अपडेटेड 24 December 2025 at 17:52 IST
सत्संग सुनता हूं इस इच्छा से कि चक्रवर्ती राजा की तरह मेरा जीवन हो और हजारों रानियां, संभव है? Premanand Maharaj ने क्या दिया जवाब
चक्रवर्ती राजा जैसा जीवन और हजारों रानियों की कल्पना सुनने में आकर्षक लग सकती है, लेकिन इससे सच्चा सुख नहीं मिलता है। प्रेमानंद महाराज के अनुसार, सत्संग का रास्ता बाहर की दुनिया को जीतने का नहीं, बल्कि खुद को जीतने का रास्ता है।
अक्सर लोग सत्संग और भक्ति इसलिए शुरू करते हैं कि उनके जीवन की सारी इच्छाएं पूरी हो जाएं। किसी को धन चाहिए, किसी को पद, तो किसी को ऐश्वर्य और भोग-विलास। एक बार ऐसा ही सवाल प्रेमानंद महाराज के सामने रखा गया। एक व्यक्ति ने कहा कि वह सत्संग इस इच्छा से सुनता है कि उसे चक्रवर्ती राजा जैसा जीवन मिले, अपार धन हो और हजारों रानियां हों। यह सुनकर प्रेमानंद महाराज ने बहुत ही सरल लेकिन गहरी बात कही। तो चलिए जानते हैं क्या है पूरी कहानी?
प्रेमानंद महाराज ने क्या जवाब दिया?
महाराज जी ने कहा कि “अगर भक्ति का उद्देश्य सिर्फ भोग-विलास और ऐश्वर्य पाना है, तो वह सच्ची भक्ति नहीं है।”
उन्होंने समझाया कि सत्संग और भगवान का नाम इसलिए नहीं होता कि मन की वासनाएं और बढ़ जाएं, बल्कि इसलिए होता है कि इच्छाएं धीरे-धीरे शुद्ध हों और मन शांत हो।
भगवत प्राप्ति ही लक्ष्य है
मनुष्य जीवन का असली उद्देश्य भगवत प्राप्ति है, न कि सांसारिक भोग-विलास। यदि यह लक्ष्य नहीं है, तो जीवन व्यर्थ है, चाहे आप कितने भी बड़े चक्रवर्ती राजा क्यों न बन जाएं।
चक्रवर्ती राजा जैसा जीवन क्या सच में सुख देता है?
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि इतिहास गवाह है कि बड़े-बड़े राजा, जिनके पास धन, सत्ता और रानियां थीं, वे भी पूरी तरह सुखी नहीं थे। मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होतीं। एक इच्छा पूरी होती है, तो दूसरी जन्म ले लेती है। इसी कारण भोग से कभी स्थायी सुख नहीं मिलता है।
सत्संग का असली उद्देश्य क्या है?
महाराज जी ने बताया कि सत्संग का असली उद्देश्य है अहंकार को कम करना, मन को शुद्ध करना, भगवान से प्रेम बढ़ाना और भीतर की शांति पाना है। यदि सत्संग सुनकर भी मन सिर्फ भोग और ऐश्वर्य की कल्पनाओं में उलझा रहे, तो समझ लेना चाहिए कि दिशा गलत है।
इच्छाएं पूरी हों या इच्छाओं से मुक्ति?
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि “भगवान भोग बढ़ाने नहीं, भोग से मुक्त करने आते हैं।”
जब इंसान सच्चे मन से भक्ति करता है, तो उसे वह मिलता है जो उसके लिए सबसे अच्छा होता है। कई बार भगवान इच्छाएं पूरी नहीं करते, बल्कि इच्छाओं की आग ही बुझा देते हैं और वही असली कृपा होती है।
नाम जप की शक्ति
उन्होंने बताया कि असली आनंद और शाश्वत जीवन नाम जप जैसे राम नाम, राधा नाम से मिलता है, जो अविनाशी है और हृदय को परम प्रकाश से भर देता है, जबकि बाहरी दिखावा और कर्म जल्दी खत्म हो जाते हैं।
आंतरिक परिवर्तन
महाराज जी ने समझाया कि बाहरी वेश या सांसारिक परिस्थितियों से फर्क नहीं पड़ता. गृहस्थ में रहते हुए भी व्यक्ति भगवत प्राप्ति कर सकता है, यदि उसके हृदय में सच्ची भक्ति और भगवान से जुड़ने की इच्छा हो, न कि इंद्रियों को संतुष्ट करने की इच्छा।
प्रेमानंद महाराज ने ऐसे व्यक्ति को समझाया कि चक्रवर्ती राजा और हजारों रानियों की इच्छा भौतिक और नश्वर है, जो अंत में दुख देती है, जबकि असली सुख और शाश्वत जीवन तो भगवत प्राप्ति और नाम जप से मिलता है, जो इंद्रियों की तृप्ति से परे है और अंदर से आनंद देता है, जहां बाहरी आडंबर या सांसारिक इच्छाएं मायने नहीं रखतीं; उन्होंने असली भक्ति और आंतरिक शांति पर जोर दिया।
चक्रवर्ती राजा जैसा जीवन और हजारों रानियों की कल्पना सुनने में आकर्षक लग सकती है, लेकिन इससे सच्चा सुख नहीं मिलता है। प्रेमानंद महाराज के अनुसार, सत्संग का रास्ता बाहर की दुनिया को जीतने का नहीं, बल्कि खुद को जीतने का रास्ता है। महाराज जी ने व्यक्ति को भौतिक सुखों की लालसा छोड़कर, आंतरिक शांति और भगवत प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
Published By : Sujeet Kumar
पब्लिश्ड 24 December 2025 at 17:52 IST