अपडेटेड 16 October 2023 at 11:16 IST

Navratri: कौन हैं मां ब्रह्मचारिणी? महादेव को पाने के लिए की थी हजारों साल कठोर तपस्या

मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से धैर्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं ये कौन थीं और इनकी कहानी क्या है?

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Kaun Hai Maa Brahmacharini image- shuttterstock | Image: self

Kaun Hai Maa Brahmacharini: हिंदू धर्म में बहुत ही पावन माने जाने वाले नवरात्रि के पर्व की शुरुआत 15 अक्टूबर से हो चुकी है। सोमवार को नवरात्र का दूसरा दिन है जो मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। मां पार्वती के तपस्वी स्वरूप को मां ब्रह्मचारिणी के रूप में जाना जाता है। इन्हें ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी भी कहा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मां पार्वती का यह नाम कैसे पड़ा और इसके पीछे की कहानी क्या है, नहीं...तो चलिए आपको माता ब्रह्मचारिणी की पूरी कहानी के बारे में बताते हैं। 

स्टोरी में आगे ये पढ़ें...

  • कैसे पड़ा ब्रह्मचारिणी देवी का नाम?
  • क्यों की जाती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा?
  • महादेव को पति रूप में पाने की मां ब्रह्मचारिणी की क्या है कहानी?

कैसे पड़ा ब्रह्मचारिणी देवी का नाम?

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी को देवी पार्वती के अविवाहित रूप में पूजा जाता है। इन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए हजारों सालों तक कठोर तप किया था, जिसकी वजह से इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ गया। 

क्यों की जाती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा?

नवरात्रि के दूसरे दिन माता पार्वती के तपस्वी रूप यानी ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। कहते हैं कि इनकी साधना और उपसना से जीवन की हर समस्या खत्म होती है और छात्रों के लिए मां ब्रह्मचारिणी की पूजा बहुत ही फलदायी मानी जाती है। ऐसे में जो भी विद्यार्थी हों उन्हें नवरात्र में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा जरूर करनी चाहिए।

महादेव को पति रूप में पाने की मां ब्रह्मचारिणी की क्या है कहानी?

पौराणिक कथा के मुताबिक देवी पार्वती ने जब प्रजापति दक्ष के यहां माता सती के रूप में जन्म लिया था, तब उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या करने का प्रण लिया। उनके इसी तपस्वी रूप को मां ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। देवी सती ने हजारों सालों तक भीषण गर्मी, कड़कड़ाती ठंड, तूफान और बारिश में तपस्या की।

कथा के मुताबिक इस दौरान माता सती ने केवल फल फूल और बिल्व यानी बेल पत्र की पत्तियां खाकर ही हजारों सालों तक कठोर तप किया, लेकिन जब तब भी भगवान शंकर नहीं माने तब मां सती ने इन चीजों का भी त्याग कर दिया। तब एक बार देवी ब्रह्मचारिणी की इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें वरदान देते हुए कहा कि उनके जैसा कठोर तप आज तक किसी ने नहीं किया है, तुम्हारे इस आलौकिक कृत्य की चारों ओर सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामना निश्चित ही पूरी होगी। भगवान शिव तुन्हें पति रूप में जरूर मिलेंगे।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

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Published By : Sadhna Mishra

पब्लिश्ड 16 October 2023 at 11:15 IST