अपडेटेड 28 July 2024 at 19:43 IST
ग्लोबल वार्मिंग बारिश को कैसे प्रभावित कर रही है? नए शोध से सामने आई बड़ी चिंता
Global Warming: चिंताजनक बात यह है कि ग्लोबल वार्मिंग जारी रहने के कारण समस्या और भी बदतर हो जाएगी। इससे सूखे और बाढ़ दोनों का खतरा बढ़ जाता है।
नये शोध से पता चला है कि पिछली शताब्दी में मानवीय गतिविधियों के चलते बढ़ी गर्मी के कारण पृथ्वी के 75 प्रतिशत भू-भाग पर वर्षा की परिवर्तनशीलता बढ़ गई है, विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और पूर्वोत्तर अमेरिका में यह प्रभाव अधिक है। चीनी शोधकर्ताओं और ब्रिटेन के मौसम विभाग द्वारा किए गए निष्कर्ष साइंस जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। वे इस बात का पहला व्यवस्थित साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक वर्षा की गतिविधियों को अधिक अस्थिर बना रहा है।
जलवायु प्रारूपों ने अनुमान जताया था कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की यह परिवर्तनशीलता और भी बदतर हो जाएगी। लेकिन, इन नए निष्कर्षों से पता चलता है कि पिछले 100 वर्षों में वर्षा की परिवर्तनशीलता पहले ही बदतर हो चुकी है, खास तौर पर ऑस्ट्रेलिया में। प्रेक्षण संबंधी रिकॉर्ड के पिछले अध्ययनों में या तो दीर्घकालिक औसत वर्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया था, जो वैश्विक स्तर पर व्यवस्थित रूप से नहीं बदल रही है, या वर्षा की चरम स्थितियों पर ध्यान केंद्रित किया गया था, जहां परिवर्तनों को सटीक रूप से मापना कठिन है।
अध्ययन में क्या पाया गया?
हालांकि, यह अध्ययन केवल वर्षा गतिविधियों की परिवर्तनशीलता पर ध्यान केंद्रित करता है, जो वर्षा के असमान समय और मात्रा को संदर्भित करता है। परिणाम हमारे सहित पिछले शोध के अनुरूप हैं। इसका मतलब है कि अतीत की तुलना में या तो बारिश की मात्रा बिल्कुल कम है, या बहुत अधिक है। चिंताजनक बात यह है कि ग्लोबल वार्मिंग जारी रहने के कारण समस्या और भी बदतर हो जाएगी। इससे सूखे और बाढ़ दोनों का खतरा बढ़ जाता है, जो ऑस्ट्रेलिया के लिए एक प्रासंगिक मुद्दा है।
शोध से पता चलता है कि 1900 के दशक से वर्षा में परिवर्तनशीलता में व्यवस्थित वृद्धि हुई है। वैश्विक स्तर पर हर दशक में वर्षा में दिन-प्रतिदिन की परिवर्तनशीलता में 1.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। परिवर्तनशीलता में वृद्धि का मतलब है कि समय के साथ बारिश का वितरण अधिक असमान है, जिससे या तो बारिश बहुत अधिक हो रही है या बेहद कम हो रही है। इसका मतलब यह हो सकता है कि किसी दिए गए स्थान पर एक साल की बारिश अब कम दिनों में होती है। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि लम्बी, शुष्क अवधि के बीच-बीच में मूसलाधार बारिश हो, या शीघ्रता से सूखा और बाढ़ आ जाए।
शोधकर्ताओं ने आंकड़ों की जांच की और पाया कि 1900 के दशक से, अध्ययन किए गए भूमि क्षेत्रों के 75 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रों में वर्षा की परिवर्तनशीलता में वृद्धि हुई है। यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी उत्तरी अमेरिका विशेष रूप से इससे प्रभावित हुए हैं। ये ऐसे क्षेत्र हैं जिनके लिए विस्तृत और दीर्घकालिक अवलोकन उपलब्ध हैं। अन्य क्षेत्रों में, वर्षा में परिवर्तनशीलता का दीर्घकालिक रुझान बहुत प्रमुख नहीं था। लेखकों ने कहा कि यह परिवर्तनशीलता में यादृच्छिक परिवर्तनों या आंकड़ों में त्रुटियों के कारण हो सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग वर्षा को कैसे प्रभावित करती है?
इन निष्कर्षों को समझने के लिए, यह समझना जरूरी है कि कौन से कारक यह निर्धारित करते हैं कि एक तूफान कितनी भारी बारिश पैदा करता है और ये कारक ग्लोबल वार्मिंग से कैसे प्रभावित हो रहे हैं। पहला कारक यह है कि हवा में कितना जल वाष्प मौजूद है। गर्म हवा में ज्यादा नमी हो सकती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक निश्चित हिस्से पर जल वाष्प की औसत मात्रा में सात प्रतिशत की वृद्धि होती है।
वैज्ञानिकों को इस समस्या के बारे में लंबे समय से पता है। औद्योगिक क्रांति के बाद से पृथ्वी 1.5 डिग्री सेल्सियस गर्म हो गई है - जो निचले वायुमंडल में जल वाष्प में 10 प्रतिशत की वृद्धि के बराबर है, इसलिए यह तूफानों को अधिक बारिश वाला बना रहा है।
(Note: इस भाषा कॉपी में हेडलाइन के अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है)
Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 28 July 2024 at 19:43 IST