अपडेटेड 5 November 2025 at 23:00 IST

18% बनाम 5%: GST की विरोधाभासी संरचना MSME रीसाइक्लर्स को दिवालियापन की ओर धकेल रही है

भारत का रीसाइक्लिंग क्षेत्र - जिसमें प्लास्टिक, धातु, कागज, ई-कचरा और अन्य सामग्री शामिल हैं - पर्यावरणीय जिम्मेदारी और आर्थिक अवसर के चौराहे पर खड़ा है।

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MSME रीसाइक्लर्स | Image: MSME

भारत का रीसाइक्लिंग सेक्टर, जिसमें प्लास्टिक, धातु, कागज, ई-कचरा और अन्य सामग्रियां शामिल हैं, आज पर्यावरणीय जिम्मेदारी और आर्थिक अवसर के चौराहे पर खड़ा है। यह क्षेत्र भारत के हरित परिवर्तन को गति दे सकता है, लैंडफिल कचरे को कम कर सकता है और नई कच्ची सामग्री के उत्पादन से होने वाले उत्सर्जन में भारी कटौती ला सकता है। लेकिन इस दिशा में आगे बढ़ने से पहले ही, मौजूदा गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) ढांचा रीसाइक्लर्स के लिए राहत की बजाय एक ‘ब्लैक होल’ साबित हो रहा है।

इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर: समस्या की जड़

मुख्य चुनौती उस स्थिति से उत्पन्न होती है जिसे विशेषज्ञ “इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर” कहते हैं। वर्तमान में PET स्क्रैप पर GST दर 18% है, जबकि रीसाइकिल्ड PET फाइबर पर केवल 5% कर लगाया जाता है। इस असंतुलन के कारण रीसाइक्लर्स को अपने इनपुट्स पर अधिक टैक्स देना पड़ता है, जबकि आउटपुट पर कम कर लिया जाता है।
परिणामस्वरूप, उनकी कार्यशील पूंजी इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के रूप में फंस जाती है। खासकर MSME क्षेत्र के रीसाइक्लर्स के लिए यह एक गंभीर कैश-फ्लो संकट बन जाता है। धीमी रिफंड प्रक्रिया इस स्थिति को और बिगाड़ देती है, जिससे रीसाइक्लिंग वैल्यू चेन में औपचारिक भागीदारी घटती जा रही है। एक रीसाइक्लर ने कहा, “हम GST कानूनों का पालन करते हैं, लेकिन हमारे ITC की वास्तविकता की गारंटी कौन देगा? हम खरीदे गए स्क्रैप पर टैक्स सहित कीमत चुकाते हैं, और महीनों बाद GST विभाग से नोटिस मिलता है कि स्रोत फर्जी था और ITC को ब्याज व जुर्माने के साथ वापस करना होगा।”

औपचारिक रीसाइक्लर्स की मुश्किलें और बढ़ी अनौपचारिकता

यह समस्या केवल कर ढांचे तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत की रीसाइक्लिंग अर्थव्यवस्था की दिशा तय कर रही है। स्क्रैप पर 18% का उच्च कर छोटे और अनुपालक रीसाइक्लर्स को GST सिस्टम में बने रहने से हतोत्साहित करता है। इसके विपरीत, यह नकद-आधारित अनौपचारिक व्यापार को बढ़ावा देता है, जहां कोई टैक्स नहीं दिया जाता।
नतीजतन, वैध व्यवसाय ग्रे मार्केट से पिछड़ जाते हैं। इस स्थिति से सरकार को राजस्व हानि होती है और पर्यावरणीय लागत बढ़ती है, क्योंकि अधिक कचरा लैंडफिल में समाप्त हो जाता है।

CSE रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाने वाले हैं

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की 2025 की रिपोर्ट "रिलैक्स द टैक्स" के अनुसार, भारत के कचरा क्षेत्र में अनौपचारिकता का स्तर बेहद ऊंचा है —

कागज और कांच में 95%

प्लास्टिक में 80%

ई-कचरे में 90%

धातुओं में 65%

रिपोर्ट के मुताबिक, औपचारिक रीसाइक्लिंग से ₹30,900 करोड़ का टैक्स इकट्ठा होता है, जबकि संभावित राजस्व ₹65,300 करोड़ सालाना है। यानी लगभग ₹34,000 करोड़ का नुकसान। अगर सुधार नहीं हुए, तो यह असंतुलन 2035 तक दोगुना हो सकता है।

GST संग्रह की खामियां

भारत में ज्यादातर स्क्रैप अनौपचारिक नेटवर्क से आता है। स्क्रैप औपचारिक रीसाइक्लर तक पहुंचने से पहले कई छोटे डीलरों से गुजरता है, और केवल अंतिम लेनदेन पर GST लगाया जाता है।
यह व्यवस्था फर्जी बिलिंग और केवल कागज पर कारोबार करने की गुंजाइश देती है। परिणामस्वरूप, ईमानदार रीसाइक्लर्स को भी उलट जांच और पेनाल्टी का सामना करना पड़ता है यदि कोई पूर्व डीलर टैक्स जमा न करे।

सर्कुलर इकॉनमी पर पड़ रहा नकारात्मक असर

इनवर्टेड टैक्स स्ट्रक्चर न केवल कैश फ्लो को प्रभावित करता है, बल्कि भारत की सर्कुलर इकॉनमी के निर्माण में भी बाधा डालता है। जब रीसाइकिल्ड सामग्री पर टैक्स दरें कुंवारी सामग्री से ज्यादा या असंगत होती हैं, तो उद्योग स्वाभाविक रूप से सस्ते, गैर-रीसाइकिल्ड इनपुट्स की ओर झुकते हैं।
इससे रीसाइकिल्ड वस्तुओं की मांग घटती है और देश के स्थिरता लक्ष्यों को झटका लगता है।

उद्योग के सुझाए गए सुधार:

रीसाइक्लिंग सेक्टर को गति देने के लिए विशेषज्ञों ने कुछ ठोस सुझाव दिए हैं-

1. स्क्रैप पर GST दर 18% से घटाकर 5% करना, ताकि इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर खत्म हो और रीसाइक्लर्स को राहत मिले।

2. रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म (RCM) लागू करना, जिससे रीसाइक्लर्स सीधे सरकार को टैक्स अदा कर सकें और फर्जी डीलर चेन खत्म हो सके।

3. अनौपचारिक क्षेत्र से आने वाले “पुराने स्क्रैप” के लिए केवल 1% नाममात्र GST दर तय करना।

4. रिफंड प्रक्रिया को तेज करना, ताकि छोटे रीसाइक्लर्स का कैश-फ्लो सुधर सके और ITC समय पर मिल सके।

सुधारों से खुल सकते हैं निवेश के नए द्वार

CSE के अनुमानों के अनुसार, अगर ये सुधार लागू किए जाते हैं-

निजी निवेश में अरबों रुपये खुल सकते हैं,

एक लाख से अधिक ग्रीन जॉब्स सृजित हो सकते हैं,

औपचारिक रीसाइक्लिंग क्षमता दोगुनी हो सकती है,

और हर साल हजारों टन कचरे को लैंडफिल से बचाया जा सकता है।

 

 

 

Published By : Kirti Soni

पब्लिश्ड 5 November 2025 at 23:00 IST