अपडेटेड 20 August 2024 at 17:02 IST
लेटरल एंट्री पर मोदी सरकार ने लगाई रोक, UPSC को सीधी भर्ती वाला विज्ञापन रद्द करने का आदेश
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने लेटरल एंट्री पर रोक लगा दी है और UPSC को सीधी भर्ती वाला विज्ञापन रद्द करने का आदेश दिया है।
Lateral Entry: लेटरल एंट्री पर विवाद के बीच केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने फैसला वापस ले लिया है। लेटरल एंट्री के तहत कैंडिडेट्स बिना संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा दिए रिक्रूट किए जाते हैं। अहम ये है कि इस प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों का फायदा नहीं मिलता है। फिलहाल नरेंद्र मोदी सरकार ने लेटरल एंट्री पर रोक लगा दी है और UPSC को सीधी भर्ती वाला विज्ञापन रद्द करने का आदेश दिया है।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी की अध्यक्ष प्रीति सूदन को लिखे पत्र में कहा कि विज्ञापन रद्द कर दिया जाए, ताकि कमजोर वर्गों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। अपने पत्र में जितेंद्र सिंह ने कहा, 'हमारी सरकार का प्रयास प्रक्रिया को संस्थागत रूप से संचालित, पारदर्शी और खुला बनाने का रहा है। प्रधानमंत्री का दृढ़ विश्वास है कि लेटरल एंट्री की प्रक्रिया को हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के साथ जोड़ा जाना चाहिए, विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में। प्रधानमंत्री के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण हमारे सामाजिक न्याय ढांचे की आधारशिला है, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है।'
पत्र में कहा गया, 'इन नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। मैं यूपीएससी से 17 अगस्त 2024 को जारी लेटरल एंट्री भर्ती विज्ञापन को रद्द करने का आग्रह करता हूं। ये कदम सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति होगा।'
लेटरल एंट्री के बारे में जानिए
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के मुताबिक, सिद्धांत रूप में लेटरल एंट्री को दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने समर्थन दिया था, जिसका गठन 2005 में हुआ। इसके अध्यक्ष वीरप्पा मोइली थे। 2013 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी इसी दिशा में थीं।
नौकरशाही में लेटरल एंट्री औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान शुरू हुई, जिसमें 2018 में रिक्तियों का पहला सेट घोषित किया गया था। सरकार ने UPSC को नियम बनाने का अधिकार देकर लेटरल एंट्री सिस्टम की व्यवस्था की। पिछली सरकारों में लेटरल एंट्री फॉर्मल सिस्टम नहीं था। उम्मीदवारों को आम तौर पर तीन से पांच साल की अवधि के अनुबंध पर नियुक्त किया जाता है, जिसमें प्रदर्शन के आधार पर विस्तार की संभावना होती है।
आसान भाषा में समझिए कि लेटरल एंट्री से बिना परीक्षा सीधी भर्ती होती है। ये सीधी भर्ती UPSC के बड़े पदों पर होती है, जिनके लिए प्राइवेट सेक्टर के एक्सपर्ट्स शामिल होते हैं। राजस्व, वित्त, आर्थिक, कृषि, शिक्षा जैसे सेक्टर्स में लंबे समय से काम करने वाले लोगों को शामिल किया जाता है।
लेटरल एंट्री का विपक्ष क्यों विरोध कर रहा है?
पूरा विपक्ष लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती के विरोध में खड़ा था। विपक्ष ने इसे सत्तारूढ़ बीजेपी की मनमानी बताते हुए 'संविधान का उल्लंघन' करार दिया। अखिलेश यादव ने इस फैसले के खिलाफ दो अक्टूबर से प्रदर्शन करने की चेतावनी भी दी। कांग्रेस ने कहा कि केंद्र में 'लेटरल एंट्री' के माध्यम से भर्ती अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण से दूर रखने की सरकार की साजिश है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सोची समझी साजिश के तहत बीजेपी जानबूझकर नौकरियों में ऐसे भर्ती कर रही है, ताकि आरक्षण से एससी, एसटी, ओबीसी वर्गों को दूर रखा जा सके।
राहुल गांधी ने 'लेटरल एंट्री' के जरिये भर्ती करने के सरकार के कदम को राष्ट्र विरोधी कदम करार दिया और आरोप लगाया कि इस तरह की कार्रवाई से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खुलेआम छीना जा रहा है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री संघ लोक सेवा आयोग के बजाय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के माध्यम से लोक सेवकों की भर्ती करके संविधान पर हमला कर रहे हैं।
Published By : Dalchand Kumar
पब्लिश्ड 20 August 2024 at 14:08 IST