अपडेटेड 3 August 2024 at 20:11 IST
क्या है योगी सरकार का नजूल कानून? जिसके आने की आहट से भ्रष्टाचारियों- भूमाफियों में मची खलबली
उत्तर प्रदेश में अब नजूल की भूमि किसी निजी व्यक्ति या प्राइवेट एंटिटी के नाम फ्री होल्ड नहीं की जाएगी। इस भूमि का उपयोग अब केवल सार्वजनिक हित में ही होगा।
उत्तर प्रदेश में अब नजूल की भूमि किसी निजी व्यक्ति या प्राइवेट एंटिटी के नाम फ्री होल्ड नहीं की जाएगी। इस भूमि का उपयोग अब केवल सार्वजनिक हित में ही होगा।
करीब 05 महीने पहले उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के इस ऐलान ने भूमाफियाओं, बिल्डरों, नेताओं, नौकरशाहों, पत्रकारों के जिस नेटवर्क में खलबली मचा दी थी, उसका पूरा चेहरा हाल ही में संपन्न विधानमंडल के मॉनसून सत्र में सामने आ गया। सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाली नज़ूल की भूमि को नियमों में हेर-फेर कर अपने पक्ष में फ्री होल्ड करा लेने के अरबों के कारोबार पर ताला लगता दिखा, तो बड़े-बड़े रसूखदारों के चेहरों पर तिलमिलाहट उभर आई और सभी राजनीतिक विचारधारा को किनारे रखकर निजी हित में एक मंच पर खड़े नजर आए।
नजूल भूमि को लेकर उत्तर प्रदेश में राजनीतिक माहौल यूं ही गर्म नहीं है। करीब तीन दशक पहले केंद्र सरकार द्वारा गठित पूर्व गृह सचिव एनएन वोहरा की कमेटी ने इस समस्या से देश को परिचित कराया दिया था। 1993 में आई वोहरा कमेटी की रिपोर्ट राजनेता, अपराधी, भूमाफिया, नौकरशाह और न्यायपालिका से जुड़े लोगों के संगठित गिरोह (नेक्सस) पर चिंता व्यक्त करते हुए कहती है "बड़े शहरों में आय का मुख्य स्रोत अचल संपत्ति से संबंधित है - भूमि/भवनों पर जबरन कब्जा करना, मौजूदा निवासियों/ किराएदारों को बाहर निकालकर सस्ते दामों पर ऐसी संपत्तियां खरीदना आदि। समय के साथ, इस प्रकार अर्जित धन-शक्ति का उपयोग नौकरशाहों और राजनेताओं के साथ संपर्क बनाने और दंड के बिना गतिविधियों के विस्तार के लिए किया जाता है। धन - शक्ति का उपयोग बाहुबल का एक नेटवर्क विकसित करने के लिए किया जाता है जिसका उपयोग राजनेता चुनावों के दौरान भी करते हैं। आज जब देश में किसी मुख्यमंत्री ने बड़ी हिम्मत करते हुए जीरो टॉलरेंस के साथ इस नेटवर्क को नेस्तनाबूद करने की तैयारी की है, तो पूरा गिरोह येन-केन-प्रकारेण इसे रोकने अथवा कमजोर करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रहा है।
करोड़ों-अरबों का है कारोबार
नजूल भूमि पर अवैध कब्जा अथवा फ़र्जी दस्तावेज तैयार कर कौड़ियों के भाव अपने पक्ष में फ्री होल्ड करा लेने का खेल कोई नया नहीं है। प्रदेश में लगभग 72-75 हजार एकड़ जमीन नजूल की है। लगभग दो लाख करोड़ रुपये की इन सरकारी जमीनों को सर्किल रेट का केवल 10 फीसदी देकर फ्री होल्ड कराने का खेल चलता रहा है। ये जमीनें प्रयागराज, कानपुर, अयोध्या, सुल्तानपुर, गोंडा, बाराबंकी में सबसे ज्यादा हैं। नजूल की जमीनों को फ्री होल्ड कराने का केंद्र प्रयागराज है। यहां लगभग पूरा सिविल लाइंस नजूल की जमीन पर है। एक- एक बंगला 100 से 250 करोड़ रुपये का है। सर्किल रेट के हिसाब से नजूल की किसी जमीन की कीमत 50 करोड़ रुपये है। बाजार भाव 100 करोड़ है। सर्किल रेट का केवल 10 फीसदी देकर फ्री होल्ड कराया जा रहा था। यानी वह व्यक्ति केवल पांच करोड़ रुपये में 100 करोड़ रुपये की जमीन का मालिक बन जाता है। अब तक कम से कम 4 हजार एकड़ जमीन फ्री होल्ड कराई जा चुकी है। फ्रीहोल्ड होने के बाद सरकारी दफ्तरों पर ही खतरा मंडराने लगा है। आजादी से पहले का राजस्व बोर्ड कार्यालय लखनऊ के मध्य में राणा प्रताप मार्ग पर था, इसे फ्रीहोल्ड कराने को लेकर लंबे समय से विवाद। चल रहा है। एक बड़ा उदाहरण अयोध्या का है, जहां एसबीआई का मुख्य कार्यालय, जो 1935 से इंपीरियल बैंक के रूप में था, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में फ्रीहोल्ड के मामले में निजी व्यक्ति से हार गया। हालांकि अदालत ने मामले में जांच गठित करने की सरकार की शक्ति को बरकरार रखा है। अयोध्या में ही विजिलेंस विभाग का दफ्तर भी नज़ूल भूमि के फ्री होल्ड कराने के मामले के चलते खाली करना पड़ा।
नजूल जमीनों पर मालिकाना हक को लेकर चल रहे 312 केस
वर्तमान में नजूल जमीनों पर मालिकाना हक को लेकर 312 केस हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे हैं, जबकि करीब 2500 केस पेंडिंग हैं। खास बात ये है कि नजूल एक्ट में फ्री होल्ड का प्रावधान ही नहीं है, लेकिन अबतक कम से कम 25 फीसदी नजूल की जमीन को फ्री होल्ड कराया जा चुका है। इसी लिए योगी सरकार नजूल भूमि को संरक्षित करने के लिए कानून लेकर आ रही है। एक्ट के जरिए 'बड़ी मछलियों' पर शिकंजा कसेगा, जो नजूल की जमीन को कौड़ियों के भाव में फ्री होल्ड कराकर मालिक बनना चाहते हैं। प्रस्तावित एक्ट में स्पष्ट प्रावधान है कि नजूल की जमीनों पर रह रहे गरीब और कमजोर लोगों को हटाया भी नहीं जाएगा।केवल बची जगह पर पार्किंग, पार्क, सरकारी संस्थान, सरकारी शिक्षण संस्थान, पीएम आवास योजना या अन्य सार्वजनिक उपयोग में लाने का प्रावधान है। जमीन पर बसे बाजारों को बेहतर बनाने का प्रावधान है।
नजूल भूमि को भूमाफियाओं से खाली कराने के कुछ उदाहरण
लखनऊ में आज जिस स्थान पर फॉरेंसिक इंस्टिट्यूट है, वह नजूल की भूमि कुछ समय पहले तक खुर्शीद आगा नाम के भूमाफिया के कब्जे में थी। सबसे पहले इस जमीन पर 1955 में 57 एकड़ का प्लॉट प्रशासन ने एक ट्रैक्टर कंपनी को 10 साल के लिए लीज पर दिया था। पट्टा खत्म होने पर प्रशासन ने जमीन सरोजनीनगर ब्लॉक के पिपरसंड क्षेत्र की ग्राम सभा के नाम दर्ज करा दी। दशकों बाद, 2014 में, यह भूखंड भूमि माफियाओं के हाथों में चला गया। खुर्शीद आगा नाम के एक व्यक्ति ने कथित तौर पर शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के बालकगंज कब्रिस्तान और मस्जिद के नाम पर जमीन दर्ज करने के लिए जाली कागजात बनाए। भूमि वक्फ की संपत्ति बन गई और आगा इसका 'आजीवन मुतवल्ली' बन गया। फिर, लेन-देन की एक श्रृंखला हुई। 2014 में, आगा ने कथित तौर पर एक रियल एस्टेट कंपनी आधुनिक सहकारी गृह समिति को जमीन बेच दी। इसके बाद समिति ने इसे नोएडा में अंतरिक्ष लैंडमार्क प्राइवेट लिमिटेड को बेच दिया, जिसकी जाहिर तौर पर एक हाउसिंग सोसायटी बनाने की योजना थी। बात मुख्यमंत्री के संज्ञान में आई और फिर जांच कराई गई। पता चला कि आगा और उनके कथित सहयोगी अशोक पाठक के खिलाफ लखनऊ के विभिन्न इलाकों में जमीन कब्जा करने के लगभग एक दर्जन मामले दर्ज हैं। दोनों को मार्च 2020 में उस जमीन पर अवैध रूप से कब्जा करने के आरोप में जेल भेजा गया था। जमीन खाली कराई गई और आज वहां फॉरेंसिक इंस्टिट्यूट है।
प्रयागराज के लूकरगंज इलाके में माफिया अतीक अहमद के कब्जे में लंबे समय से करोड़ों की भूमि थी। मुख्यमंत्री योगी के संज्ञान में यह मामला आया और उन्होंने विधिक कार्यवाही पूरी कराने के साथ ही न केवल माफिया के कब्जे से भूमि मुक्त कराई, बल्कि वहां गरीबों के लिए 76 आवास बनवाये। देश में यह पहला मामला था कि जब किसी माफिया से मुक्त कराई गई जमीन पर गरीबों के लिए घर बनाये गए।
चंद दिनों पहले कानपुर के सिविल लाइन इलाके में एक माफिया ने अपने गिरोह के साथ मिलकर नजूल की लगभग 07 एकड़ भूमि पर कब्जा करने का प्रयास किया। करीब 1000 करोड़ की इस भूमि पर अवैध कब्जे की जानकारी मिलते ही हरकत में आये प्रशासन ने न केवल कब्जा छुड़वाया बल्कि आरोपी को जेल भी भेजा। फिलहाल उसके विरुद्ध बड़ी कार्रवाई की तैयारी है।
अयोध्या में एसबीआई का मुख्य कार्यालय, जो 1935 से इंपीरियल बैंक के रूप में था, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में फ्रीहोल्ड के मामले में निजी व्यक्ति से हार गया, हालांकि अदालत ने मामले में जांच गठित करने की सरकार की शक्ति को बरकरार रखा है।
अयोध्या में विजिलेंस विभाग का दफ्तर भी नजूल भूमि के फ्री होल्ड कराने के मामले के चलते खाली करना पड़ा।
भू-माफिया की निगरानी के लिए बनी चार स्तरीय एंटी भूमाफिया टास्क फोर्स
2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद भूमाफिया के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने के लिए प्रदेश में चार स्तरीय एंटी भूमाफिया टास्क फोर्स का गठन किया था। पिछले सवा चार साल में राजस्व और पुलिस विभाग ने भूमाफिया के खिलाफ कई बड़ी कार्रवाई की हैं। राजस्व विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 15 अगस्त तक करीब 62423.89 हेक्टेयर (1,54,249 एकड़) भूमि को मुक्त कराया गया है। साथ ही राजस्व विभाग ने 2464 कब्जेदारों को चिन्हित कर 187 भूमाफिया को गिरफ्तार कर जेल भेजा। वहीं इससे जुड़े मामलों में 22,992 राजस्व वाद, 857 सिविल वाद और 4407 एफआईआर विभिन्न थानों में दर्ज कराए।
लखनऊ के क्षेत्रफल के बराबर खाली कराई गई जमीन
राजस्व विभाग व गणित विशेषज्ञों के मुताबिक पुलिस-प्रशासन ने पिछले चार सालों में करीब 1,54,249 एकड़ भूमि (624 स्क्वायर किमी) कब्जा मुक्त कराई। जो लखनऊ क्षेत्र के बराबर है। लखनऊ शहर भी 30 किमी लंबा और 20.8 किमी चौड़ा है और यह इस कब्जा मुक्त जमीन और लखनऊ का क्षेत्रफल लगभग बराबर है।
क्या है योगी सरकार का प्रस्तावित नजूल कानून
गर्वमेन्ट ग्रान्ट एक्ट 1895 रिपील हो जाने के फलस्वरूप समस्त नजूल नीतियां स्थगित होने के दृष्टिगत व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए दृष्टिगत राज्य सरकार को नजूल भूमि को संरक्षित करना चाहिए। इसके लिए सरकार उत्तर प्रदेश नजूल सम्पत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) अध्यादेश, 2024 लागू किया। नियमानुसार इसी को कानून बनाने के लिए विधानमंडल के दोनों सदनों में पेश किया गया था। प्रस्तावित कानून में कहीं भी किसी निवासरत व्यक्ति को बेदखल करने की बात नहीं है, बल्कि यह कानून गरीब तबके के पुनर्वास के लिए कानून बनाने और उन्हें पुनर्वासित करने का अधिकार भी सरकार को देता है।
नजूल भूमि विधेयक के संबंध में महत्वपूर्ण बिंदु
- इस एक्ट के प्रभावी होने के बाद से उत्तर प्रदेश में किसी भी नजूल भूमि को किसी प्राइवेट व्यक्ति अथवा प्राइवेट एंटिटी के पक्ष में फ्री होल्ड नहीं किया जाएगा। नजूल भूमि केवल पब्लिक एंटिटी, राज्य अथवा केंद्र सरकार के विभागों अथवा स्वास्थ्य, शिक्षा या सामाजिक सहयोग से संबंधित सरकारी संस्थानों को ग्रांट किया जाएगा।
- खाली पड़ी नजूल भूमि जिसकी लीज अवधि समाप्त हो रही है, उसे फ्री होल्ड न करके सार्वजनिक हित की परियोजनाओं जैसे अस्पताल, विद्यालय, सरकारी कार्यालय आदि के लिए उपयोग किया जाएगा।
- ऐसे पट्टाधारक जिन्होंने 27, जुलाई 2020 तक फ्री होल्ड के लिए आवेदन कर दिया है और निर्धारित शुल्क जमा कर दिया है, उनके पास यह विकल्प होगा कि वह लीज अवधि समाप्त होने के बाद अगले 30 वर्ष की अवधि के नवीनीकरण करा सकें। बशर्ते, उनके द्वारा मूल लीज डीड का उल्लंघन न किया गया हो।
- ऐसी किसी भी भूमि पर जहां कि आबादी निवासरत है, अथवा जिसका व्यापक जनहित में उपयोग किया जा रहा है, उसे नहीं हटाया जाएगा। वर्तमान में उपयोग लाई जा रही भूमि से किसी की बेदखली नहीं की जाएगी।
- ऐसे सभी पट्टाधारक जिन्होंने लीज अवधि में लीज डीड का उल्लंघन नहीं किया है, उनका पट्टा नियमानुसार जारी रहेगा।
- कोई भी भवन जो कि नजूल की भूमि पर बनाई गई है और व्यापक जनहित में यदि उसे हटाया जाना आवश्यक होगा तो सरकार द्वारा प्रभावित व्यक्ति को भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के उपबंध के अनुसार ऐसे पट्टाधारक द्वारा की गयी उपरिसंरचना या बनाये गये भवन के लिये प्रतिकर दिया जायेगा।
- यह अधिनियम सरकार को अधिकार देती है कि वह नजूल की भूमि पर काबिज गरीब तबके के हितों को संरक्षण देते हुए उनके पक्ष में कानून बना सके एवं उन्हें पुनर्वासित कर सके ।
- ऐसे सभी मामलों में जहां पूर्ण स्वामित्व विलेख पहले से ही निष्पादित हो गया है और यह पता चलता है कि ऐसा पूर्ण स्वामित्व विलेख कपट करके या तथ्यात्मक सूचनाओं को छुपाकर निष्पादित किया गया था जिसका ऐसा पूर्ण स्वामित्व स्वीकृत करने के सरकार के विनश्चय पर प्रभाव पड़ा था तो सरकार को ऐसे पूर्णस्वामित्व विलेख को निरस्त करने और भूमि और भवन को पुनः कब्जा करने की शक्ति होगी।
Published By : Deepak Gupta
पब्लिश्ड 3 August 2024 at 20:08 IST