अपडेटेड 19 December 2025 at 16:58 IST
Aravalli की परिभाषा बदलते ही राजस्थान पर क्यों मंडराने लगा रेगिस्तान बनने का खतरा? इन पहाड़ियों के लुप्त होने से क्या होगा असर
Aravalli Hills : सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा बदल दी, जिसमें अब केवल 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियां ही संरक्षित मानी जाएंगी। इससे 91% क्षेत्र सुरक्षा से बाहर हो जाएगा, खनन और विकास बढ़ेगा। अरावली थार रेगिस्तान को रोकती हैं, भूजल रिचार्ज करती हैं और प्रदूषण कम करती हैं। अरावली के ना रहने से रेगिस्तान फैलेगा, धूल प्रदूषण बढ़ेगा और जल संकट गहराएगा।
Save Aravallis : भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला अरावली अब गंभीर खतरे में है। सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर, 2025 को केंद्र सरकार की समिति की सिफारिशें मानते हुए अरावली की नई परिभाषा तय की है। अब केवल वे पहाड़ियां अरावली मानी जाएंगी जो 100 मीटर या इससे अधिक ऊंची होंगी। इस विवादास्पद परिभाषा ने पर्यावरणविदों के बीच चिंताएं पैदा कर दी हैं, जो दावा करते हैं कि इससे 91% पहाड़ियां बाहर हो जाएंगी, जिससे उनके संरक्षण दर्जा खोने का खतरा होगा।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, अरावली की अधिकांश पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली हैं। नतीजतन, करीब 90-91% क्षेत्र संरक्षण से बाहर हो सकता है। दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से अरावली पर्वतमाला दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली हुई है। पहले वन सर्वेक्षण विभाग की परिभाषा में ढलान, बफर जोन और अंतर-पहाड़ी दूरी जैसे मानक थे। नई परिभाषा से छोटी पहाड़ियां, जो पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, अब असुरक्षित हो गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे खनन और रियल एस्टेट गतिविधियां बढ़ेंगी।
अरावली क्यों महत्वपूर्ण हैं?
अरावली पहाड़ियां उत्तर-पश्चिम भारत के पर्यावरण की रीढ़ हैं। ये थार रेगिस्तान की रेत को पूर्व की ओर फैलने से रोकती हैं, जिससे गंगा-यमुना के उपजाऊ मैदान रेगिस्तान बनने से बचते हैं। ये पहाड़ियां भूजल रिचार्ज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, क्योंकि इनकी पथरीली संरचना वर्षा जल को धीरे-धीरे जमीन में पहुंचाती है। सहबी, बनास और लूनी जैसी नदियों के जल स्रोत यहीं से हैं।
इसके अलावा, अरावली दिल्ली-एनसीआर के लिए 'ग्रीन लंग्स' की तरह काम करती हैं, प्रदूषण कम करती हैं, मिट्टी का रिसना रोकती हैं और जैव विविधता को संरक्षित रखती हैं। यहां तेंदुआ, हाइना जैसे वन्यजीव और अलग-अलग पक्षी पाए जाते हैं। सरिस्का टाइगर रिजर्व जैसी जगहें इसी श्रृंखला का हिस्सा हैं।
पहाड़ियों के लुप्त होने से क्या होगा असर?
अरावली दिल्ली से गुजरात तक करीब 700 किलोमीटर में फैली हुई है और उत्तर भारत की पर्यावरणीय रीढ़ है। ये थार रेगिस्तान को पूर्व की ओर फैलने से रोकती हैं, दिल्ली-एनसीआर में धूल भरी आंधियां नियंत्रित करती हैं, भूजल रिचार्ज करती हैं और जैव विविधता का खजाना हैं। अगर ये पहाड़ियां गायब हुईं तो रेगिस्तान तेजी से बढ़ेगा, भूजल स्तर और गिरेगा, प्रदूषण बढ़ेगा और कृषि प्रभावित होगी। पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि दिल्ली की हवा और खराब हो सकती है।
अरावली क्षेत्र खनिजों से समृद्ध है, जैसे तांबा, फॉस्फेट और मार्बल। नई परिभाषा से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां खनन और निर्माण के लिए खुल सकती हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि यह फैसला अवैध खनन को बढ़ावा देगा, जिससे पहले से क्षतिग्रस्त क्षेत्र और बर्बाद होंगे। हरियाणा और राजस्थान के कई जिलों में पहले ही खनन से बड़ी तबाही हो चुकी है।
पूरी तरह बदल जाएंगे हालात
अरावली के विनाश से गंभीर संकट पैदा होगा। थार की रेत दिल्ली-एनसीआर तक पहुंचेगी, धूल प्रदूषण बढ़ेगा और सांस संबंधी बीमारियां फैलेंगी। भूजल स्तर गिरेगा, सूखा पड़ेगा और नदियां-झीलें सूख जाएंगी। मिट्टी का रिसना बढ़ेगा, खेती प्रभावित होगी और तापमान चरम सीमा तक पहुंचेगा। धूल भरी आंधियां और हीटवेव आम हो जाएंगी। राजस्थान के जयपुर, जोधपुर जैसे शहर रेगिस्तानी हालात का सामना करेंगे।
कई पर्यावरणविदों ने यह भी चेतावनी दी है कि लू और धूल भरी आंधी की घटनाएं बढ़ सकती हैं। इससे कई लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। इसके अलावा, जल संकट और वनों की कटाई भी हो सकती है, जिसका असर क्षेत्र के वन्यजीवों पर पड़ सकता है।
Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 19 December 2025 at 16:58 IST