अपडेटेड 21 November 2025 at 23:51 IST

'हिन्दू नहीं रहेगा, तो दुनिया नहीं रहेगी...', मणिपुर में RSS सरसंघचालक मोहन भागवत का बड़ा बयान, कहा- संघ किसी के खिलाफ नहीं

Mohan Bhagwat: मोहन भागवत ने कहा, "आरएसएस किसी के खिलाफ नहीं है। इसका गठन समाज को तोड़ने के लिए नहीं, बल्कि उसे पूरा करने के लिए हुआ है। नेता, राजनीति, सरकारें और यहां तक कि ईश्वरीय अवतार भी सहयोगी शक्तियां हैं, लेकिन समाज को वास्तव में एकता की जरूरत है।"

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RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत | Image: ANI

Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत मणिपुर की अपनी तीन दिवसीय यात्रा पर हैं। उन्होंने शुक्रवार को राजधानी इंफाल में अपनी तीन दिवसीय यात्रा के दूसरे दिन जनजाति नेताओं के साथ बातचीत की और कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने क्षेत्र और राष्ट्र में स्थायी शांति, सद्भाव और प्रगति सुनिश्चित करने के लिए एकता और चरित्र निर्माण को मजबूत करने की अपील की।

मिली जानकारी के अनुसार, मणिपुर में आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने हिन्दू को लेकर भी दुनिया के अस्तित्व की बात कही। उन्होंने कहा, "हिन्दू नहीं रहेगा तो दुनिया नहीं रहेगी।" उन्होंने आगे कहा कि धर्म नाम की चीज, समय-समय पर उसको जीकर दुनिया को देना, ये हिन्दू समाज ही करेगा। उसका ये ईश्वर प्रदत्त कर्तव्य है।

RSS किसी के खिलाफ नहीं- मोहन भागवत 

सभा को संबोधित करते हुए, मोहन भागवत ने दोहराया कि आरएसएस विशुद्ध रूप से एक सामाजिक संगठन है जो समाज को मजबूत बनाने के लिए समर्पित है। उन्होंने कहा, "आरएसएस किसी के खिलाफ नहीं है; इसका गठन समाज को तोड़ने के लिए नहीं, बल्कि उसे पूरा करने के लिए हुआ है। नेता, राजनीति, सरकारें और यहां तक कि ईश्वरीय अवतार भी सहयोगी शक्तियां हैं, लेकिन समाज को वास्तव में एकता की जरूरत है।"

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि संघ न तो राजनीति करता है और न ही किसी संगठन को रिमोट कंट्रोल करता है। मोहन भागवत ने कहा, "आरएसएस केवल मित्रता, स्नेह और सामाजिक सद्भाव के माध्यम से काम करता है।"

एकता के लिए एकरूपता की आवश्यकता नहीं- RSS प्रमुख

न्यूज एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की सभ्यतागत निरंतरता पर जोर देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि अध्ययनों से पता चलता है कि भारत के लोगों का आनुवंशिक और सांस्कृतिक डीएनए 40,000 वर्षों से एक ही रहा है। उन्होंने कहा, "हम अपनी साझा चेतना के कारण एकजुट हैं। अपनी सुंदर विविधता के बावजूद, हम एक ही सभ्यतागत परिवार के सदस्य हैं। एकता के लिए एकरूपता की आवश्यकता नहीं होती।"

भीमराव आंबेडकर का हवाला देते हुए, भागवत ने कहा कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के संवैधानिक सिद्धांत बुद्ध की शिक्षाओं में निहित हैं और तभी फल-फूल सकते हैं जब बंधुत्व, एकता की भावना, प्रबल हो। कई राष्ट्र स्वतंत्रता और समानता के बावजूद इसलिए असफल हुए क्योंकि उनमें बंधुत्व का अभाव था। लेकिन भारत के लिए बंधुत्व ही धर्म है।"

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Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 21 November 2025 at 23:51 IST