अपडेटेड 3 August 2025 at 08:02 IST
4 या 5 अगस्त, एकादशी कब है? नोट कर लें सावन पुत्रदा एकादशी व्रत की सही डेट
सावन पुत्रदा एकादशी 2025 का व्रत 5 अगस्त को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और भगवान शिव की पूजा श्रद्धा और नियमपूर्वक करें। साथ ही, दान-पुण्य और भजन-कीर्तन से इस व्रत का पुण्य और बढ़ाएं।
Sawan Putrada Ekadashi Vrat : सावन महीने में भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। सावन में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान सुख, समृद्धि और खुशहाली के लिए किया जाता है। सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही पुत्रदा एकादशी कहा जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, यह व्रत विशेष रूप से उन दंपतियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी मनाई जाती है। लेकिन इस बार 4 या 5 अगस्त को लेकर भक्तों में असमंजस है। आइए जानते हैं सावन पुत्रदा एकादशी 2025 की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व।
सावन पुत्रदा एकादशी 2025 की सही तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 4 अगस्त, 2025 को सुबह 11:41 बजे शुरू होगी और 5 अगस्त 2025 को दोपहर 1:12 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के आधार पर, पुत्रदा एकादशी का व्रत 5 अगस्त 2025, मंगलवार को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष रूप से की जाती है।
शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:20 बजे से 05:02 बजे तक
- अभिजित मुहूर्त: दोपहर 12:00 बजे से 12:54 बजे तक
- रवि योग: सुबह 05:45 बजे से 11:23 बजे तक
- शाम का पूजन मुहूर्त: शाम 07:09 बजे से 07:30 बजे तक
- व्रत पारण (उपवास खोलने का समय): 6 अगस्त, 2025 को सुबह 05:45 बजे से 08:26 बजे तक
पुत्रदा एकादशी का महत्व
मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने और भगवान विष्णु जी की पूजा करने से नि:संतान जोड़ों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी खुश होते हैं, जिससे दंपतियों को संतान सुख मिलता है। इसके अलावा, यह व्रत सुख, समृद्धि और पारिवारिक एकता को बढ़ाने के लिए भी रखा जाता है। सावन के पवित्र माह में भगवान शिव और विष्णु की एक साथ पूजा करने से इस व्रत का महत्व और बढ़ जाता है।
पुत्रदा एकादशी पूजा विधि
सुबह उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ पीले या लाल रंग के वस्त्र धारण कर सबसे पहले सूर्यदेव को जल अर्पित करें। पूजा के लिए एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति रखें। भगवान विष्णु और लड्डू गोपाल को दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से बने पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद पीले फूल, तुलसी दल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
ये सब करने के बाद 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। पूजा कर दिनभर निराहार या फलाहार व्रत रखें। रात में भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें। जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, या अन्य सामग्री दान करें। आटे के दीपक बनाकर तेल या घी के साथ पीपल या बड़ के पत्ते पर रखकर नदी में प्रवाहित करें।
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 3 August 2025 at 07:56 IST