अपडेटेड 5 May 2025 at 14:15 IST

Mohini Ekadashi 2025: मोहिनी एकादशी पर करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, होगी हर मनोकामना पूरी

Mohini Ekadashi 2025: मोहिनी एकादशी के दिन आपको यहां दिए गए स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए।

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मोहिनी एकादशी | Image: Freepik

Mohini Ekadashi 2025: मोहिनी एकादशी वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है जो कि गुरुवार 08 मई को है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि अमृत वितरण के दौरान भगवान विष्णु ने असुरों को मोहित करने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था। जिस कारण मोहिनी एकादशी मनाई जाती है।

खास बात यह है कि मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की साधना करने से धन की देवी मां लक्ष्मी भी प्रसन्न हो जाती हैं। ऐसे में अगर आपको भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की कृपा पानी है तो आपको पूजा के दौरान लक्ष्मी सिद्धि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

श्रीसिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रम् (Srisiddhilakshmistotram)

ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां, षड्भुजां च चतुर्मुखाम्।
त्रिनेत्रां च त्रिशूलां च, पद्मचक्रगदाधराम्॥

पीताम्बरधरां देवीं, नानालङ्कारभूषिताम्।
तेजःपुञ्जधरां श्रेष्ठां, ध्यायेद् बालकुमारिकाम्॥

ॐकारलक्ष्मीरूपेण, विष्णोर्हृदयमव्ययम्।
विष्णुमानन्दमध्यस्थं, ह्रींकारबीजरूपिणी॥

ॐ क्लीं अमृतानन्दभद्रे, सद्य आनन्ददायिनी।
ॐ श्रीं दैत्यभक्षकदां, शक्तिमालिनी शत्रुमर्दिनी॥

तेजःप्रकाशिनी देवीं, वरदां शुभकारिणीम्।
ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां, कालिकां रक्तशाम्भवीम्॥

आकारब्रह्मरूपेण, ॐकारं विष्णुमव्ययम्।
सिद्धिलक्ष्मि! परालक्ष्मि! लक्ष्यलक्ष्मि! नमोऽस्तु ते॥

सूर्यकोटिप्रतीकाशं, चन्द्रकोटिसमप्रभम्।
तन्मध्ये निकरे सूक्ष्मं, ब्रह्मरूपं व्यवस्थितम्॥

ॐकारपरमानन्दं, क्रियते सुखसम्पदा।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये, शिवे सर्वार्थसाधिके॥

प्रथमे त्र्यम्बका गौरी, द्वितीये वैष्णवी तथा।
तृतीये कमला प्रोक्ता, चतुर्थे सुरसुन्दरी॥

पञ्चमे विष्णुपत्नी च, षष्ठे च वैष्णवी तथा।
सप्तमे च वरारोहा, अष्टमे वरदायिनी॥

नवमे खड्गत्रिशूला, दशमे देवदेवता।
एकादशे सिद्धिलक्ष्मीः, द्वादशे ललितात्मिका॥

एतत् स्तोत्रं पठन्तस्त्वां, स्तुवन्ति भुवि मानवाः।
सर्वोपद्रवमुक्तास्ते, नात्र कार्या विचारणा॥

एकमासं द्विमासं वा, त्रिमासं च चतुर्थकम्।
पञ्चमासं च षण्मासं, त्रिकालं यः पठेन्नरः॥

ब्राह्मणाः क्लेशतो दुःख-
दरिद्रा भयपीडिताः।
जन्मान्तरसहस्रेषु, मुच्यन्ते सर्वक्लेशतः॥

अलक्ष्मीर्लभते लक्ष्मीं, अपुत्रः पुत्रमुत्तमम्।
धन्यं यशस्यमायुष्यं, वह्निचौरभयेषु च॥

शाकिनीभूतवेताल-
सर्वव्याधिनिपातके।
राजद्वारे महाघोरे, सङ्ग्रामे रिपुसङ्कटे॥

सभास्थाने श्मशाने च, कारागारे हि बन्धने।
अशेषभयसम्प्राप्तौ, सिद्धिलक्ष्मीं जपेन्नरः॥

ईश्वरेण कृतं स्तोत्रं, प्राणिनां हितकारणम्।
स्तुवन्ति ब्राह्मणा नित्यं, दारिद्र्यं न च वर्धते॥

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

Published By : Kajal .

पब्लिश्ड 5 May 2025 at 14:15 IST