आरोप
- परिवारों ने सरकार पर आरोप लगाया कि 2019 के बाद भी इस दिशा में कोई ठोस और दृश्यमान कदम नहीं उठाए गए।
- उनका कहना है कि सरकार ने इस मुद्दे को कूटनीतिक स्तर पर मजबूती से नहीं उठाया या पाकिस्तान पर पर्याप्त दबाव नहीं डाला।
क्या है वर्तमान स्थिति
यह मामला समय-समय पर संसद में और मीडिया में उठता रहा है, लेकिन समाधान अब तक नहीं हो सका है। यह एक द्विपक्षीय, संवेदनशील और मानवीय मुद्दा है, जिसे कूटनीतिक, कानूनी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना जरूरी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 54 भारतीय युद्धबंदी पाकिस्तान की जेलों में बंद थे, जिनमें से कुछ अब जीवित नहीं रहे, जबकि कुछ गंभीर मानसिक और शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त हैं। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने लाहौर की कोट लखपत जेल में भारतीय युद्धबंदियों को बगल की बैरक से हटाने के लिए जेल अधिकारियों को पत्र लिखा था। भुट्टो ने अपने पत्र में कहा था कि उनके पास वाली बैरक में लगभग पचास पागल भारतीय कैदी थे, जिनकी चीख-पुकार रात के सन्नाटे में गूंजती थी, जो वह कभी नहीं भूल पाएंगे।
1971 के युद्ध में 93000 पाकिस्तानी युद्ध बंदी वापस भारत ने वापस भेज दिए थे
1971 के युद्ध में भारत की जीत के बाद, पाकिस्तान के विभाजन के बावजूद, भारतीय युद्धबंदियों (PoWs) की रिहाई सुनिश्चित नहीं की गई। शिमला समझौते के तहत पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों को रिहा किया गया, लेकिन भारतीय सैनिकों को भुला दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों को उदारता से वापस भेजा, लेकिन पाकिस्तान ने भारतीय युद्धबंदियों के बारे में गलत जानकारी दी और उनकी स्थिति को छिपाया। यह घटना उन बहादुर सैनिकों के साथ हुए अन्याय की गहरी छाप छोड़ गई, जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपनी जान की बाजी लगाई।
Advertisement
Published By : Ravindra Singh
पब्लिश्ड 16 May 2025 at 14:21 IST