अपडेटेड 24 October 2025 at 16:03 IST
Chhath Puja 2025: छठ महापर्व में सुबह और शाम की पूजा में क्या है अंतर? जान लें सही नियम
Chhath Puja 2025: छठ महापर्व में सूर्यदेव और छठी माता की उपासना करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। अब ऐसे में क्या आप जानते हैं कि इसमें संध्या और उषा अर्घ्य का महत्व क्या है? आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
Chhath Puja 2025: लोक आस्था का महापर्व छठ 25 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ आरंभ होने जा रहा है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में सूर्यदेव और छठी माता की उपासना विधिवत रूप से करने का विधान है। इस पर्व में सबसे महत्वपूर्ण सूर्यदेव को संध्याकाल और उषाकाल में अर्घ्य देना है। हिंदू धर्म में यह एकमात्र ऐसा पर्व है। जिसमें सूर्यदेव को संध्याकाल में अर्घ्य देने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि छठ महापर्व के दिन व्रत रखने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती है। यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए बेहद सौभाग्यशाली माना जाता है। आपको बता दें, छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय है। दूसरा दिन खरना और फिर तीसरा दिन संध्याअर्घ्य और
चौथा दिन उषाकाल अर्घ्य होता है। इसके बाद इस महापर्व का समापन हो जाता है।
अब ऐसे में छठ महापर्न में सुबह और शाम की पूजा में क्या अंतर है? आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
छठ पूजा में शाम की पूजा का क्या महत्व है?
छठ पूजा के तीसरे दिन यानी कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। इसे संध्या अर्घ्य कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि शाम के समय सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं, जो सूर्य की अंतिम किरण हैं। इसलिए इसे प्रत्यूषा अर्घ्य के नाम से भी जाना जाता है। इस समय अर्घ्य का महत्व यह है कि हमें जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव को स्वीकार करा चाहिए। इसे अर्घ्य को देने से सभी भक्तों में जीवन से अंधकार दूर होता है।
ये भी पढ़ें - Mumbai Crime: ब्रेकअप के बाद प्रेमी ने प्रेमिका को चाकू से गोदा, खुद का भी गला रेतकर की खुदकुशी; लड़की की हालत गंभीर
छठ पूजा में उषा अर्घ्य का क्या महत्व है?
छठ पूजा में उषा अर्घ्य छठ महापर्व के चौथे दिन होता है। इस दिन सुबह सूर्यदेव को उषाकाल में अर्घ्य देने का विधान है। उषाकाल में उगते सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह सुनहरे भविष्य का प्रतीक माना जाता है। इस दिन उषाकाल में व्रती सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं और शक्ति, स्वास्थ्य और संतान की दीर्घायु के लिए कामना करते हैं। 36 घंटे निर्जला व्रत रखने के बाद उषा अर्घ्य देकर इस व्रत का समापन हो जाता है।
Published By : Aarya Pandey
पब्लिश्ड 24 October 2025 at 16:03 IST