अपडेटेड 14 May 2025 at 10:43 IST
Justice BR Gavai: जस्टिस बीआर गवई बने नए CJI, राष्ट्रपति ने दिलाई शपथ; बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ सुनाया था फैसला
न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई (बीआर गवई) ने बुधवार को भारत के प्रधान जस्टिस (सीजेआई) का पद संभाल लिया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद श्पथ दिलाई।
न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई (बीआर गवई) ने बुधवार को भारत के प्रधान जस्टिस (सीजेआई) का पद संभाल लिया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद श्पथ दिलाई। जस्टिस गवई ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली है जो बीते दिन ही रिटायर हुए थे। इससे पहले बीते माह की 30 तारीख को कानून मंत्रालय ने जस्टिस गवई की भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की अधिसूचना जारी की थी। 16 अप्रैल को सीजेआई खन्ना ने केंद्र सरकार से उनके नाम की सिफारिश की थी। जस्टिस गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा। वह 23 दिसंबर को सेवानिवृत्त होंगे।
जस्टिस गवई भारत के पहले बौद्ध सीजेआई होंगे। जस्टिस वीआर गवई के मुख्य फैसलों की बात करें तो उनमें बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ तोड़फोड़, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखना, डिमोनेटाइजेशन को बरकरार रखना, अनुसूचित जाति कोटे में उप-वर्गीकरण को बरकरार रखना, शराब नीति में के कविता को जमानत देना, तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी की दो बार आलोचना करना शामिल हैं।
CJI बीआर गवई के बारे में
- CJI बीआर गवई 24 नवंबर 1960, अमरावती, महाराष्ट्र में हुआ था।
- उनके पिता आरएस गवई लोकसभा सांसद और बिहार तथा केरल के राज्यपाल रह चुके हैं।
- बीआर गवई ने नागपुर विश्वविद्यालय से B.A. और LL.B. की डिग्री प्राप्त की।
- गवई 16 मार्च 1985 को बार में शामिल हुए।
- पूर्व महाधिवक्ता और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजा एस. भोंसले के साथ कार्य किया।
- 1987 से 1990 तक बॉम्बे उच्च न्यायालय में स्वतंत्र वकालत की।
- 1990 के बाद मुख्य रूप से नागपुर बेंच में संवैधानिक और प्रशासनिक कानून में विशेषज्ञता के साथ अभ्यास किया।
- 1992 से 1993 तक सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक रहे; 2000 में सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त हुए।
- 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए और 16 वर्षों तक सेवा दी।
- 24 मई 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायधीश के पद पर नियुक्त हुए।
जस्टिस गवई ने बुलडोजर जस्टिस पर क्या कहा था?
बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ फैसला लिखते समय, उन्होंने आश्रय के अधिकार के महत्व पर जोर दिया था। उन्होंने मनमाने ढंग से तोड़फोड़ की निंदा करते हुए कहा था कि इस तरह की कार्रवाई प्राकृतिक न्याय और कानून के शासन के सिद्धांतों के खिलाफ है। अपने फैसले में उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि कार्यपालिका, जज, जूरी और जल्लाद की भूमिका नहीं निभा सकती।
Published By : Ankur Shrivastava
पब्लिश्ड 14 May 2025 at 10:43 IST