अपडेटेड 21 April 2024 at 11:21 IST

कर्नाटक के मंदिर की अनोखी परंपरा, 8 दिनों तक एक-दूसरे पर फेंकते हैं जलती मशालें, कोई घायल हुआ तो...

Karnataka Thootedhara Ritual: तूतेधारा की रस्म मंगलुरु से करीब 30 किमी की दूरी पर स्थित मंदिर में निभाई जाती है जिसे दुर्गा परमेश्वरी के नाम से जाना जाता है।

'तूतेधारा' या 'अग्नि केली' | Image: ANI

Karnataka Thootedhara Ritual: भारत में अलग-अलग जगहों की अलग-अलग संस्कृति और रीति-रिवाज होते हैं। कर्नाटक के मंगलुरु में भी ऐसी ही एक परंपरा है जिसका नाम है 'तूतेधारा' या 'अग्नि केली'। मंगलुरु के कतील श्री दुर्गापरमेश्वरी मंदिर से एक वीडियो सामने आया है जहां वार्षिक उत्सव के दौरान लोग 'तूतेधारा' की रस्म निभाते नजर आ रहे हैं।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में दिख रहा है कि कैसे भक्तजन एक-दूसरे पर जलते हुए ताड़ के पत्ते फेंक रहे हैं। ये वीडियो देख बहुत से लोग हैरान रह गए हैं और सोच रहे हैं कि आखिर वो ऐसा क्यों कर रहे हैं। तो चलिए बता देते हैं कि ऐसा करने की वजह क्या है। 

मंगलुरु में लोगों ने क्यों फेंके दूसरों पर जलते हुए ताड़ के पत्ते?

समाचार एजेंसी एएनआई ने भी इसका एक वीडियो शेयर किया है जो सोशल मीडिया पर जमकर लोगों का ध्यान खींच रहा है। ये वीडियो कतील श्री दुर्गापरमेश्वरी मंदिर में होने वाली तूतेधारा रस्म का है जिसे अग्नि केली भी कहा जाता है। इस वीडियो में श्रद्धालु आग से खेलते हुए नजर आ रहे हैं। ये मंगलुरु की सालों पुरानी परंपरा है जिसमें भक्त एक-दूसरे के ऊपर जले हुए ताड़ के पत्ते फेंका करते हैं। 

तूतेधारा की रस्म मंगलुरु से करीब 30 किमी की दूरी पर स्थित मंदिर में निभाई जाती है जिसे दुर्गा परमेश्वरी के नाम से जाना जाता है। दुर्गा परमेश्वरी मंदिर में पूरे आठ दिनों तक ये परंपरा चलती है। इसका मतलब है कि मंदिर परिसर में स्थित श्री दुर्गा गोदी में भक्तजन आठ दिनों तक आग के साथ खेलते हैं। 

क्या होती है तूतेधारा की परंपरा?

आग के साथ ये खेल दो गांव आतुर और कलत्तुर के लोगों के बीच खेला जाता है। सबसे पहले देवी मां की शोभा यात्रा निकाली जाती है। फिर तालाब में डुबकी लगाई जाती है। डुबकी लगाने के बाद दोनों गांवों के लोगों के बीच अलग-अलग दल बनाए जाते हैं। इसके बाद लोग नारियल की छाल से बनी मशालों को लेकर खड़े हो जाते हैं और एक दूसरे के ऊपर फेंकने लगते हैं। आपको बता दें कि ये सिलसिला करीब 15 मिनट तक चलता है लेकिन इस परंपरा के तहत, एक शख्स केवल पांच बार ही जलती मशाल फेंक सकता है।

स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि अग्नि केली से दुख कम हो जाते हैं और आर्थिक व शारीरिक परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। जो इंसान इस परंपरा के दौरान घायल हो जाता है, उसके जख्मों को तुरंत पवित्र पानी से धोया जाता है। इस उत्सव की शुरुआत मेष संक्रांति दिवस की पूर्व संध्या से ही हो जाती है। भक्त आठ दिनों तक व्रत रखते हैं। 

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Published By : Sakshi Bansal

पब्लिश्ड 21 April 2024 at 11:21 IST