अपडेटेड 19 April 2025 at 10:39 IST

Garuda Purana: मृत्यु के बाद 13 दिनों तक परिजनों के बीच रहती है आत्मा! जानिए हैरान कर देने वाला रहस्य

Garuda Purana: गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद होने वाले कर्मों के बारे में बताया गया है, जिसके अनुसार मृत्यु के 13 दिनों बाद तक आत्मा परिवार के बीच रहती है।

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गरुड़ पुराण | Image: Shutterstock

Garuda Purana: जीवन एक तरह की कसौटी है जिसमें कदम-कदम पर कई तरह के उतार-चढ़ाव आते हैं। कहते हैं जीवन में जो भी घटित होता है वह हमारे कर्मों का ही लेखा-जोखा है। हालांकि हर कोई ये जानने के लिए उत्साहित होता है कि आखिर मृत्यु के बाद मनुष्य की आत्मा और शरीर के साथ क्या-क्या होता है। इन सभी बातों का जिक्र गरुड़ पुराण में किया गया है।

सनातन धर्म की 18 महापुराणों में से एक पुराण गरुड़ पुराण भी है। माना जाता है कि गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ के बीच बातचीत का जिक्र है। जिसमें दोनों के बीच सांसारिक चीजों, जीवन, मृत्यु आदि को लेकर वार्तालाप किया गया है। इसी पुराण में एक हैरान कर देने वाली बात यह बताई गई है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति की आत्मा 13 दिनों तक अपने परिजनों के बीच रहती है। जी हां आपने बिल्कुल सही पढ़ा। आइए जानते हैं इस बारे में।

भूख और प्यास से तड़पती है आत्मा

गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद शरीर के अंतिम संस्कार के साथ-साथ पिंडदान और तेरहवीं तक के बारे में बताया गया है। जिसके अनुसार मृत्यु के बाद व्यक्ति की आत्मा 13 दिनों तक अपने परिजनों के बीच ही रहती है। आगे बताया गया है कि 13 दिनों में आत्मा भूख और प्यास से तड़पती है और रोती है।

पिंडदान के जरिए बनता है सूक्ष्म शरीर

गरुड़ पुराण में बताया गया है कि इन 13 दिनों के बीच 10 दिनों तक आत्मा को उसके परिजनों द्वारा पिंडदान किया जाता है, जो कि हिंदू धर्म में बेहद जरूरी माना गया है। इस पिंडदान के जरिए ही मृत व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर बनता है जो एक अंगूठे के बराबर के आकार का होता है।

पाप और पुण्य कर्मों का फल

पुराण के एक अध्याय में यह भी बताया गया है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति की आत्मा को उसके पाप और पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए एक प्रेत शरीर मिलता है। जो दर-दर भटकता रहता है।

पिंडदान का महत्व

तेहरवीं से पहले दस दिनों तक पिंडदान किया जाता है जिसमें पहले दिन के पिंडदान से आत्मा का सिर बनता है, दूसरे दिन से गर्दन और कंधा, तीसरे दिन से हृदय, चौथे दिन से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नौवें और दसवें दिन के पिंडदान से भूख और प्यास इत्यादि उत्पन्न होती है।

इस पिंडदान से भूख और प्यास से प्रेरित जीव ग्यारहवें और 12 दिन भोजन करता है। और पिंडदान के बाद तेरहवीं के दिन जब मृतक के परिजन 13 ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं जिससे आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। ये चक्र 13 दिनों के बाद समाप्त हो जाता है। जिसके बाद मृत व्यक्ति की आत्मा को यमदूत 13वें दिन यमलोक तक ले जाते हैं।  

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

Published By : Kajal .

पब्लिश्ड 19 April 2025 at 10:39 IST