अपडेटेड 30 July 2024 at 19:17 IST
तीन 'होनहार' की मौत पर सियासत कब तक... सिस्टम या सरकार, दोषी कौन?
ये पहली बार नहीं है, कई हादसे हो चुके हैं... लेकिन ना तो सरकार जागी और ना ही सिस्टम जागा।
जिन्हें सिस्टम का हिस्सा बनना था उसे सिस्टम ने मार डाला और अब सिस्टम पर सवाल उठाए जा रहे हैं, सिस्टम को दोषी बताया जा रहा है, सिस्टम पर आरोप मढ़ा जा रहा है, लेकिन सवाल है कि इस सिस्टम को चला कौन रहा है? इस सिस्टम को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी किस पर है? हर बार कि तरह इस बार भी सिस्टम को दोषी ठहरा कर मामले को दाएं-बाएं करने की कोशिशें जारी हैं। सियासत एक-दूसरे पर आरोपों के बीच झूल रही है, लेकिन सवाल ये है कि क्या सरकार में बैठे लोगों को चिंता है? सवाल ये है कि जिनके हाथ में पब्लिक ने ताकत सौंपी है, क्या वो खरे उतर रहे हैं?
ओल्ड राजेंद्र नगर में हुई घटना दहला देने वाली है। वो तीन 'होनहार' जिनके सपने को सड़े सिस्टम ने हमेशा-हमेशा के लिए मार डाला। सिर्फ उन तीन छात्रों का ही नहीं इस घटना से कई परिवार जो अपने बच्चे को आईएएस, आईपीएस बनाना चाहते हैं, उनको गहरा धक्का लगा है। जरा सोचिए, जो देश चांद पर कदम रख लिया हो, 2047 तक विकसित भारत बनाने का सपना देख रहा हो... उस देश की राजधानी में बच्चों की मौत पानी में डूबने से हो जाती है, वो भी सरकार और सिस्टम की लापरवाही से। ऐसा नहीं है कि ऐसे हादसे पहली बार हुए हों।
हादसे हजार, सिस्टम लाचार!
याद कीजिए 15 जून 2023 की तारीख को... जब दिल्ली के मुखर्जी नगर के सिविल सर्विस कोचिंग सेंटर में आग लग गई। आग इतनी भयानक थी कि छात्रों को खिड़की से कूदकर जान बचानी पड़ी। उस हादसे में 61 छात्र घायल हो गए थे। ऐसा हादसा 25 जनवरी 2020 को दिल्ली के भजनपुरा इलाके में हुआ। कोचिंग सेंटर की छत गिर गई और इस घटना में 4 छात्रों समेत 5 लोगों की मौत हो गई थी। इतना ही नहीं, हादसे में 13 लोग घायल भी हुए थे।
ऐसे कई हादसे हो चुके हैं लेकिन ना तो सरकार जागी और ना ही सिस्टम जागा। हर बार सिस्टम को दोषी ठहराया गया। एक-दो अफसरों को सस्पेंड किया गया, कुछ छापेमारी की गई और फिर फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई। वैसे ही इस मामले को लेकर हो रहा है। 2 इंजीनियरों को सस्पेंड कर दिया गया है, 13 कोचिंग सेंटर पर कार्रवाई कर दी गई है। सियासतदान अपने 'लड़ाकों' के साथ मैदान में उतर आए हैं और एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। सियासी पार्टियां भले ही जनता के नाम पर, जनता के लिए वोट पाकर संसद या विधानसभा पहुंचती हों, लेकिन उसका मकसद जनता की सेवा नहीं, सिर्फ सत्ता की कुर्सी पर टिकी रहती है। सियासी पार्टियां कोई भी हो सभी हमाम में नंगी नज़र आती हैं।
दिल्ली में 1 लाख से ज्यादा संख्या में छात्र यूपीएसी की तैयारी करने पहुंचते हैं। बताया जा रहा है कि दिल्ली में सिविल सेवा की तैयारी करवाने वाले करीब 1,000 कोचिंग हैं और इन कोचिंग सेंटरों का सालाना टर्नओवर अनुमानित 3,000 करोड़ रुपये है। सालों से लोगों की गाढ़ी कमाई पर सेंध लगाते कोचिंग सेंटरों पर कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति क्यों होती रही है? शिक्षा को जिसने कारोबार बना लिया है उसे बचाने के लिए सिस्टम और सरकार क्यों इतनी उतावली दिखाई देती है? क्या इसी दिन के लिए लोगों ने अपना बहुमूल्य वोट देकर नेताओं को चुना था? क्या इसी दिन के लिए चुना था कि जब हादसा हो जाए तो सड़कों पर सिर्फ प्रदर्शन करके मामले से पल्ला झाड़ा जा सके?
देश के कई हिस्सों में कोचिंग का कारोबार चल रहा है। उसमें से कई कोचिंग बिना नियम-कानून के चलाए जा रहे हैं, लेकिन सरकारें आंखें मूदें बैठी हैं। प्रशासन करप्शन में लिप्त है और ऐसी घटनाओं के वक्त प्रशासन तेज़ी दिखाता है और फिर मामला शांत होते ही प्रशासन भी मामले को ठंडे बस्ते में डालकर सो जाता है। ऐसे में सवाल ये है कि सरकार और सिस्टम की नाकामी की भरपाई आम आदमी कब तक करता रहेगा? कब तक वो ऐसे लचर सिस्टम का शिकार होता रहेगा?
Published By : Sujeet Kumar
पब्लिश्ड 30 July 2024 at 19:17 IST