अपडेटेड 10 April 2025 at 08:55 IST
Pradosh Vrat 2025: गुरु प्रदोष व्रत पर करें शिव चालीसा का पाठ, बनी रहेगी भोलेनाथ की कृपा
Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत के मौके पर आप शिव चालीसा का पाठ करना बिल्कुल भी न भूलें।
Pradosh Vrat Shiv Chalisa: सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का काफी महत्व होता है। महीने में दो प्रदोष व्रत किए जाते हैं। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा किए जाने का विधान होता है। आज यानी गुरुवार के दिन भी प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat 2025) किया जा रहा है जिसे गुरु प्रदोष व्रत भी कहा जा सकता है।
प्रदोष व्रत के मौके पर आप भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने के साथ-साथ उनकी विशेष चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं। इस पाठ को करने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होंगे और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करेंगे। तो चलिए बिना किसी देरी के जानते हैं शिव चालीसा के लिरिक्स के बारे में।
शिव चालीसा (Shiv Chalisha)
दोहा
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्या दास तुम, देहु अभय वरदान॥
चौपाई
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत संतन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाए।
मुण्डमाल तन छार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघंबर सोहे।
छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि, गणेश सोहै तहं कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुम्हहि जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।
लव निमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।
जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।
भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु, पिता, भ्राता सब कोई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं।
जो कोई मांगे, वह फल पाहीं॥
अस्तुति केहि बिधि करौं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी, यति, मुनि ध्यान लगावैं।
नारद, शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
फलश्रुति
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पार होत है शंभु सहाई॥
ऋणी या जो कोई अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्रहीन कर इच्छा कोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पंडित त्रयोदशी को लावे।
ध्यानपूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा।
तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप, दीप, नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म-जन्म के पाप नसावे।
अंतवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
दोहा
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमंत ऋतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
Published By : Kajal .
पब्लिश्ड 10 April 2025 at 08:55 IST