अपडेटेड 29 December 2025 at 12:55 IST
कुलदीप सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, हाई कोर्ट के आदेश पर लगाई रोक, कोर्ट में क्या-क्या हुआ?
उन्नाव रेप केस में पूर्व BJP विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा। दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर, 2025 को सेंगर की उम्रकैद निलंबित कर जमानत दी थी, लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश पर रोक लगा दी। अब सेंगर की जमानत लटक गई और वो जेल में ही रहेगा।
Unnao rape case : उत्तर प्रदेश के चर्चित उन्नाव रेप मामले में पूर्व BJP विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें सेंगर की उम्रकैद की सजा निलंबित कर उन्हें जमानत दी गई थी। इसके बाद सेंगर की रिहाई की उम्मीद पर पानी फिर गया है और वे फिलहाल जेल में ही रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ CBI की अपील पर सेंगर को नोटिस जारी किया है।
2017 में उन्नाव में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप कुलदीप सिंह सेंगर पर लगा था। तब वे BJP के विधायक थे। पीड़िता ने आरोप लगाया कि सेंगर ने अपनी ताकत का दुरुपयोग कर उन्हें अगवा किया और रेप किया। मामले में CBI जांच हुई और दिसंबर 2019 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई। साथ ही पोक्सो एक्ट और आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया।
23 दिसंबर. 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंगर की सजा निलंबित कर सशर्त जमानत थी। हाईकोर्ट ने कहा कि सेंगर ने पहले ही सात साल से अधिक जेल काट ली है और अपराध के समय लागू पोक्सो एक्ट के तहत न्यूनतम सजा पूरी हो चुकी है। हालांकि, एक अन्य मामले पीड़िता के पिता की हिरासत में हुई मौत में 10 साल की सजा के कारण सेंगर जेल में ही थे।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
CBI ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की। 29 दिसंबर को चीफ जस्टिस सूर्या कांत की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीबीआई की ओर से दलील दी कि यह एक भयावह मामला है, जहां पीड़िता नाबालिग थी। मेहता ने कोर्ट के सामने अपनी दलील में कहा-
"सेंगर को आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो एक्ट की धाराओं 5 व 6 के तहत दोषी ठहराया गया। न्यूनतम सजा 20 साल या आजीवन कारावास तक हो सकती है, खासकर जब अपराधी प्रभावशाली स्थिति में हो। विधायक होने के नाते सेंगर 'डॉमिनेंट पोजीशन' में थे, जो एग्रेवेटेड ऑफेंस बनाता है। हाईकोर्ट ने गलती की कि सेंगर को 'पब्लिक सर्वेंट' नहीं माना।"
इसपर जस्टिस जेके महेश्वरी और सीजेआई ने कानूनी प्रावधानों पर चर्चा की। सीजेआई ने पूछा कि क्या नाबालिग पीड़िता होने पर पब्लिक सर्वेंट का कॉन्सेप्ट इर्रेलेवेंट हो जाता है? मेहता ने सहमति जताई कि पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट स्वतंत्र अपराध है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। इससे सेंगर की जमानत प्रभावी रूप से लटक गई है। यह फैसला महिलाओं की सुरक्षा और प्रभावशाली लोगों के खिलाफ न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मामले की आगे की सुनवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं।
Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 29 December 2025 at 12:14 IST