अपडेटेड 29 January 2025 at 07:11 IST
BIG BREAKING: ISRO ने लगाया शतक, श्रीहरिकोटा से 100वां रॉकेट सफलता पूर्वक लॉन्च; GSLV-F15 से NVS-02 मिशन प्रक्षेपित
ISRO ने बुधवार की सुबह 6 बजकर 23 मिनट पर अपने 100वें मिशन के लक्ष्य को हासिल कर लिया है।
ISRO hits Centuery: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) बुधवार की सुबह 6 बजकर 23 मिनट पर अपने 100वें मिशन के लक्ष्य को हासिल कर लिया है। ISRO का यह ऐतिहासिक मिशन NVS-02 नेविगेशन सैटेलाइट का प्रक्षेपण हुआ, जो जीएसएलवी-एफ15 रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश से सुबह 6:23 बजे किया गया। इसके पहले 10 अगस्त 1979 के दिन श्रीहरिकोटा से पहला बड़ा रॉकेट तब छोड़ा गया था जब इसरो ने सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएलवी) लॉन्च किया था। इस बात को 46 साल गुजर गए। इस तरह से अंतरिक्ष विभाग को अपना शतक पूरा करने में कुल 46 सालों का समय लगा। वहीं इस सफलता पूर्वक 100वें सैटेलाइट की लॉन्चिंग के बाद इसरो भारत के स्वदेशी नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC) सिस्टम को आगे बढ़ाएगा।
ये बहुत ही रोमांचक क्षण
इसके पहले एसडीएससी के डायरेक्टर राजाराजन ए ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि ये रोमांचक क्षण है और इसे पूरे इसरो की उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे अहम मौके पर अंतरिक्ष केंद्र का नेतृत्व करना निश्चित रूप से रोमांचक है, लेकिन यह उपलब्धि पूरे इसरो की है। इस उपलब्धि के लिए कई पीढ़ियों से लोगों ने भरसक प्रयास किए तब जाकर ये सफलता हाथ लगी है। इस दौरान उन्होंने ये कहा था कि अब भारत में सैटेलाइट की लॉन्चिंग रेट में पहले से ज्यादा तेजी आएगी और इसरो को अपनी अगली सेंचुरी के लिए 46 सालों का लंबा इतंजार नहीं करना होगा।
पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत ने बनाई ये सफल योजनाएं
एसडीएससी के डायरेक्टर राजाराजन ए ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 16 जनवरी को तीसरा लॉन्चपैड (टीएलपी) को मंजूरी दी थी, जो कि भारत के अंतरिक्ष के दृष्टिकोण से बहुत हमत्वपूर्ण था। राजाराजन ने कहा, "पीएम मोदी के निर्देशन में भारत ने गगनयान, चंद्रयान और भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर उतरने में सक्षम बनाने के लिए निरंतर कार्यक्रमों की योजना बनाई है। इसके लिए अगली पीढ़ी के लॉन्च व्हीकल (एनजीएलवी) को डेवलप करने की आवश्यकता है। यह लगभग 91 मीटर लंबा होगा और मौजूदा व्हीकल से लगभग 2.2 गुना ज्यादा लंबा होगा।'
उन्होंने आगे बताया कि 'एनजीएलवी में पृथ्वी की निचली कक्षा में 20-30 टन की क्षमता होगी, जो अंतरिक्ष स्टेशन मिशन और चंद्रमा पर उतरने के संचालन के लिए महत्वपूर्ण है।' उन्होंने कहा कि मौजूदा लॉन्चपैड एनजीएलवी की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते। गगनयान मिशनों के लिए भी कुछ संशोधन किए जा रहे हैं. इसके लिए पूरी तरह से नए पैड की जरूरत है।
Published By : Ravindra Singh
पब्लिश्ड 29 January 2025 at 06:47 IST