अपडेटेड 5 November 2025 at 18:15 IST

न्यूयॉर्क में जोहरन ममदानी की जीत... ट्रंप पर ओबामा पड़े भारी! तो क्या 2028 के चुनाव में दोनों चीर प्रतिद्वंद्वी होंगे आमने-सामने?

मंगलवार को हुए स्थानीय चुनावों में डेमोक्रेट्स ने रिपब्लिकन पार्टी को चारों खाने चित कर दिया। न्यूयॉर्क सिटी के मेयर चुनाव से लेकर वर्जीनिया और न्यू जर्सी के गवर्नर इलेक्शन तक, रिपब्लिकन एक भी मोर्चे पर टिक नहीं पाए।

डोनाल्ड ट्रंप और ओबामा | Image: AP

अमेरिका की राजनीति में इस वक्त फिर पुराने किरदारों की वापसी हो रही है। 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में करारी हार झेलने के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी ने आखिरकार सांस ली है।

मंगलवार को हुए स्थानीय चुनावों में डेमोक्रेट्स ने रिपब्लिकन पार्टी को चारों खाने चित कर दिया। न्यूयॉर्क सिटी के मेयर चुनाव से लेकर वर्जीनिया और न्यू जर्सी के गवर्नर इलेक्शन तक, रिपब्लिकन एक भी मोर्चे पर टिक नहीं पाए।

कैलिफोर्निया में भी गवर्नर गैविन न्यूसम ने रिपब्लिकन मॉडल पर बने नए निर्वाचन क्षेत्रों को पलट दिया, जिससे डेमोक्रेट्स को एक और बड़ी राहत मिली, लेकिन अब चर्चा किसी और वजह से है। यह जीत ओबामा की बताई जा रही है।

कहानी यहीं दिलचस्प हो जाती है क्योंकि न तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और न ही बराक ओबामा किसी बैलेट पर थे। फिर भी, अमेरिकी मीडिया इसे "ट्रंप बनाम ओबामा" की लड़ाई मान रही है और इस बार स्कोर 4-0 से ओबामा के पक्ष में बताया जा रहा है।

ओबामा की छाया से वापसी

इन चुनावों में ओबामा ने कई युवा उम्मीदवारों के लिए पूरी ताकत झोंक दी। वर्जीनिया की अबीगेल स्पैनबर्गर, न्यू जर्सी की मिकी शेरिल और न्यूयॉर्क में जोहरन ममदानी जैसे चेहरों के पीछे ओबामा का खुला समर्थन था। कैलिफोर्निया के रेडिस्ट्रिक्टिंग अभियान में भी उन्होंने परोक्ष रूप से भूमिका निभाई।

कई विश्लेषक कह रहे हैं कि ओबामा की यह एक्टिव वापसी डेमोक्रेट्स के लिए नई ऊर्जा लेकर आई है। कुछ इसे "रीचार्ज ओबामा मोमेंट" कह रहे हैं। जहां ट्रंप की छवि अब भी रिपब्लिकन राजनीति की आत्मा मानी जाती है, वहीं ओबामा अब भी उम्मीद और संयम का चेहरा हैं।

अमेरिकी मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ओबामा अपने पुराने जोश के साथ फिर मैदान में लौटने की तैयारी कर रहे हैं। उनके करीबी मानते हैं कि "हॉप" यानी उम्मीद का जो नारा उन्होंने 2008 में दिया था, अब उसे नया अर्थ देने की जरूरत है। फर्क बस इतना है कि अब उनकी चिंता ज्यादा गहरी है- लोकतंत्र और संस्थानों की मजबूती को लेकर।

ट्रंप से बेचैनी, डेमोक्रेसी पर डर

ओबामा के पुराने सहयोगी और पूर्व अटॉर्नी जनरल एरिक होल्डर कहते हैं, “ट्रंप ने संस्थानों को जिस तरह झकझोरा है, वह अमेरिका के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।” इसी चिंता के चलते ओबामा ने पिछले कुछ महीनों में अपनी टीम के साथ नई रणनीति बनाने की शुरुआत की है। उनका मकसद है, ट्रंप के बढ़ते प्रभाव का तोड़ निकालना।

बाइडेन के कार्यकाल के दौरान ओबामा ने खुद को जानबूझकर राजनीति से दूर रखा था। वह चाहते थे कि नई पीढ़ी के नेता आगे आएं। लेकिन अब लगता है कि वे समझ गए हैं कि ट्रंप की राजनीति प्रतिशोध और ध्रुवीकरण पर टिकी है। डेमोक्रेट्स की नई फसल अभी इतनी मजबूत नहीं कि इस ध्रुवीकरण का मुकाबला कर सके।

ओबामा के एक करीबी सहयोगी ने अमेरिकी मीडिया से कहा, “उन्हें डर है कि अगर ट्रंप को दोबारा पूरा नियंत्रण मिल गया तो वे संस्थानों को इस कदर कमजोर कर देंगे कि शायद लोकतंत्र को संभालना मुश्किल हो जाए।”

उम्र में फर्क, जोश में नहीं

अगर ओबामा 2028 में मैदान में उतरते हैं तो उनकी उम्र होगी 68 साल, जबकि राष्ट्रपति ट्रंप तब 83 के होंगे। मतलब अभी भी ओबामा उनसे पूरे 15 साल छोटे रहेंगे। सवाल यही उठ रहा है कि क्या अमेरिका एक बार फिर 2008 वाली ऊर्जा, 2016 वाली जंग और 2024 वाले विभाजन के बीच एक और "ट्रंप बनाम ओबामा" देखेगा?

Overton Insights के अप्रैल सर्वे की मानें तो 53% अमेरिकी मतदाता अगर मौका मिले तो ओबामा को वोट देना चाहेंगे, जबकि 47% ट्रंप के पक्ष में हैं। वहीं डेली मेल जेएल पार्टनर्स के जुलाई सर्वे में यह फर्क और बढ़ गया और ओबामा 11% आगे दिखे।

लगता है जनता अब भी ओबामा को विकल्प मानती है। ट्रंप के मुकाबले उनका कद और सियासी समझ अब भी भारी पड़ती है। लेकिन कानून की एक बड़ी दीवार है।

22वां संशोधन और ‘बायपास’ की थ्योरी

अमेरिकी संविधान का 22वां संशोधन साफ कहता है कि कोई भी व्यक्ति दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बन सकता। ओबामा दो टर्म पूरे कर चुके हैं यानी संवैधानिक रूप से वे अब राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव नहीं लड़ सकते।

लेकिन हाल के महीनों में ट्रंप समर्थकों के बीच एक नया विचार पनप रहा है- “बायपास मॉडल।” इसमें कहा जा रहा है कि अगर ट्रंप किसी ‘डमी कैंडिडेट’ के साथ उपराष्ट्रपति बन जाएं और फिर वही व्यक्ति इस्तीफा दे दे, तो ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बन सकते हैं।

अब सवाल यह है कि अगर ट्रंप ऐसा कर सकते हैं, तो ओबामा क्यों नहीं? यही बात अब अमेरिकी राजनीति के गलियारों में चर्चा का सबसे गर्म मुद्दा बन गई है।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह रास्ता इतना आसान नहीं होगा। कोर्ट में भारी विवाद होगा और अमेरिकी लोकतंत्र की साख पर भी असर पड़ सकता है। लेकिन राजनीति में "नाम" ही सब कुछ होता है और ट्रंप और ओबामा, दोनों नाम अपने आप में संस्थान बन चुके हैं।

अगर ओबामा ने सक्रिय राजनीति में वापसी का फैसला लिया, तो यह लड़ाई सिर्फ दो नेताओं की नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं की होगी, जिसमें एक तरफ प्रतिशोध और विभाजन होगा, तो दूसरी सुधार और एकता।

सियासी गलियारों में लोग मुस्कुराकर पूछ रहे हैं, “क्या 2028 की बैलेट पर फिर वही दो चेहरे होंगे, जिनकी जंग ने 21वीं सदी की अमेरिकी राजनीति को परिभाषित किया?”

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 5 November 2025 at 18:15 IST