अपडेटेड 7 August 2025 at 21:13 IST
भारत-अमेरिका रिश्ते को तार-तार कर रहे डोनाल्ड ट्रंप, आखिर डबल स्टैंडर्ड क्यों?
Donald Trump Tariffs: पिछले तीन सालों से भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीद रहा है। ये कोई छुपी बात नहीं है और अब सात महीने हो चुके हैं डोनाल्ड ट्रंप को दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति बने हुए। लेकिन सवाल ये है कि अचानक ऐसा क्या बदल गया कि ट्रंप अब भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर दबाव बनाने लगे हैं?
Donald Trump Tariffs: डोनाल्ड ट्रंप की सबसे बड़ी मुश्किल क्या है? पहला - रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन उनकी सुन रहे हैं। दूसरा - भारत के प्रधानमंत्री मोदी उन्हें खास तवज्जो नहीं दे रहे हैं। ऐसे में ट्रंप की बेचैनी सोशल मीडिया पर बयानों की शक्ल में नजर आने लगी है। कुछ दिन पहले ही ट्रंप को पता नहीं किसने बताया कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है। वह सूट-बूट पहनकर तुरंत कैमरे के सामने आकर बोलने लगे कि 'मैंने सुना है कि भारत ने रूस से तेल लेना बंद कर दिया है।' लेकिन जब उनके सलाहकारों ने बताया कि भारत अभी भी रूस से तेल खरीद रहा है तो तिलमिलाए ट्रंप सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकालने लगे। उन्होंने ट्रुथ सोशल पर लिखा - 'भारत रूस से बड़े पैमाने पर कच्चा तेल खरीद रहा है। फिर उसे ओपन मार्केट में बेचकर भारी मुनाफा कमा रहा है। इस बात की कोई परवाह नहीं है कि यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं। इसी वजह से मैं भारत पर लगने वाले टैरिफ को और ज्यादा बढ़ाऊंगा।'' ट्रंप टैरिफ से टेरर लाने की कोशिश तो कर रहे हैं। लेकिन वह खुद टैरिफ की चाल में अप्रैल से अभी तक कई बार यू-टर्न ले चुके हैं।
खैर, बात मुद्दे की करते हैं। पिछले तीन सालों से भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीद रहा है। ये कोई छुपी बात नहीं है और अब सात महीने हो चुके हैं डोनाल्ड ट्रंप को दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति बने हुए। लेकिन सवाल ये है कि अचानक ऐसा क्या बदल गया कि ट्रंप अब भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर दबाव बनाने लगे हैं? अब तक तो वह सिर्फ ट्रेड डील, टैरिफ और भारत की सख्त बातचीत नीति की चर्चा करते थे। लेकिन जब वहां कोई बात नहीं बनी, तो ट्रंप ने रूस का नया कार्ड खेला है। असल में ट्रंप अब भारत और रूस दोनों पर दबाव डालना चाहते हैं। याद कीजिए, ट्रंप ने खुद कहा था कि वह राष्ट्रपति बनते ही पहले ही दिन रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म कर देंगे। लेकिन 197 दिन बीत चुके हैं। जंग जारी है और पुतिन उन्हें चकमा दे चुके हैं। अब ट्रंप ध्यान भटकाने के लिए भारत को टारगेट कर रहे हैं। यूक्रेन से हमदर्दी जताने की आड़ में भारत पर सवाल उठा रहे हैं। ट्रंप कहते हैं कि भारत को यूक्रेन में मर रहे लोगों की फिक्र नहीं है। जबकी दुनिया देख चुकी है कि कैसे ट्रंप और उनके साथियों ने व्हाइट हाउस में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का अपमान किया था, उन्हें घेर लिया था। वहीं प्रधानमंत्री मोदी की बात करें तो वो खुद यूक्रेन की यात्रा कर चुके हैं। जेलेंस्की से मुलाकात कर चुके हैं, उन्हें गले लगा चुके हैं। मोदी साफ कह चुके हैं, "ये युद्ध का युग नहीं है।" प्रधानमंत्री मोदी ने न सिर्फ जेलेंस्की को बल्कि पुतिन को भी शांति का संदेश दिया है।
वैसे आज जब भारत और रूस की मजबूत दोस्ती दुनिया के सामने एक मिसाल बन रही है, तो डोनाल्ड ट्रंप का तिलमिलाना भी लाजमी है। लेकिन आपको याद होगा। इसी साल फरवरी में खुद ट्रंप ने स्वीकार किया था कि रूस-यूक्रेन युद्ध की असली वजह अमेरिका की जिद थी। खासकर, यूक्रेन को जबरदस्ती NATO में शामिल करने की कोशिशें। यह बात ट्रंप ने किसी प्राइवेट बातचीत में नहीं, बल्कि खुले मंच से कही थी। इतना ही नहीं, रूस ने भी ट्रंप के इस बयान का स्वागत किया था, क्योंकि ट्रंप ने पहली बार पश्चिमी दुनिया का सच बताया था, जिसे अक्सर दबा दिया जाता रहा है। अब जरा सोचिए, जब ट्रंप खुद मान चुके हैं कि यूक्रेन की तबाही के लिए अमेरिका की नीतियां जिम्मेदार हैं, तो फिर ट्रंप आज किस हक से भारत पर आरोप लगा रहे हैं? डोनाल्ड ट्रंप को सिर्फ भारत का रूस से तेल खरीदना खटक रहा है। लेकिन वही यूरोपियन यूनियन से उन्हें कोई समस्या नहीं है, जो लगातार रूस से ऊर्जा खरीद रहा है। पिछले साल यूरोपियन यूनियन ने रूस से करीब 25 बिलियन डॉलर का तेल और गैस खरीदा। जबकि यूक्रेन को दी गई उनकी सैन्य मदद सिर्फ 21 बिलियन डॉलर रही। भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक, साल 2024 में यूरोपियन यूनियन और रूस के बीच 67.5 बिलियन यूरो का व्यापार हुआ। 2023 में भी दोनों का लेनदेन 17.2 बिलियन यूरो रहा, जो भारत-रूस के व्यापार से कहीं ज्यादा है। यही नहीं, अमेरिका भी रूस से व्यापार कर रहा है। अमेरिका अपने न्यूक्लियर प्लांट्स के लिए यूरेनियम, इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए पैलेडियम, और खाद-रसायन जैसे सामान रूस से मंगवा रहा है। ऐसे में सिर्फ भारत को निशाना बनाना न केवल गलत है, बल्कि बेवजह की नीति है। भारत आज एक बड़ी और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था है, जो अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही फैसले लेता है और लेता रहेगा।
इसी बीच, भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत एरिक गार्सेटी की एक पुरानी टिप्पणी एक बार फिर सोशल मीडिया पर वायरल है, जो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयानों से बिल्कुल उलट है। वायरल वीडियो में गार्सेटी यह स्वीकार करते हुए नजर आते हैं कि वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर बनाए रखने के लिए खुद वॉशिंगटन ने भारत को रूस से सीमित मूल्य पर तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था। यह बयान उन्होंने 2024 में हुए 'डायवर्सिटी इन इंटरनेशनल अफेयर्स' सम्मेलन में दिया था, जहां उन्होंने साफ कहा था कि भारत द्वारा रूस से तेल खरीदना अमेरिका की नीति का एक सोचा-समझा हिस्सा था। लेकिन आज ट्रंप की भाषा और रुख पूरी तरह बदल चुके हैं। उन्हें यह समझना होगा कि भारत ने न तो कोई अंतरराष्ट्रीय नियम तोड़ा है और न ही कोई दोहरा मापदंड अपनाया है। भारत ने वही किया जो एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक राष्ट्र को करना चाहिए। अपने नागरिकों और अर्थव्यवस्था के हित में निर्णय लेना। डोनाल्ड ट्रंप को यह भी समझने की जरूरत है कि भारत-अमेरिका संबंध केवल व्यापार या सुरक्षा तक सीमित नहीं हैं। यह भरोसे और आपसी सम्मान पर टिके हैं। बराक ओबामा ने भारत में जो विश्वास अर्जित किया था, और जो बाइडेन ने उसे आगे बढ़ाया, लेकिन ट्रंप की बयानबाजी अब उसी भरोसे को धीरे-धीरे कमजोर कर रही है।
Disclaimer: इस आर्टिकल में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 7 August 2025 at 21:13 IST