अपडेटेड 11 April 2025 at 19:17 IST

वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जमीअत उलमा-ए-हिंद, कानून की संवैधानिकता को दी चुनौती

मौलाना सैयद महमूद असद मदनी ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के खिलाफ सप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है, जिसमें कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है।

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Jamiat Ulama-e-Hind approached Supreme Court against the Waqf Amendment Act | Image: Supreme Court/website

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के खिलाफ सप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (Public interest litigation) दायर की है, जिसमें कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। यह कानून 8 अप्रैल 2025 से लागू हो चुका है। याचिका में कहा गया है कि इस कानून में एक नहीं बल्कि भारत के संविधान के कई अनुच्छेदों, विशेष रूप से अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 और 300-ए के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन किया गया है, जो मुसलमानों के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों और पहचान के लिए गंभीर खतरा है।

मौलाना मदनी ने कहा कि यह कानून न केवल असंवैधानिक है बल्कि बहुसंख्यक मानसिकता की उपज है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के सदियों पुराने धार्मिक और कल्याणकारी ढांचे को नष्ट करना है। यह कानून सुधारात्मक पहल के नाम पर भेदभाव का झंडाबरदार है और देश की धर्मनिरपेक्ष पहचान के लिए खतरा है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि वह वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को असंवैधानिक घोषित करे और इसके क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगाए।

अधिनियम वक्फ चालन और प्रबंधन में हस्तक्षेप- मौलाना मदनी

मौलाना मदनी ने अपनी याचिका में कहा है कि इस अधिनियम द्वारा देश भर में वक्फ संपत्तियों की परिभाषा, संचालन और प्रबंधन प्रणाली में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया गया है, जो इस्लामी धार्मिक परंपराओं और न्यायिक सिद्धांतों के विपरीत है। याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन दुर्भावना पर आधारित हैं जो वक्फ संस्थाओं को कमजोर करने के उद्देश्य से किए गए हैं।

नया कानून अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन- मौलाना मदनी

उन्होंने इस कानून की कई कमियों का भी इस याचिका में उल्लेख किया है, जिसमें यह प्रावधान भी शामिल है कि अब केवल वही वयक्ति वक्फ (संपत्तियों का दान) कर सकता है जो पांच साल से प्रैक्टिसिंग (व्यावहारिक रूप से) मुसलमान हो। इस शर्त का किसी भी धार्मिक कानून में कोई उदाहरण नहीं मिलता, इसके साथ ही यह शर्त लगाना कि वक्फ करने वाले को यह भी साबित करना पड़ेगा कि उसका वक्फ करना किसी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं है, यह बेकार का कानूनी बिंदु है, और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। इसके अलावा, वक्फ बाई-यूजर की समाप्ति से उन धार्मिक स्थानों के खतरा है जो ऐतिहासिक रूप से लोगों के लगातार उपयोग से वक्फ का दर्जा प्राप्त कर चुके हैं। उनकी संख्या चार लाख से अधिक है। इस कानून के लागू होने के बाद यह संपत्तियां खतरे में पड़ गई हैं और सरकारों के लिए इन पर कब्जा करना आसान हो गया है। इसी प्रकार, केंद्रीय और राज्य वक्फ कौंसिलों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार देने वाले अनुच्छेद 26 का स्पष्ट उल्लंघन है।

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Published By : Deepak Gupta

पब्लिश्ड 11 April 2025 at 19:12 IST