अपडेटेड 30 October 2025 at 09:14 IST

Amla Navami 2025 Vrat Katha: कल आंवला नवमी के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, मिलेगा पुण्य कर्मों का फल

Amla Navami 2025 Vrat Katha: सनातन धर्म में आंवला नवमी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन रखने का विधान है। अब ऐसे में इस दिन जो जातक व्रत रख रहे हैं, उन्हें व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए। आइए इस लेख

Amla Navami 2025 Vrat Katha | Image: Freepik

Amla Navami 2025 Vrat Katha: आंवला नवमी, जिसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत विशेष और पुण्यदायी तिथि है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। ‘अक्षय’ का अर्थ है कभी न समाप्त होने वाला, और मान्यता है कि इस दिन किए गए छोटे से पुण्य का फल भी जन्म-जन्मान्तर तक अक्षय रहता है। धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी का दिन दान, पूजा-पाठ, भक्ति, सेवा और शुभ कर्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

 इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। कहते हैं, आंवले के पेड़ की विधिवत पूजा करने से मनुष्य को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। यह वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और इसमें समस्त देवी-देवताओं का वास माना जाता है। इस दिन लोग आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन पकाते हैं और परिवार, मित्रों सहित इस प्रसाद रूपी भोजन को ग्रहण करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से परिवार में सुख-शांति और सौभाग्य आता है।

अब ऐसे में इस दिन व्रत कथा पढ़ने का विशेष विधान है। आइए इस लेख में आंवला नवमी के दिन व्रत कथा पढ़ने के बारे में जानते हैं।

आंवला नवमी के दिन पढ़ें ये व्रत कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक का भ्रमण कर रही थीं। रास्ते में उनके मन में एक अद्भुत इच्छा जागृत हुई। वह चाहती थीं कि उन्हें भगवान विष्णु और भोलेनाथ शिव, दोनों की पूजा एक साथ करने का सौभाग्य मिले। तब माता विचार करने लगी कि

इन दोनों देवों की पूजा एक ही समय पर कैसे कर सकती हैं। तभी, उन्हें रास्ते में एक आंवले का पेड़ दिखाई दिया। माता को तुरंत यह ज्ञान हुआ कि इस पेड़ में तुलसी जो भगवान विष्णु को प्रिय है और बेलपत्र जो भगवान शिव को प्रिय है दोनों के गुण एक साथ समाए हुए हैं।

मां लक्ष्मी ने तत्काल यह निर्णय लिया कि आंवले का पेड़ साक्षात विष्णु और शिव का संयुक्त स्वरूप है। उन्होंने पूरे विधि-विधान से आंवले के पेड़ की पूजा-अर्चना शुरू कर दी।

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माता की भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु और भगवान शिव तुरंत वहां प्रकट हुए। तीनों लोकों के देवों को एक साथ देखकर माता लक्ष्मी भाव-विभोर हो गईं। तब उन्होंने उस आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर अपने हाथों से भोजन तैयार किया। सबसे पहले यह भोजन उन्होंने भगवान विष्णु और शिव को अर्पित किया, और उसके बाद स्वयं भी प्रसाद रूप में इसे ग्रहण किया।

पौराणिक मान्यता है कि यह अद्भुत घटना कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन हुई थी। तभी से, इस तिथि पर आंवले के पेड़ की पूजा करने और उसके नीचे बैठकर भोजन करने की परंपरा शुरू हो गई। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे उनके जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

Published By : Ankur Shrivastava

पब्लिश्ड 30 October 2025 at 09:14 IST