अपडेटेड 19 December 2025 at 18:20 IST

किन राज्यों से घिरी है अरावली पर्वतमाला, पहाड़ी को नुकसान होने पर कैसे बिगड़ेगा प्रकृति का संतुलन?

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को मंजूरी दी है। जिसमें सिर्फ 100 मीटर से अधिक ऊंची पहाड़ियां शामिल है। इससे 90 प्रतिशत इलाका बाहर हो जाएगा और खनन बढ़ेगा, रेगिस्तान फैलेगा, पानी की समस्या गहराएगी। जानें इससे पर्यावरण संतुलन खतरे में कैसे पड़ जाएगा।

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अरावली कटी तो प्रकृति का संतुलन खतरे में | Image: Republic

Climate Change Impact on Aravalli Hills Decision: अरावली पहाड़ियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नई परिभाषा को मंजूरी दी है, जिसमें सिर्फ ऊंची पहाड़ियां ही शामिल होंगी, इससे 90 प्रतिशत से ज्यादा इलाका सुरक्षा से बाहर रहेगा। जिससे खनन बढ़ेगा और पहाड़ियां खत्म होंगी। हरियाणा, दिल्ली राजस्थान और गुजरात में पहले ही खनन से कई पहाड़ियां गायब हो चुकी है और अब ये और बढ़ेगा। उससे रेगिस्तान फैलेगा क्योंकि अरावली थार रेगिस्तान को रोकती है। पहाड़ियों में दरारें बढ़ेंगी, रेत की धूल दिल्ली-NCR, हरियाणा और यूपी तक फैलेगी और सबसे बड़ी बात पानी की भारी समस्या उभरेगी।

अरावली इलाका बारिश का पानी जमीन में सोखता है, कुएं सूखेंगे साथ ही खेती भी प्रभावित होगी। जिससे किसानों को शायद अपना घर छोड़कर जाना पड़े, इंसानी जीवन पर तो असर पड़ेगा ही साथ ही प्रकृति और वहां रहने वाले जानवरों के बारे में बात की जाए तो, जंगल कम होंगे, बारिश का पैटर्न तो बिगड़ेगा ही, वहीं गर्मी भी बढ़ेगी, कुल मिलाकर वन्यजीवों का संतुलन बिगड़ेगा, जिससे इंसानों और जंगली जानवरों के बीच टकराव बढ़ेगा।

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200 से ज्यादा पक्षियों और जंगली प्रजातियों का क्या होगा? 

अरावली के बचे हुए जंगल, जानवरों के आवास और कॉरिडोर एवं जैव विविधता हॉटस्पॉट के तौर पर काम करते हैं। यहां 200 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियां, और विलुप्ति की कगार पर खड़े जीव जैसे तेंदुआ, ग्रे लंगूर, लकड़बग्घा, सियार, जंगली बिल्लियां और हनी बेजर रहते हैं। अरावली की पहाड़ियों की नई परिभाषा से ये जंगल खत्म हो जाएंगे, जिससे जंगली जानवरों के रहने की जगहें कम हो जाएंगी।

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अरावली पर्वतमाला 2 अरब साल पुरानी

अरावली पहाड़ियां दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत प्रणालियों में से एक है, जो लगभग 2 अरब साल पुरानी है। इसकी कुल लंबाई लगभग 692 किमी है, जो गुजरात से दिल्ली तक फैली है। 80 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान में है, जबकि बाकी हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में है। चंबल, साबरमती और लूणी जैसी कई नदियां इसी पर्वतमाला से निकलती हैं।

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अरावली को नुकसान होने पर बिगड़ेगा प्रकृति का संतुलन  

मरुस्थलीकरण (Desertification): मरुस्थलीकरण का मतलब है, उपजाऊ जमीन का धीरे-धीरे बंजर या रेगिस्तान जैसी हो जाना, जहां पेड़-पौधे और फसलें उगना बंद हो जाती हैं और वह जमीन अपनी उत्पादन क्षमता खो देती है। अरावली एक प्राकृतिक हरित दीवार की तरह है जो थार मरुस्थल को आगे बढ़ने से रोकती है। इसके क्षरण से मरुस्थल तेजी से फैलेगा और मैदानी इलाकों में फैल जाएगा।

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जलवायु परिवर्तन (Climate Change): यह पर्वतमाला नमी वाली हवाओं को रोककर बारिश लाने में मदद करती है और जलवायु को नियंत्रित करती है। इसके कमजोर पड़ने से तापमान बढ़ेगा और मानसून अनियमित हो जाएगा, जिससे बारिश कम होगी।

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जल संकट (Water Crisis): अरावली भूजल के पुनर्भरण (groundwater recharge) का एक बड़ा स्रोत है। पहाड़ों के कटने से पानी जमीन के अंदर नहीं जा पाएगा, जिससे नदियां और जल स्रोत सूखेंगे और जल संकट गहराएगा।

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जैव विविधता का नुकसान (Biodiversity Loss): यह कई जीवों जंगली जानवरों का घर है। इसके नष्ट होने से उनके आवास खत्म हो जाएंगे, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ेगा और कई प्रजातियां खतरे में पड़ जाएंगी।

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प्रदूषण बढ़ेगा (Increased Pollution): खनन और निर्माण से हवा और पानी प्रदूषित होता है। अरावली के क्षरण से दिल्ली-एनसीआर जैसे क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता और खराब होगी।

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कृषि पर प्रभाव (Impact on Agriculture): पानी की कमी और जलवायु असंतुलन के कारण फसलों का उत्पादन घटेगा, जिससे किसानों पर बुरा असर पड़ेगा।   

यह भी पढ़ें: Aravalli की परिभाषा बदलते ही क्यों मंडराने लगा रेगिस्तान बनने का खतरा?

Published By : Sujeet Kumar

पब्लिश्ड 19 December 2025 at 18:20 IST