अपडेटेड 1 January 2025 at 15:25 IST
कानूनी लड़ाई, नेतृत्व परिवर्तन, चुनावी असफलताओं से भरी रही आम आदमी पार्टी की कहानी
आम आदमी पार्टी (आप) के लिए वर्ष 2024 कानूनी लड़ाई, नेतृत्व परिवर्तन और चुनावी असफलताओं से भरा रहा। आम आदमी पार्टी (आप) फरवरी में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी है ।
आम आदमी पार्टी (आप) के लिए वर्ष 2024 कानूनी लड़ाई, नेतृत्व परिवर्तन और चुनावी असफलताओं से भरा रहा। आम आदमी पार्टी (आप) फरवरी में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी है और अपनी नीतियों में जनता का विश्वास पुनः बहाल करने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है। पिछला वर्ष पार्टी के लिए भारी उथल पुथल वाला रहा। उसे सबसे बड़ा झटका तब लगा जब मार्च में प्रवर्तन निदेशालय ने पार्टी प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया।
केजरीवाल को आबकारी नीति से जुड़े कथित भ्रष्टाचार मामले में गिरफ्तार किया गया था। यह पहली बार था जब किसी मौजूदा मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया। केजरीवाल ने करीब छह महीने तिहाड़ जेल में बिताए, इसके बाद मई में उच्चतम न्यायालय ने उन्हें अंतरिम जमानत दी। न्यायालय ने उन्हें लोकसभा चुनाव प्रचार की अनुमति तो दी लेकिन उन पर आधिकारिक कामकाज फिर से शुरू करने पर रोक लगाई। इस फैसले ने राष्ट्रीय राजधानी में नियमित शासन व्यवस्था को प्रभावित किया।
केजरीवाल की गिरफ्तारी और अन्य वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ मामलों ने आप की छवि को काफी प्रभावित किया। हालांकि 2024 वह साल भी रहा जिसमें गिरफ्तार किए गए पार्टी के सभी शीर्ष नेताओं को जमानत मिली। आप के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह को अप्रैल में जमानत मिली। पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, जिन्हें 2023 में गिरफ्तार किया गया था को 17 महीने जेल में रहने के बाद अगस्त में जमानत मिली। वहीं सत्येंद्र जैन को अक्टूबर में जमानत मिली।
कानूनी राहतों के बावजूद इन मामलों ने आप की भ्रष्टाचार विरोधी छवि को नुकसान पहुंचाया वहीं विपक्षी दलों ने इन विवादों का इस्तेमाल पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के लिए किया। इस लोकसभा चुनावों में आप दिल्ली की सात सीट में से एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी लेकिन उसका मत प्रतिशत जरूर बढ़कर 24.14 हो गया, जो वर्ष 2019 में 18.2 प्रतिशत था। इसके अलावा पार्टी ने पंजाब में 13 लोकसभा सीट में से केवल तीन पर ही जीत हासिल की। पंजाब में आप सत्ता में है और शायद इन परिणामों की उसने कल्पना भी नहीं की होगी। चुनाव परिणामों ने मतदाताओं के असंतोष को दर्शाया।
सितंबर में नियमित जमानत मिलने के बाद एक नाटकीय घटनाक्रम में केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने जनता को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘ मेरा दिल कहता है कि जब तक अदालत हमें निर्दोष घोषित नहीं कर देती, मुझे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठना चाहिए... अगले कुछ महीनों में दिल्ली में चुनाव होने वाले हैं। अगर आपको लगता है कि मैं ईमानदार नहीं हूं तो मुझे वोट न दें।’’
केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद पार्टी की वरिष्ठ नेता एवं मंत्री आतिशी ने सितंबर में दिल्ली के आठवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय में केजरीवाल की कुर्सी खाली छोड़ दी, जो पार्टी की उनके अंततः वापसी की उम्मीद को दर्शाता है। पार्टी से जुड़ा एक और घटनाक्रम जिसने पार्टी की प्रतिष्ठा को और धूमिल किया वह है केजरीवाल के सहयोगी बिभव कुमार पर मुख्यमंत्री आवास के अंदर राज्यसभा सदस्य स्वाति मालीवाल पर हमला करने का आरोप।
इसके अलावा कैलाश गहलोत और राज कुमार आनंद जैसे प्रमुख नेताओं ने आप से नाता तोड़ लिया, जिससे आंतरिक कलह का संकेत मिला और पार्टी की परेशानियां बढ़ गईं। नीतिगत निर्णयों को लेकर दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना के साथ लगातार टकराव के कारण दिल्ली सरकार को प्रशासनिक बाधाओं का भी सामना करना पड़ा। पूर्व बस मार्शलों की बहाली जैसे मुद्दे सामने आए जिनसे आप का विकासात्मक एजेंडा प्रभावित हुआ।
दिल्ली विधानसभा चुनाव करीब आ रहे हैं और यह वक्त पार्टी के लिए बेहद अहम है। उसने कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने का फैसला किया है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ऐसे ही कयास लगाए जा रहे थे। आप का मानना है कि आम चुनावों में दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन एक गलत कदम था। गठबंधन सातों सीटों में से एक भी सीट जीतने में असफल रहा। आप ने सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जिसमें सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। 20 मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया गया है और वरिष्ठ नेताओं को अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में तैनात किया गया है।
Published By : Ankur Shrivastava
पब्लिश्ड 1 January 2025 at 15:25 IST