अपडेटेड 28 January 2025 at 20:53 IST
महाकुंभ से दिक्कत या दिल्ली में हार का डर! खड़गे ने बर्र के छत्ते में क्यों डाला हाथ?
सवाल है कि जब आपको किसी की आस्था का कद्र नहीं करना है तो फिर दिखावा क्यों करते हैं? क्यों ये जताने की कोशिश करते हैं कि सनातन के प्रति प्रेम है।
Mahakumbh 2025: आस्था पर सवाल उठाना कोई नई बात नहीं है। खासकर सनातन पर प्रश्न करना विपक्ष की नियति बन गई है। चाहे राम मंदिर की बात हो या फिर रामनवमी में पत्थरबाजों के पक्ष में चुप्पी साधने की। वैसे भी उस पार्टी या व्यक्ति पर ऐसी उम्मीद करना अपने आप को धोखा देने से कम नहीं जो सनातन उन्मूलन कार्यक्रम चलाता हो। सनातन शाश्वत है...जिसका न आदि है न अन्त।
सनातन की शक्ति से सभी लोग परिचित हैं लेकिन दशकों से सनातन का अपमान किया जा रहा है चाहे वो फिल्मों के जरिए हो या फिर सियासत के जरिए... सनातन को बुरा दिखाने की होड़ चलती रही, लेकिन सनातन अडिग है अटल है।
जहां तक बात सियासतदानों का है तो वो सिर्फ और सिर्फ वोटबैंक के लिए सनातन को नीचा दिखाने की कोशिश करते आए हैं। लेकिन हकीकत ये है कि विपक्ष को शुरुआती दिनों में सनातन के प्रति द्वेष का राजनीतिक फायदा मिला पर अब लोग विपक्ष की नीति और नियति दोनों समझने लगे हैं। जिसका परिणाम चुनाव में दिखने लगा है। लेकिन कहते हैं जिस व्यक्ति की जिसकी जैसी आदत होती है वो अपनी आदत से बाज नहीं आता है। यही वजह है कि विपक्ष का कोई ना कोई नेता गाहे-बगाहे सनातन का अपमान कर ही देता है। ऐसे में चाणक्य के नीतिशास्त्र के सोलहवें अध्याय में लिखा है कि विनाशकाले विपरीत बुद्धि। और ये बात विपक्ष के नेताओं पर सटीक बैठता है।
मल्लिकार्जुन खड़गे का विवादित बयान
अब देखिए पिछले 16 दिनों से प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है। अब तक 12 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु प्रयागराज में पवित्र स्नान कर चुके हैं। नेता हो या आम आदमी हर कोई संगम में डुबकी लगा रहा है और अपनी सनातनी परंपरा का निर्वाह कर रहा है। ऐसे वक्त में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की मति खराब हुई और उन्होंने कह दिया गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी दूर नहीं होगी। वैसे मल्लिकार्जुन खड़गे के निशाने पर गृहमंत्री अमित शाह थे लेकिन उनके मन में जो सनातन के प्रति नफरत है वो उजागर हो गया। वैसे उन्हें बाद में समझ में आया कि उनसे गलती हो गई तो उन्होंने माफी भी मांग ली लेकिन सवाल ये है कि आखिरकार ऐसी गलतियां कांग्रेस लगातार क्यों कर रही है?
गलती एक बार होती है ना की बार बार। दिल्ली में चुनाव है। कांग्रेस की हालत पतली है। राहुल गांधी मंदिर मंदिर भटक रहे हैं ये जताने के लिए वो सनातन के प्रति कितने उदार है लेकिन राहुल गांधी की मेहनत एक बयान में गुड़ गोबर हो गई और राहुल गांधी का सनातन के प्रति दिखावटी प्रेम जगजाहिर हो गया। ऐसे में सवाल है कि जब आपको किसी की आस्था का कद्र नहीं करना है तो फिर दिखावा क्यों करते हैं? क्यों ये जताने की कोशिश करते हैं कि सनातन के प्रति प्रेम है। भई जो नहीं पसंद है वो नहीं पसंद। क्यों कांग्रेस और कांग्रेस के बड़े नेता अपनी छीछालेदर करने में जुटे हैं। विपक्ष को समझना चाहिए कि सनातन का सबसे बड़ा समागम चल रहा है। ये संयोग 144 साल बाद आया है। जो इस वक्त जिंदगी जी रहे हैं शायद ही कोई अगले महाकुंभ का साक्षात्कार कर सकें। हर सनातनी के लिए ये महाउत्सव का पर्व है ऐसे में इस तरह का बयान उनकी सोच को दर्शाती है। खड़गे की इस गलती को बीजेपी ने तुरंत लपक लिया। भारतीय जनता पार्टी की ओर से संबित पात्रा, हिमंता बिस्वा सरमा और कई बड़े नेताओं ने ताबड़तोड़ हमले कर दिए। इस बयान पर साधु-संतों का समाज भी गुस्से में आ गया। बाबा बागेश्वर धीरेंद्र शास्त्री ने खड़गे की मंशा पर सवाल उठा दिए।
दरअसल सदियों से कांग्रेस और उनके सहयोगियों को तुष्टिकरण की सियासत करने की आदत हो गई है। लेकिन अब अल्पसंख्यक वोट के लिए कई दावेदार मैदान में हैं। अल्पसंख्यक वोट के लिए इंडी गठबंधन में भी होड़ चल रहा है। चाहे वो अखिलेश की पार्टी हो या फिर केजरीवाल की पार्टी, हर कोई अल्पसंख्यक वोट पाने के लिए ताकत लगा रहा है। हालांकि केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव में 11 महीने से मौलानाओं को सैलरी नहीं दी लेकिन पुजारियों और ग्रंथियों को 18 हजार हर महीने का वादा जरूर कर दिया है। मंदिर के जीर्णोद्धार का संकल्प ले लिया है। ऐसे में सवाल ये है कि ऐसा दिखावा क्यों और कब तक चलेगा। कभी ना कभी तो केजरीवाल हो या फिर कोई और उसकी तो पोल खुलेगी ही ना। वैसे सभी सियासतदानों ने हिंदू वोट पर दांव लगाया है। उसकी वजह साफ है कि दिल्ली में 82% हिंदू हैं, मुस्लिम 13% वहीं सिख 4% जबकि ईसाई 1% हैं।
दिल्ली का चुनाव, हिंदू वोट पर दांव!
हिंदू- 82%
मुस्लिम- 13%
सिख - 4%
ईसाई -1%
कांग्रेस पिछले 11 साल से सत्ता से दूर है। शीला दीक्षित के बाद कांग्रेस का कोई ऐसा नेता उभर कर सामने नहीं आया है जो कांग्रेस को उबार सके। पार्टी के मजबूत नेता या तो बीजेपी में चले गए या फिर उन्होंने आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया है। ऐसे में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। राहुल गांधी 'मंदिर सियासत' में जुटे हैं लेकिन कांग्रेस की नैय्या पार हो जाए ऐसे संकेत मिल नहीं रहे हैं वहीं केजरीवाल का डर बढ़ता ही जा रहा है। आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर रेवड़ियां बांटने की कोशिश की है लेकिन बीजेपी ने उन्हीं के हथियार से उन्हें चित करने की कोशिश में है। ऐसे में केजरीवाल की 'रेवड़ी पॉलिटिक्स' कमजोर दिखाई दे रही है।
वैसे बीजेपी भी 26 साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर है ऐसे में इस बार बीजेपी 26 साल के सूखे को खत्म करना चाहती है यही वजह है कि दिल्ली की लड़ाई बीजेपी Vs आम आदमी पार्टी दिखाई दे रही है। ऐसे में आने वाला वक्त ही बताएगा कि कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों का सनातन के प्रति नफरत का नतीजा क्या होगा...बस इंतजार कीजिए 8 फरवरी का जब दिल्ली चुनाव के नतीजे आएंगे।
Published By : Sujeet Kumar
पब्लिश्ड 28 January 2025 at 20:53 IST