अपडेटेड 13 August 2024 at 13:59 IST
जब 15 अगस्त 1947 को देश मना रहा था आजादी, तो जश्न में क्यों नहीं शामिल हुए थे महात्मा गांधी?
Independence Day 2024: आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि 15 अगस्त 1947 के दिन महात्मा गांधी खुश नहीं बल्कि बेहद दुखी थे।
Independence Day 2024: आजादी... ये शब्द अपने आप में पूरी कहानी है। इस धरती पर किसी व्यक्ति को सबसे ज्यादा किसी चीज है प्यार है तो वो है आजादी। भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए कई वीरों ने अपनी प्राणों की शहादत दी। वहीं, कुछ नाम ऐसे भी हैं जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने के बाद देश की राजनीति और संविधान में अपना अहम योगदान दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भारत की आजादी का सूत्रधार कहा जाता है। बापू ने अशांति की राह पर चलकर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ दिया, लेकिन क्या आपको पता है कि 15 अगस्त 1947 को जब पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा था तब महात्मा गांधी इस जश्न में शामिल नहीं हुए थे।
दरअसल, आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि 15 अगस्त 1947 के दिन महात्मा गांधी खुश नहीं बल्कि बेहद दुखी थे। इसके पीछे की बड़ी वजह ये थी कि भारत को भले ही ब्रिटिश राज्य से आजादी मिल गई थी, लेकिन अंग्रेजों ने जाते-जाते देश को दो टुकड़ों में बांट दिया था। बंगाल और पंजाब जल रहा था। हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग एक दूसरे को काटने में लगे थे। यही कारण था कि महात्मा गांधी 15 अगस्त 1947 के दिन आजादी के जश्न में शामिल नहीं हुए थे।
15 अगस्त 1947 को कहां थे महात्मा गांधी?
15 अगस्त 1947 की पूर्व संध्या पर, जब भारत स्वतंत्रता का जश्न मनाने के लिए तैयार हो रहा था तब महात्मा गांधी दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर अनसन पर बैठे थे। बापू ना तो 15 अगस्त को राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित समारोह का हिस्सा बने और ना ही इसका जश्न मनाया।
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता दिवस कलकत्ता में बिताया और शहर में शांति बहाल करने के लिए कड़ी मेहनत की, जहां उस समय एक-दूसरे के खून के प्यासे समुदायों के बीच सांप्रदायिक हिंसा देखी जा रही थी। 9 अगस्त, 1947 को वो कलकत्ता (अब कोलकाता) पहुंचे और हिंदू अल्पसंख्यकों को वचन दिया कि वो उन्हें विभाजन के प्रकोप से बचाएंगे। महात्मा गांधी ने नोआखली, कलकत्ता (अब बांग्लादेश) की यात्रा की, जहां दंगे अपने चरम पर थे। पुरुषों को मारा जा रहा था, महिलाओं का अपहरण और बलात्कार किया जा रहा था और हिंदुओं को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जा रहा था।
11 अगस्त को गांधी जी ने बंगाल के तत्कालीन प्रधान मंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी से मुलाकात की। सुहरावर्दी ने बापू से बंगाल के मुसलमानों को अपनी सुरक्षा देने के लिए कहा। बापू ने इसके लिए एक शर्त रखी। वो यह आश्वासन चाहते थे कि नोआखाली में हिंदुओं को कोई नुकसान नहीं होगा। हालांकि, जब हिंदुओं को पता चला कि गांधी सुहरावर्दी के साथ थे, जिसे 1946 के कलकत्ता हत्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था तो वे भड़क गए। उत्तेजित भीड़ ने उस आवास पर पथराव किया जहां गांधी और सुहावर्दी रह रहे थे, सुहरावर्दी ने 1946 में कलकत्ता हत्याओं की जिम्मेदारी ली और जनता के सामने अपना खेद व्यक्त किया।
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Published By : Ritesh Kumar
पब्लिश्ड 13 August 2024 at 13:59 IST