अपडेटेड 31 December 2025 at 12:14 IST

First Surya Grahan 2026: साल 2026 का पहला सूर्य ग्रहण कब लगेगा? जानें सूतक काल का समय और कब और कहां दिखाई देगा

First Surya Grahan 2026: नए साल 2026 का पहला सूर्य ग्रहण कब लगने जा रहा है? सूतक काल कब तक रहेगा और यह भारत में दिखाई देगा या नहीं? इन सभी के बारे में जानने के लिए इस लेख को विस्तार से पढ़ें।

First Surya Grahan 2026 | Image: Freepik

First Surya Grahan 2026: सनातन धर्म में सूर्य ग्रहण को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण को अशुभ माना जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ काम करने की मनाही होती है। इस दौरान पूजा-पाठ भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि ग्रहण के शुरू होने से पहले ही सूतक काल लग जाता है, जिसकी ऊर्जा नकारात्मक हो जाती है और इस दौरान हमारा मन विशेष रूप से प्रभावित होता है। 

अब ऐसे में नए साल 2026 का पहला सूर्य ग्रहण कब लगने जा रहा है? सूतक काल का समय क्या है और क्या ये भारत में देगा या नहीं? आइए इस लेख में विस्तार से विस्तार से जानते हैं।

कब लगेगा साल 2026 का पहला सूर्य ग्रहण? 

साल 2026 का पहला सूर्य ग्रहण 17 फरवरी 2026, मंगलवार को लगने जा रहा है। यह एक वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। इसे 'रिंग ऑफ फायर' भी कहा जाता है क्योंकि इसमें चंद्रमा सूर्य के बीच के हिस्से को ढकता है और किनारे एक चमकदार अंगूठी की तरह दिखाई देते हैं।

  • ग्रहण की शुरुआत - दोपहर 03:26 बजे
  • ग्रहण की समाप्ति - शाम 07:57 बजे

क्या भारत में दिखाई देगा यह ग्रहण?

खगोलीय गणनाओं के अनुसार, 17 फरवरी 2026 को लगने वाला सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा।

कहां-कहां दिखाई देगा?

यह ग्रहण मुख्य रूप से अंटार्कटिका, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों जैसे चिली और अर्जेंटीना और अटलांटिक महासागर के क्षेत्रों में दिखाई देगा।

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सूतक काल का समय और महत्व

हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में ग्रहण से पहले के समय को 'सूतक काल' कहा जाता है, जिसे अशुभ माना जाता है। सूर्य ग्रहण का सूतक ग्रहण शुरू होने से 12 घंटे पहले लग जाता है।

सूर्य ग्रहण का धार्मिक महत्व

सूर्य ग्रहण को हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि इसका संबंध समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन से अमृत निकला, तो स्वरभानु नामक असुर ने रूप बदलकर देवताओं के बीच बैठकर अमृत पी लिया था। सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और भगवान विष्णु को बता दिया। क्रोध में आकर विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से असुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। अमृत के प्रभाव से वह मरा नहीं, उसका सिर राहु और धड़ केतु कहलाया। ऐसा माना जाता है कि इसी शत्रुता के कारण राहु-केतु समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा को निगलने का प्रयास करते हैं, जिसे हम ग्रहण कहते हैं।

Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 31 December 2025 at 12:14 IST