अपडेटेड 14 August 2025 at 22:58 IST

वोट के सब साथी...फतेहपुर मकबरा विवाद के बाद समाजवादी पार्टी पर फूटा मुस्‍लिमों का गुस्‍सा, बोले- समय पर कोई नहीं आया

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में 200 साल पुराने मकबरे को लेकर बीते सोमवार को खूब बवाल हुआ। हिंदू पक्ष ने उसे मंदिर बता उसपर भगवा झंडा फहरा दिया तो वहीं मुस्लिम पक्ष की तरफ से पत्‍थरबाजी शुरू कर दी गई।

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वोट के सब साथी...फतेहपुर मकबरा विवाद के बाद समाजवादी पार्टी पर फूटा मुस्‍लिमों का गुस्‍सा, बोले- समय पर कोई नहीं आया | Image: X

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में 200 साल पुराने मकबरे को लेकर बीते सोमवार को खूब बवाल हुआ। हिंदू पक्ष ने उसे मंदिर बता उसपर भगवा झंडा फहरा दिया तो वहीं मुस्लिम पक्ष की तरफ से पत्‍थरबाजी शुरू कर दी गई। मौके पर पहुंची भारी पुलिसबल ने काफी मशक्कत के बाद हालात पर काबू पाया। अब इस विवाद के बाद मुस्लिम समाज में काफी गुस्सा है। उनकी नाराजगी किसी और से नहीं बल्‍कि खुद को मुस्‍लिमों की हिमायती बताने बताने वाली समाजवादी पार्टी से है। सपा को लेकर स्‍थानीय मुस्‍लिमों में इतना आक्रोश है कि उन्‍होंने समाजवादी पार्टी का बहिष्‍कार तक कर दिया।

मुस्लिम समाज के लोगों का कहना है कि इस पूरे मामले में बराबर के दोषी सपा है। इनका कहना है कि सांसद, विधायक और चेयरमैन के पद पर मुस्लिम समाज ने सपा को जिताया लेकिन विवाद में कोई सपा नेता साथ देने नहीं आया। युवकों का कहना है कि गंगा और यमुना के बीच में बसे फतेहपुर जिले में हिंदुओं और मुस्लिमों में गंगा जमुनी तहजीब है, लेकिन कुछ लोग इसे खत्म करना चाहते हैं। आक्रोशित मुसलमानों ने सोशल मीडिया पर सामूहिक तौर पर समाजवादी पार्टी का बहिष्कार किया है। उन लोगों ने इलाके के विधायक चंद्रप्रकाश लोधी, जो कि समाजवादी पार्टी के नेता हैं, उन पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने मकबरे पर हुए हमले पर कोई बातचीत नहीं की।

ठगा महसूस कर रहे स्‍थानीय मुस्‍लिम

समुदाय के लोगों ने समाजवादी पार्टी के कई बड़े नेता जैसे, कानपुर के विधायक और समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन किसी भी समाजवादी नेता की तरफ से मदद नहीं की गई। उनका कहना है कि वो पीडीए को वोट देते आए, उनका समर्थन किया लेकिन अब वो अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। 

कांग्रेस के होने से मुस्लिम मतों को लेकर सपा पर दबाव

कांग्रेस पार्टी अखिलेश यादव की राह का एक बड़ा अवरोध है। सपा ने 2017 में सत्ता में रहते हुए मुस्लिम मतों को विभाजित होने से बचाने के लिए ही कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया था। इस गठबंधन के तहत जहां सपा ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा था। वहीं कांग्रेस पार्टी 114 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। कुछ सीटों पर इन दोनों दलों का दोस्ताना संघर्ष भी देखने को मिला था। मगर जनता ने दोनों दलों को करारा तमाचा लगते हुए काफी गहरा झटका दिया। सपा अपने स्थापना काल के न्यूनतम महज 47 सीटों पर आ गई, वहीं कांग्रेस पार्टी भी उत्तर प्रदेश में अपने न्यूनतम सीट महज 7 सीटों पर आकर सिमट गई।

अब आगामी विधानसभा चुनाव 2027 के मद्देनजर सपा इस तथ्य से अवगत है कि कांग्रेस पार्टी से गठबंधन आसान नहीं होगा। कांग्रेस पार्टी अपनी ब्लैकमेल नीति का उपयोग करते हुए अपनी क्षमता से कई गुनी सीटों की मांग करेगी। फिर अखिलेश यादव के समक्ष 2017 में कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन का भी अनुभव है। 

ऐसे में अखिलेश यादव 2027 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी से इतर छोटे दलों के सहयोग से ही चुनावी वैतरणी पार करने का प्रयास करेंगे। उस स्थिति में अखिलेश यादव को मुस्लिम मतों की बड़े पैमाने पर जरूरत पड़ेगी। इस स्थिति से निपटने के लिए अखिलेश यादव अभी से मुस्लिम वर्ग को अपने पाले में करने का प्रयास कर रहे हैं।

अखिलेश यादव इस तथ्य से भी अवगत हैं कि मायावती और अन्य छोटे दल भी मुस्लिम मतों को आकर्षित करने के लिए अन्य हथकंडे अपनाएंगे। अखिलेश यादव के इस कदम के बाद अब अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल कांग्रेस पार्टी, बसपा भी इसी तरह के कई कदम उठाएगी। इन तमाम धर्मनिर्पक्ष दलों की सबसे बड़ी समस्या मुस्लिम मतदाताओं के बदलते रुख का कारण है। फतेहपुर मकबरा मामले के बाद अब साफ हो गया है कि मुसलमानों के साथ न कांग्रेस ने न्याय किया, न समाजवादी पार्टी ने। दोनों ने हमेशा मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया लेकिन उनके हक, तरक्की और सुरक्षा की कभी फिक्र नहीं की।

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Published By : Ankur Shrivastava

पब्लिश्ड 14 August 2025 at 22:58 IST