अपडेटेड 11 February 2025 at 18:59 IST
दिल्ली में हार, पंजाब में क्यों हाहाकार? केजरीवाल कर पाएंगे कोई चमत्कार
दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी की हार के बाद चुनाव के साइड इफेक्ट दिखने लगे हैं। दिल्ली की आंच पंजाब तक पहुंच गई है।
दिल्ली में जो होना था वो 8 फरवरी को हो गया। स्वाभाविक है एक तरफ खुशी की बहार थी तो दूसरी तरफ सुखे हुए मुंह दिखाई दिए। ये अलग बात है कि आतिशी के चेहरे पर चमक बरकरार थी लेकिन वजह भी है कि मोदी वेव में आतिशी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहीं। मोदी वेव में ना तो केजरीवाल सीट बचा सके...ना ही मनीष सिसोदिया बच पाए और मोदी वेव में सौरभ भारद्वाज और सत्येंद्र जैन भी बह गए। हालत ये हो गई कि जो पार्टी 60 से ऊपर सीट जीता करती थी वो 22 सीटों पर सिमट कर रह गई।
ऐसा हर बार होता है चुनाव में कोई हारता तो कोई जीतता है। ये किसी भी चुनाव में होता आया है। ऐसे में अब बात खत्म हो जानी चाहिए थी लेकिन दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी की हार के बाद चुनाव के साइड इफेक्ट दिखने लगे हैं। दिल्ली की आंच पंजाब तक पहुंच गई है और इस आग की लपटे कहीं पंजाब में भी आप को खत्म ना कर दें इसको लेकर केजरीवाल एंड पार्टी डरी हुई है। यही वजह है कि दिल्ली में चुनाव हारने के बाद ना तो केजरीवाल ने हारे हुए प्रत्याशियों के साथ बैठक की और ना ही जीते हुए प्रत्याशियों के साथ मीटिंग की। दिल्ली में हार के साथ उन्हें पंजाब में सरकार जाने के सपने सताने लगे हैं। जिसका नतीजा है कि केजरीवाल ने दिल्ली के कपूरथला हाउस में पंजाब के आम आदमी पार्टी के विधायकों की बैठक बुलाई।
अब जरा सोचिए जो पार्टी पिछले 4 महीनों से कैबिनेट की बैठक नहीं बुलाई उसे सभी विधायकों के साथ मीटिंग करनी पड़ रही है। इसका मतलब पंजाब में कुछ ना कुछ खिचड़ी पक रही है। उसका पटाक्षेप होना बाकी है। वैसे अंदेशा लगाया जा रहा है कि केजरीवाल पंजाब के सीएम को बदलने वाले हैं...अब आम आदमी पार्टी में क्या पक रहा है कहना मुश्किल है लेकिन दिल्ली की सीएम रहीं आतिशी के बयान सबको सकते में डाल सकता है उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार अभी खतरे में है। सवाल ये है कि आम आदमी पार्टी के पास पूर्ण बहुमत है। पंजाब की 117 सीटों वाली विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 92 विधायक हैं। और बचे हुए सीटों पर बाकी सियासी पार्टियां काबिज है ऐसे में खतरा किस बात है? यानि साफ है कि आम आदमी पार्टी में सबकुछ ठीक ठाक नहीं है। ऐसे साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि दिल्ली हार के बाद सहनभूति बटोरने के लिए केजरीवाल एंड कंपनी सियासत करने में लगी है।
पंजाब की हलचल में विपक्ष भी दौड़ लगा रहा है। इस दौड़ में ना कांग्रेस और ना ही बीजेपी अपने सियासत पत्ते फेंकने से चूक रही है। कांग्रेस ताने कस रही है कि अब पंजाब में भगवंत मान का सीएम रहना मुश्किल है क्योंकि केजरीवाल का सपना था पंजाब का सीएम बनाना। ऐसे में केजरीवाल सीएम पद के लिए भगवंत मान की बलि लेने की तैयारी कर रहे हैं । दूसरा दावा ये भी है कि आम आदमी पार्टी के ज्यादात्तर विधायक संपर्क में हैं और वो आम आदमी पार्टी को छोड़ना चाहते हैं। वहीं बीजेपी 2027 में पंजाब में फिर से चुनाव होने का शिगूफा छोड़ा है। अब पंजाब के विपक्ष के बातों में सच्चाई है या फिर कोरी सियासत... कहना मुश्किल है लेकिन केजरीवाल जिस हिसाब डरे-डरे दिखाई दे रहे हैं उससे साफ है कि आम आदमी पार्टी में कुछ ना कुछ गड़बड़ है।
वैसे भी आम आदमी पार्टी की दो जगह सरकार थी पहली दिल्ली और दूसरी पंजाब में। दिल्ली से केजरीवाल की पार्टी हार गई अब पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार रह गई है। ऐसे में जो अटकलें लगाई जा रही है वो सच भी हो सकता है या फिर कोरी सियासत। ऐसे में केजरीवाल को अपने विधायकों के साथ लगातार बैठक करनी चाहिए। सिर्फ पंजाब के विधायकों के साथ ही नहीं दिल्ली में जीते हुए विधायकों के साथ। इतना ही नहीं हारे हुए प्रत्याशियों के साथ भी मीटिंग करके उनका मनोबल बढ़ाने का काम करना होगा। इसके साथ जो उनपर दाग लगे हैं। उससे बेदाग होकर निकलना होगा क्योंकि अब फिर से दिल्ली फतह करना केजरीवाल के लिए आसान नहीं होगा। बहरहाल, भगवंत मान के बयान वही रटारटाया निकला... लगता है कि आम आदमी पार्टी अभी अपने पत्ते खोलना नहीं चाहती है लेकिन सच तो ये है कि दिल्ली में मिली करारी हार के बाद केजरीवाल का जो अहम था वो जरूर टूटा है जिसका नतीजा है कि वो पंजाब के विधायकों को कहते फिर रहे हैं कि दो साल सिर्फ और सिर्फ काम पर ध्यान दें। लेकिन कहते हैं ना ….अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
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Published By : Deepak Gupta
पब्लिश्ड 11 February 2025 at 18:59 IST