अपडेटेड 2 June 2025 at 21:18 IST

इंतजार में निकल गई एक पीढ़ी, 48 साल लड़ी न्याय की लड़ाई, 103 साल की उम्र में हाई कोर्ट से बाइज्जत बरी, अब कौन देगा 48 साल का हिसाब?

UP News : कौशांबी के लखन पासी का ये केस हमारे देश में न्यायिक सुधारों की आवश्यकता के बारे में सोचने पर मजबूर करता है, ताकि भविष्य में किसी को इतने लंबे समय तक अन्याय का सामना न करना पड़े। 48 साल का इंतजार न केवल लखन के लिए, बल्कि उनके परिवार के लिए भी एक पीढ़ी का नुकसान है।

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48 साल का हिसाब कौन देगा? | Image: Republic

Kaushambi News : जीवन का हर पल कीमती है, लेकिन जिसने जिंदगी के अनमोल 48 साल झूठे आरोप में जेल की चार दिवारी के पीछे बिताए हो, उसपर क्या बीतती होगी? उत्तर प्रदेश के कौशांबी में लखन पासी को 48 साल की लंबी लड़ाई के बाद हाई कोर्ट ने बाइज्जत बरी किया है। अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए लखन को 48 साल केस लड़ना पड़ा। उनके जीवन से अब एक पीढ़ी गायब हो गई है। न्याय मिलने में इतनी देरी हो गई कि अब गांव में उनकी उम्र को कोई नहीं बचा।

लखन पासी जब जेल से बाहर आए तो उनके चेहरे पर झुर्रियां, रुआंसी आंखे और सफेद बाल बिना किसी एक शब्द के बदहाल सिस्टम की कथा सुनाने के लिए काफी थे। लखन पासी जब हत्या के आरोप में जेल गए तो उनकी उम्र करीब 55 साल थी, जेल की काल कोठरी से निकले तो जीवन के 103 साल पूरे हो चुके थे। आपको ये जानकर अब सिस्टम पर और भी अधिक गुस्सा आएगा कि हाई कोर्ट से बाइज्जत बरी होने के बाद भी उन्हें रिहाई नहीं मिली। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने लखन को 18 दिन बाद रिहाई दिलाई।

लखन पासी

48 साल का हिसाब कौन देगा?

लखन पासी अब बोल नहीं पाते, वो बोलने में अधिक सहज महसूस नहीं करते हैं। उन्होंने इतना सब सबने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी है, बची जिंदगी को जीने का जज्बा अभी बचा है। लेकिन मन में एक सवाल जरूर आता होगा कि मेरे 48 साल का हिसाब कौन देगा? सवाल एक ये भी कि आखिर मेरी क्या गलती थी कि आधी जिंदगी जेल में बिताने को मजबूर किया किया? कोर्ट ने भले ही लखन पासी को बाइज्जत बरी कर दिया हो, लेकिन अब वो 48 साल वापस नहीं मिल सकते, जिसमें उन्हें अपने परिवार के दुख-सुख में साथ होना था।

1977 में हुई गिरफ्तारी

लखन पासी को साल 1977 में हत्या और हत्या के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। 1982 में उन्हें कोर्ट ने दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कोर्ट के इस फैसले को उन्होंने 1982 में ही हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनकी अपील पर 43 साल मुकदमा चला और उनके हक में फैसला आया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन्हें 2 मई, 2025 को बाइज्जत बरी कर तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया था। जिसके बावजूद टेक्निकल फॉल्ट बताकर इलाहाबाद की कचहरी से उन्हें रिहा करने का आदेश नहीं दिया जा रहा था।

हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद इलाहाबाद कचहरी के जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते लखन को जेल से रिहाई नहीं मिल पा रही थी। जिसके लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव पूर्णिमा प्रांजल के निर्देश पर लीगल एडवाइजर अंकित मौर्य ने हाईकोर्ट में इसके लिए अपील की। सीएम योगी, कानून मंत्री, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय को ट्वीट के माध्यम से शिकायत की गई। जिसके बाद हाईकोर्ट ने तत्काल लखन को रिहा करने के आदेश दिए।

न्यायिक सुधारों की आवश्यकता

लखन को गौराय गांव में दो पक्षों के बीच हुए झगड़े में प्रभु सरोज की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। लखन पासी का ये केस हमारे देश में न्यायिक सुधारों की आवश्यकता के बारे में सोचने पर मजबूर करता है, ताकि भविष्य में किसी को इतने लंबे समय तक अन्याय का सामना न करना पड़े। 48 साल का इंतजार न केवल लखन के लिए, बल्कि उनके परिवार के लिए भी एक पीढ़ी का नुकसान है। सरकार या न्याय व्यवस्था इसके लिए जिम्मेदार किसे ठहराएगी? 

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Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 2 June 2025 at 21:18 IST