अपडेटेड 12 August 2025 at 18:17 IST
सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन मामला बंद किया: आयुष विज्ञापन में बड़ा मोड़
भले ही मामला बंद होना पतंजलि के लिए राहत का संकेत है, लेकिन यह फैसला स्वास्थ्य-संबंधी मार्केटिंग में ईमानदारी और जवाबदेही के लिए एक मिसाल भी कायम करता है।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) द्वारा दायर लंबे समय से चल रहे भ्रामक विज्ञापन के मामले को आधिकारिक रूप से बंद कर दिया है। यह ऐतिहासिक फैसला आयुष (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी) चिकित्सा विज्ञापन के नियमन में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है और उपभोक्ता संरक्षण व मीडिया अनुपालन के ढांचे को नए सिरे से परिभाषित करता है।
मामला 2022 में तब शुरू हुआ जब IMA ने पतंजलि आयुर्वेद, जिसे बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने सह-स्थापित किया है, पर ऐसे विज्ञापन प्रकाशित करने का आरोप लगाया जो न केवल आधुनिक चिकित्सा को बदनाम करते थे बल्कि उनके उत्पादों के बारे में आपराधिक रूप से भ्रामक दावे भी करते थे। इन दावों में उच्च रक्तचाप, अस्थमा और मधुमेह जैसी पुरानी बीमारियों से स्थायी राहत का वादा करना और आधुनिक चिकित्सा को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करना शामिल था। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, आयुष मंत्रालय और पतंजलि से जवाब मांगा। उस समय मीडिया में सुर्खियां बनीं ‘पूरा प्रतिबंध लगाया जाएगा…’ जो इस मामले की गंभीरता को दर्शाती थीं।
2024 की शुरुआत में, पतंजलि को कई न्यायिक फटकार और कानूनी आदेशों का सामना करना पड़ा। फरवरी में, अदालत ने कुछ भ्रामक विज्ञापनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया और कंपनी को तलब किया कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए। न्यायाधीशों ने टिप्पणी की कि ‘पूरा देश मूर्ख बनाया जा रहा है’ जिससे मामले की गंभीरता और स्पष्ट हो गई। जब पतंजलि ने सार्वजनिक माफीनामे जारी किए तो अदालत ने उन्हें ‘औपचारिकता निभाना’ बताते हुए खारिज कर दिया और सख्त रुख अपनाया।
इसके बाद 14 उत्पादों के निर्माण लाइसेंस निलंबित कर दिए गए और ऑनलाइन व प्रिंट में जारी भ्रामक विज्ञापनों पर कड़ी निगरानी रखी गई। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसनुद्दीन अमानुल्लाह ने इन उत्पादों को बाजार से हटाने के आदेश दिए और बार-बार अनुपालन के महत्व पर जोर दिया। हालांकि कंपनी ने संशोधित माफीनामा प्रस्तुत किया जिसमें दोनों संस्थापकों के नाम शामिल थे, अदालत की चिंता बनी रही।
स्थिति तब और जटिल हो गई जब उत्तराखंड के राज्य औषधि नियामक पर सुप्रीम कोर्ट ने लापरवाही का आरोप लगाया। अदालत ने कहा कि 2018 से उल्लंघन की जानकारी होने के बावजूद नियामक ने केवल चेतावनी दी, कार्रवाई नहीं की।
हालांकि, 11 अगस्त 2025 को मामला अप्रत्याशित मोड़ पर पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने IMA की याचिका को निपटाया, अवमानना मामला बंद कर दिया और दवाओं एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 को हटाने पर केंद्र सरकार के फैसले पर लगी रोक हटा दी। नियम 170 के तहत आयुष विज्ञापनों के लिए राज्य-स्तरीय पूर्व स्वीकृति अनिवार्य थी, जिससे विज्ञापन दावों पर कड़ा नियंत्रण रहता था। अदालत ने कहा कि IMA को जो राहत चाहिए थी, वह पहले ही पूर्व आदेशों के जरिए मिल चुकी है, और मंत्रालय द्वारा नियम हटाना पर्याप्त है।
इस फैसले के व्यापक असर हैं। एक ओर, यह फैसला आयुष कंपनियों के लिए विज्ञापन प्रमोशन की प्रक्रिया को आसान बनाता है, क्योंकि अब राज्य-स्तरीय अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी कायम है कि भविष्य में किसी भी भ्रामक विज्ञापन पर तुरंत कानूनी कार्रवाई होगी। अदालत के पूर्व निर्णय में नए अनुपालन उपाय भी शामिल थे, जैसे विज्ञापन एजेंसियों और सेलिब्रिटी एंडोर्सर्स को झूठे दावों के लिए जिम्मेदार ठहराना और स्वास्थ्य-संबंधी विज्ञापनों के प्रकाशन से पहले स्व-घोषणा प्रमाणपत्र अनिवार्य करना।
इस प्रकार, भले ही मामला बंद होना पतंजलि के लिए राहत का संकेत है, लेकिन यह फैसला स्वास्थ्य-संबंधी मार्केटिंग में ईमानदारी और जवाबदेही के लिए एक मिसाल भी कायम करता है। उपभोक्ताओं के लिए यह निर्णय सतर्कता की नई मांग करता है, क्योंकि नियम 170 का हटना भले ही प्रक्रिया को आसान बनाता है, लेकिन भ्रामक दावों के खतरे को कम नहीं करता जब तक कि कंपनियां और प्रकाशक खुद पारदर्शिता और नैतिकता का पालन न करें।
यह बंद अध्याय भविष्य के कानून निर्माण को भी आकार दे सकता है। अदालत का दृष्टिकोण, जिसमें इन्फ्लुएंसर्स और सेलिब्रिटीज की जिम्मेदारी और पूर्व स्व-घोषणा की आवश्यकता शामिल है, दर्शाता है कि डिजिटल युग में उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए कानूनी ढांचा विकसित हो रहा है।
पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ मामले को बंद करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक साथ जीत और चेतावनी दोनों है। यह आयुष विज्ञापन के लिए रास्ता आसान करता है, लेकिन यह भी साफ कर देता है कि नियम तोड़ने पर सख्त कार्रवाई होगी। अब देखना यह है कि यह फैसला पार
Published By : Priyanka Yadav
पब्लिश्ड 12 August 2025 at 18:17 IST