अपडेटेड 14 December 2024 at 09:32 IST

One Nation-One Election: 'एक देश-एक चुनाव' पर सरकार की तैयारी पूरी, सोमवार को संसद में पेश होगा बिल

One Nation-One Election Bill: 12 दिसंबर को एक देश-एक चुनाव विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी, जिससे इसे संसद में पेश करने का रास्ता साफ हो गया।

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लोकसभा में सोमवार को वन नेशन-वन इलेक्शन विधेयक पेश होगा। | Image: Sansad TV

One Nation-One Election: देश के भीतर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने की दिशा में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपनी तैयारी लगभग पूरी कर ली है। 'एक देश-एक चुनाव' से जुड़े विधेयक को सोमवार को संसद में पेश किया जा सकता है। जानकारी सामने आई है कि केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल 16 दिसंबर (सोमवार) को लोकसभा में 'वन नेशन-वन इलेक्शन' बिल पेश करेंगे।

कार्यसूची में कहा गया है, 'अर्जुन राम मेघवाल लोकसभा में सोमवार को दो विधायक पेश करेंगे, जिसमें एक 'संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024 होगा। दूसरे विधेयक केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक 2024 होगा।' पहला संशोधन विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने के लिए, जबकि दूसरा विधेयक दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी में विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के लिए होगा।

12 दिसंबर को कैबिनेट कैबिनेट ने बिल को मंजूरी

12 दिसंबर को 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी थी, जिससे इसे संसद में पेश करने का रास्ता साफ हो गया। इस साल सितंबर में केंद्रीय कैबिनेट ने 'एक देश-एक चुनाव' प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसका उद्देश्य 100 दिनों के भीतर शहरी निकाय और पंचायत चुनावों के साथ-साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना है। इसके लिए सरकार ने पहले पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता में एक हाईलेवल कमेटी बनाई थी। कुछ समय पहले इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट रखी थी। कैबिनेट की मंजूरी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फैसले की प्रशंसा की और इसे भारत के लोकतंत्र को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

वन नेशन-वन इलेक्शन पर जारी है बहस?

'वन नेशन-वन इलेक्शन' को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के विचार अलग-अलग हैं। संसद में पेश किए जाने से पहले विधेयक पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बहस छिड़ी है। विपक्ष के कई दलों ने इस विधेयक का विरोध किया, जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन दलों ने इस विधेयक का स्वागत करते हुए कहा कि इससे समय की बचत होगी और देश भर में एकीकृत चुनावों की नींव रखी जा सकेगी।

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वन नेशन-वन इलेक्शन पर कांग्रेस की राय क्या?

वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह सवाल उठाते हैं कि- 'अगर कोई राज्य सरकार 6 महीने में गिर जाती है या अपना बहुमत खो देती है, तो क्या राज्य को बाकी 4.5 साल बिना सरकार के रहना होगा।' दिग्विजय सिंह कहते हैं- 'किसी भी राज्य में चुनाव 6 महीने से ज्यादा नहीं टाले जा सकते। अगर एक राष्ट्र-एक चुनाव पेश किया जा रहा है और किसी राज्य में सरकार 6 महीने में गिर जाती है, अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो क्या हम 4.5 साल बिना सरकार के रहेंगे? इस देश में ये संभव नहीं है। पहले सरकारें 5 साल का अपना पूरा कार्यकाल पूरा करती थीं, लेकिन आज कहीं सरकारें 2.5 साल में गिर जाती हैं तो कहीं 3 साल में।'

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने मांग की कि प्रस्तावित 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जाना चाहिए, उन्होंने कहा कि ये विधेयक लोकतंत्र को कमजोर करता है। जयराम रमेश कहते हैं- 'ये विधेयक संसद में पेश किया जाएगा और हम चाहते हैं कि इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाए, जो इस पर चर्चा करेगी।' पिछले साल पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की एक राष्ट्र, एक चुनाव समिति को 4 पन्नों का पत्र भेजकर कांग्रेस की स्थिति स्पष्ट की थी, जिसमें कहा गया था कि हम इस विधेयक का विरोध करते हैं।

एक देश-एक चुनाव पर बीजेपी का पक्ष

बीजेपी नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा विधेयक का पूरा समर्थन करते हुए कहते हैं कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ नहीं होने पर विकास कार्य रुक जाते हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय इसे "अच्छा फैसला" बताते हैं और कहते हैं कि इससे समय के साथ-साथ पैसे की भी बचत होगी। ये देश के लिए फायदेमंद होगा। हरियाणा के मंत्री अनिल विज फैसले का स्वागत करते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि हर भारतीय को इस कदम का स्वागत करना चाहिए।

बीजेपी नेता तरुण चुघ कहते हैं- 'ये फैसला न सिर्फ भारतीय लोकतंत्र को और अधिक मजबूत बनाने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि एक सुविचारित सुधार भी है, जो चुनाव प्रक्रिया को अधिक तर्कसंगत और दक्ष बनाने की दिशा में है। वन नेशन-वन इलेक्शन से चुनावों के समय, संसाधनों और प्रशासनिक कार्यवाही में सुधार होगा। इससे चुनाव संबंधित खर्चे में कमी आएगी और देश के प्रशासनिक तंत्र की कार्यक्षमता में भी उल्लेखनीय सुधार होगा।'

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Published By : Dalchand Kumar

पब्लिश्ड 14 December 2024 at 09:27 IST